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सम्पादकीय

by
Jan 5, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Jan 2005 00:00:00

दूधे पटाइअ सींचीअ नीत, सहज न तजे करइला तीत।दूध से सींचो या नवनीत से, किन्तु करेला अपना स्वाभाविक तीतापन नहीं त्यागता।-विद्यापति (विद्यापति पदावली)बर्बर बंगलादेश और “बहादुर” हमबंगलादेश ने दूसरी बार भारत के जवानों पर एक कायरतापूर्ण पाशविक हमला किया है। सीमा सुरक्षा बल के सहायक कमांडेंट जीवन कुमार को कर्तव्यनिष्ठा और देशभक्ति का मोल अपनी जान देकर चुकाना पड़ा। अपराधी गिरोह की तरह काम करने वाली बंगलादेश राइफल्स के लिए यह बहादुर अधिकारी पिछले दो वर्षों से सरदर्द बना हुआ था। सरदर्द इसलिए क्योंकि वह न सिर्फ बंगलादेशी घुसपैठियों को भारत आने से रोकता था बल्कि बंगलादेश से आने वाले तस्कर मंसूर आलम और भारत से बंगलादेश जाने वाले पशु चोरों को अपने इलाके से गुजरने से भी रोका हुआ था। लिहाजा बंगलादेश राइफल्स ने धोखे से हमारे इस बहादुर अधिकारी को मार डाला। जब सीमा सुरक्षा बल के एक जवान के.के. सुरेन्द्र ने इन्हें बचाने की कोशिश की तो उसे भी बुरी तरह से घायल कर दिया जो अब कोलकाता में जीवन और मौत से संघर्ष कर रहा है।यह पहली घटना नहीं है। इसके पहले पिछली राजग सरकार के समय बंगलादेश राइफल्स के गुंडों ने इसी प्रकार सीमा सुरक्षा बल के एक अधिकारी की हत्या की थी और उसकी निर्जीव देह बांस पर रस्सियों से बांध कर इस तरह हमें दी गई थी जैसे किसी जानवर को मारकर उसे सौंपा जाता है। न तो राजग की “बहादुर” सरकार के समय बंगलादेश को सबक सिखाया गया, न ही वर्तमान संप्रग सरकार इस मामले में कोई बड़ा कदम उठा रही है। जिस तरह से बंगलादेश भारत के विरुद्ध आतंकवादियों की शरण स्थली और प्रोत्साहन का अड्डा बना हुआ है और वहां के फौजी भारतीय जवानों का तिरस्कार कर रहे हैं, यह उस किसी भी सरकार का खून खौलाने के लिए पर्याप्त होना चाहिए, जिसके पास कहने के लिए भी थोड़ी-बहुत रीढ़ की हड्डी हो। कल्पना कीजिए, यदि यह व्यवहार चीन या अमरीका जैसे देश के किसी सैनिक के साथ हुआ होता तो अब तक ढाका हिल चुका होता। बंगलादेश राइफल्स का अपराधी अफसर भारतीय सेना के कब्जे में होता और खालिदा जिया ने काफी मांगी होती। जो भारतीय जवान अपनी जान हथेली पर रखकर देश की रक्षा के लिए जीता और लड़ता है, उसकी जान की कीमत अगर भारत सरकार नहीं पहचानेगी तो फिर ऐसा कौन सैनिक होगा जो सीमा पर लड़ने का मनोबल बचा पाएगा?उन्हें अब जायदाद की आस, शेष देश से दूरियांश्रीनगर-मुजफ्फराबाद के बीच आंसू और मुस्कानों की प्रेम पगी कहानियां तो बहुत छप रही हैं। एक कहानी यह भी पढ़ लीजिए। 56 साल बाद मुजफ्फराबाद से फरीदा गनी श्रीनगर आयीं तो मुहब्बतों की बातों के बाद उन्होंने श्रीनगर में अपनी सम्पत्ति वापस लेने का आवेदन पत्र भी जमा कर दिया। यह सम्पत्ति फिलहाल राज्य के कस्टोडियन विभाग के पास है और उसमें कश्मीर विश्वविद्यालय के कुलपति का आवास है।