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इस्लामी जिहाद के "बहादुर" यह कर रहे हैं<p style=fon

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Aug 8, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Aug 2004 00:00:00

इस्लामी जिहाद के “बहादुर” यह कर रहे हैं

मरियम बेगम का यह हाल क्यों हुआ?

-विशेष प्रतिनिधि

अस्पताल में अपने शरीर के जख्मों का इलाज करवा रही है मरियम-पर मन को जो जख्म लगे हैं वे कैसे भरेंगे?

जिहाद के नाम पर मासूमों के खून-खराबे और अपमानित जीवन छोड़कर एक भले आदमी की तरह आगे का जीवन जीने की तमन्ना थी अब्दुल लतीफ को। लेकिन उसे क्या पता था कि बंदूक छोड़कर जाने वालों के लिए उन्हीं के पुराने साथी काल बन जाते हैं। हिजबुल मुजाहिद्दीन के साथ जुड़े रहे लतीफ ने जिहाद से तौबा तो कर ली पर उसकी मासूम बहन के साथ “इस्लाम” के रखवालों ने इस तरह का पाशविक व्यवहार किया, जिसे देखकर पशुता भी लजा जाए। जिहादियों ने पूर्व आतंकवादी अब्दुल लतीफ की बहन मरियम बेगम के नाक-कान काट डाले और शरीर को जगह-जगह जलती सिगरेट से झुलसाया।

जब से कांग्रेस-कम्युनिस्ट सरकार आई है राज्य में सुरक्षाबल के जवानों और नागरिकों की हत्या का क्रम लगातार बढ़ता जा रहा है। अब तो ये घटनाएं सेकुलर अखबारों में दबा दी जाती हैं या भीतर इस तरह छापी जाती हैं ताकि किसी की निगाह न जाए। साफ जाहिर है, जम्मू-कश्मीर में अब शासन नाम की कोई चीज बची नहीं है, न ही केन्द्र में आतंकवादियों के खात्मे और भारतीय निष्ठावान प्रजा की रक्षा का दम-खम है।

60 दिन का आंकड़ा!

केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व में नई सरकार के गठन के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की घटनाओं में भारी वृद्धि हुई है। गत 60 दिनों में ही कम से कम 400 व्यक्ति मारे गए हैं और 600 के लगभग घायल हुए हैं। घायल होने वालों में अधिकतर स्कूली बच्चे, महिलाएं और अन्य नागरिक हैं।

आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष लगभग सात महीनों में आतंकवादी घटनाओं में कुल 1028 व्यक्ति मारे जा चुके हैं और 1000 के करीब घायल हुए हैं। मारे जाने वालों में 307 आम नागरिक व शेष सैन्यकर्मी हैं। इस वर्ष अभी तक 549 आतंकवादी भी मारे गए हैं जबकि गत 60 दिनों के दौरान कुल 178 आतंकवादी मारे गए हैं। जनवरी से लेकर अब तक 170 के लगभग सुरक्षाकर्मी और पुलिस के जवान शहीद हुए हैं, जिनमें 85 तो गत 60 दिनों के दौरान मारे गए हैं। पिछले 60 दिनों में कुछ मंत्रियों के काफिलों पर भी आक्रमण हुए, दो बार तो जम्मू-कश्मीर के उप-मुख्यमंत्री श्री मंगतराम शर्मा को निशाना बनाने की कोशिश की गई।

