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संस्कृति सत्य

by
Sep 5, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Sep 2004 00:00:00

क्रांतिकारी सुशील कुमार सेनगुप्त के बलिदान दिवस (2 मई) पर विशेषक्रांति-धर्मवचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु”बंगाल का विभाजन लार्ड कर्जन ने कर दिया था। वन्देमातरम् को क्रांति-मंत्र के रूप में आत्मसात कर तरुण विप्लवी और छात्र शास्त्रास्त्र जुटाकर स्वदेशी आंदोलन तथा विदेशी वस्तु बहिष्कार के बीच अंग्रेज अधिकारियों पर अवसर पाते ही प्रहार कर रहे थे। बंगालभर में गिरफ्तारियों का समां बंधा था। बंग-पुत्रों ने संकल्प कर लिया था कि वे बंगाल के विभाजन की धज्जियां उड़ाकर कर्जन को बाध्य कर देंगे ताकि वह पुन: बंगाल को एक करने की घोषणा करे। लार्ड कर्जन अभी कलकत्ता में ही जमा था और आन्दोलनकारियों पर दमनचक्र चलाए जा रहा था। वन्देमातरम्- उद्घोष और “वन्देमातरम्” गीत प्रतिबंधित था। उसका उच्चारण करने मात्र पर गिरफ्तारियां हो रही थीं और “वन्देमातरम्” गीत गाने या वन्देमातरम् का नारा लगाने पर युवकों, छात्रों को पुलिस दल मारने-पीटने लगता था। यहां तक कि बेंत लगाने की भी सजा दी जाती थी। सन् 1907 के अगस्त महीने में अरविन्द घोष के क्रांतिकारी अखबार “युगान्तर” के कार्यालय पर अंग्रेज सार्जेन्ट ने पुलिस दल के साथ छापा मारा और वहां विद्यमान डा. भूपेन्द्र नाथ दत्त, जो कि स्वामी विवेकानन्द के अनुज थे, उनसे पूछा कि इस अखबार के संपादक कौन हैं? क्योंकि उन दिनों उस अखबार में संपादक का नाम नहीं छपता था। यद्यपि डा. भूपेन्द्र नाथ दत्त उस पत्र के संपादक नहीं थे, फिर भी पूछे जाने पर उन्होंने कह दिया कि “मैं ही इसका संपादक हूं।” ताकि अरविन्द घोष और बारीन्द्र घोष जैसे क्रांतिकारी संपादक गिरफ्तारी से बच सकें। फलत: डा. भूपेन्द्रनाथ दत्त गिरफ्तार हो गए और उन्हें कैद की सजा दे दी गई। सजा सुनाते समय अदालत में विशाल जन-समूह एकत्रित था। जब पुलिस दल भूपेनदा को अदालत से जेल पहुंचाने चला तो वहां उपस्थित लोगों ने वन्देमातरम् का उद्घोष करके उन्हें जेल के लिए विदा किया। इस पर पुलिस दल के साथ मौजूद अंग्रेज सार्जेन्ट ने वन्देमातरम् का नारा लगाने वाले जन-समूह पर लाठी प्रहार करने का आदेश दे दिया। पर पुलिस के लाठी प्रहारों से भी लोगों ने वन्देमातरम् का नारा लगाना बंद नहीं किया और लोग लहूलुहान होने लगे। इस पर क्रुद्ध हो वहां मौजूद 15 वर्षीय किशोर छात्र सुशील कुमार सेनगुप्त ने चीते की तरह उछलकर घोड़े पर बैठे अंग्रेज सार्जेन्ट के मुंह पर घूंसा जड़ दिया। इस कारण सुशील को तुरन्त गिरफ्तार कर लिया गया और उसे 15 बेंत मारने का दण्ड दिया गया। बेंत मारने की प्रक्रिया अत्यधिक यातनादायक होती थी। उन बेंतों को पहले रातभर पानी में भिगोया जाता था और फिर जल्लाद दूर से दौड़कर पूरी शक्ति के साथ कैदी के उघड़े नितम्बों पर प्रहार करता था, जिससे खाल उधड़ जाती जाती थी और मांस निकल आता था। कैदी रक्त से नहा जाता था।सुशील सेन को कोलकाता के लालबाजार पुलिस न्यायालय से गिरफ्तार कर लालबाजार थाने में 15 बेंत मारे गए और वह 15 वर्षीय बालक प्रत्येक प्रहार पर वन्देमातरम् का उद्घोष गुंजाता रहा। इसके बाद वह सन् 1908 में कोलकाता के क्रांतिकारी दल युगान्तर दल में शामिल हो गया। फिर उसी वर्ष 1908 में जब अलीपुर बम कांड के मामले में क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी हुई तो उस मामले में सुशील सेन 15 मई को गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर मुकदमा चला और उसे आजीवन कालेपानी की सजा दी गई, जबकि उम्र अभी 16 वर्ष ही थी। वहां पर अपील करने पर वे बरी कर दिए गए। फिर भी वे इस बीच 2 वर्ष तक जेल में ही कैद रहे। रिहाई हुई सन् 1910 की फरवरी में। सुशील पुन: क्रांतिकार्यों में संलग्न हो हए। 5 वर्ष बाद जब दल को धन की जरूरत पड़ी तो इस दल ने नदिया जिले के परागपुर में एक रात डाका डाला। दल में सुशील सेन भी शामिल थे। वह रात थी सन् 1915 की 30 अप्रैल की। उसी वर्ष की 2 मई को एक स्थान पर सुशील सेन को पुलिस दल ने घेर लिया और गोली चलाने लगा। सुशील ने भी गोली का जवाब गोली से दिया और वहीं गोली चलाते हुए यह 22 वर्षीय क्रांतिकारी शहीद हो गया।15

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