उल्लेखनीय है कि 1947 में विस्थापित होकर पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर(गुलाम कश्मीर) से हजारों हिन्दू आए थे। उन बेघरवार लुटे-पिटे हिन्दुओं को जम्मू कश्मीर में उन लोगों की सम्पत्ति आवंटित की गई थी, जो भारत छोड़कर पाकिस्तान जा चुके थे। यह सम्पत्ति “कस्टोडियन” के अन्तर्गत सम्पत्ति कही जाती है। अब उन्हें यह डर सता रहा है कि गुलाम कश्मीर से आने वाले मुसलमानों ने अगर अपनी सम्पत्ति पर दावा कर दिया तो एक बार तो ये हिन्दू मुजफ्फराबाद में बेघर हो गए थे और अब पुन: भारत में उन्हें सेकुलरवाद के नाम पर बेघर कर दिया जाएगा और जिस सम्पत्ति पर वे पिछले 57 साल से बैठे हैं वह गुलाम कश्मीर से आने वाले मुसलमानों को दोस्ती के नाम पर दे दी जाएगी। दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से आये 50 हजार हिन्दू शरणार्थी बसाये गए थे, उन्हें अभी तक मतदान का अधिकार भी नहीं मिला है।इसके अलावा एक और घटनाक्रम ध्यान देने योग्य है। जम्मू- कश्मीर को पाकिस्तान की तरफ जोड़ने वाले उन्हीं रास्तों पर सबसे अधिक ध्यान एवं सबसे अधिक पैसा खर्च किया जा रहा है जिन रास्तों से विदेशी हमलावर, जैसे अफगान आदि, भारत पर चढ़ाई करते आए थे। ये वही रास्ते हैं जिन रास्तों से 1947 में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने हमला किया था और दो तिहाई कश्मीर अपने कब्जे में कर लिया था। उनमें से एक रास्ता रावलपिंडी- श्रीनगर मार्ग के नाम से विख्यात रहा है। अपने एक भाषण में कांग्रेस नेता श्री गुलाम नबी आजाद ने यह कहा भी था कि यह वही “पवित्र” रास्ता है जिस रास्ते से कश्मीर की वादी में इस्लाम ने प्रवेश किया था।इसके अलावा पुंछ-रावलकोट, कारगिल-स्कार्दू , नौशेरा-मीरपुर, जम्मू-सियालकोट रास्ते भी खोले जाने पर सक्रियता से वार्ता चल रही है। यहां यह बार-बार याद दिलाना और याद रखना जरूरी है कि 1947 और उसके बाद से भी लगातार इन्हीं रास्तों से घुसपैठिए तथा अलगाववादी जिहादी आते रहे हैं। और इन्हीं रास्तों पर भारतीय सेना तथा उन घुसपैठियों के बीच झड़पें होती रही हैं। एक और नया रास्ता मुगल रोड के नाम से खोला जा रहा है, जो पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को सीमावर्ती जिले पुंछ और राजौरी से और कश्मीर घाटी से जोड़ता है। जम्मू-कश्मीर राज्य सरकार ने अगले दो सालों में मुगल रोड को पक्का बनाने के लिए पचास करोड़ रुपए आवंटित किए हैं।आश्चर्य की बात यह है कि जहां गुलाम कश्मीर तथा पाकिस्तान के साथ-साथ कश्मीर घाटी से सीमावर्ती जिलों को जोड़ने के रास्तों पर काम बढ़ाया जा रहा है वहीं शेष भारत से जोड़ने वाले वैकल्प्कि रास्तों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। फिलहाल शेष भारत से केवल जम्मू-पठानकोट मार्ग से ही संबंध जुड़ा है। जबकि पिछले 25 वर्षों से पंजाब और हिमाचल से सटे बसौली से जोड़ने के लिए रावी नदी पर पुल बनाने की मांग अनसुनी ही रही है। राजग सरकार में रक्षा राज्य मंत्री श्री चमनलाल गुप्ता ने बसौली के इस पुल को रक्षा मंत्रालय की योजनाओं में शामिल किया था। लेकिन जब से केन्द्र में सरकार बदली है, यह काम भी ठप पड़ गया है।NEWS

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