7 जून, 2004 को अब्दुल लतीफ ने अपने एक अन्य साथी के साथ हिंसा का रास्ता छोड़कर अपने घर-परिवार में रहकर कोई काम-धंधा करने का मन बनाया था। वह घर लौटा भी। लेकिन ईष्र्या और वहशीपन में डूबे उसके पुराने आतंकवादी साथियों ने 16 जून को मोहद डार क्षेत्र से उसके पिता मोहम्मद इब्राहिम (52 वर्ष) और बहन मरियम बेगम (22 वर्ष) का उस समय अपहरण कर लिया जब वे अपने पशु चरा रहे थे। उसके बाद उन दोनों पिता-पुत्री के साथ जो गुजरा, वह एक भयानक हादसे जैसा था। दोनों की बंदूक के कुंदों और लाठियों से बेतहाशा पिटाई की गई, जलती सिगरेट से जलाया गया। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा। उन्मादियों ने मरियम के प्रति अपना वहशीपन अधिक दर्शाया, क्योंकि मरियम एक सुन्दर युवती है। जिहादियों ने उसे अपने भाई को समर्पण के लिए उकसाने का दोषी ठहराते हुए मुखबिर कहा। घाटी की सुन्दर, जवान युवतियों को अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए आतंकवादी उन पर इसी तरह के दोष मढ़कर उनका अपहरण करते रहे हैं।

पिता और पुत्री को दो अलग-अलग झोपड़ियों में बंद करके यातना का सिलसिला जारी रखा गया। मरियम और उसके पिता की करुण गुहार जंगलों, दरख्तों से टकराकर वापस लौटती रही। कई दिनों तक वहशीपन का नंगा नाच खेलने के बाद उन दोनों का अपहरण करने वाले हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों-नूर मोहम्मद उर्फ अंसारी, बशीर अहमद और दिलावर-ने अपने जिला कमांडर से आगे की योजना पर चर्चा की कि अब उन दोनों का करना क्या है। जिला कमान्डर ने जो हुक्म दिया वह रोंगटे खड़े करने वाला था। उसने कहा था- “उन्हें गोली मत मारना। बस तब एक तोड़ते-कुचलते रहो जब तक कि दोनों मर न जाएं।”

उधर पिता और पुत्री के अपहरण के बाद सुरक्षाबलों ने लतीफ के घर वालों को बाहर निकलने से मना कर दिया था। सुरक्षाबलों द्वारा पूरे क्षेत्र में सघन तलाशी अभियान शुरू हुआ। एक दिन तलाशी अभियान के दौरान मौका पाकर मरियम के पिता मोहम्मद इब्राहिम जिहादियों की गिरफ्त से निकल भागने में सफल हो गए। परन्तु मरियम इतनी खुशकिस्मत न थी, उसे आतंकवादी अपने साथ ही उठा ले गए।

बेचारी मरियम दरिंदों की कैद में 10 जुलाई तक रही। सुरक्षाबलों ने उसे अपने तलाशी अभियान के दौरान एक स्थान पर बेहोशी की हालत में पड़ा पाया। किसी तेजधार चाकू से उसके कान और नाक काटे गए थे, घावों से रक्त लगातार बह रहा था। उसके पूरे शरीर पर निर्मम यातना के निशान साफ दिखाई दे रहे थे। मरियम को डोडा के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां शारीरिक और मानसिक रूप से बिल्कुल टूट चुकी मरियम सहमी सी निढाल काया की तरह मरहम पट्टी करवा रही है। रिसते घाव और मानसिक आघात इतने गहरे और ताजा हैं कि अभी तक उसकी चिकित्सकीय जांच तक नहीं की जा सकी है ताकि पता चले कि उन्मादियों ने उसके साथ कितनी बार बलात्कार किया था। मरियम की कहानी कश्मीर घाटी की उन महिलाओं की पीड़ा बयान करती है जो इन दरिंदगी की हद तक गिर चुके जिहादियों के चंगुल में फंस जाती हैं। “घर लौटे” एक आतंकवादी की बहन को दी गई यातना और उसके शरीर को छिन्न-विच्छन्न करना मानवता के विरुद्ध भीषण अपराध है। यह ऐसी बर्बर घटना है जिसकी भत्र्सना पूरी दुनिया में की जानी चाहिए। यह सब रुकना ही चाहिए। मौत से भी बदतर इस हालत से मासूम मरियमों को बचाना ही होगा। महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध हो रहे अमानवीय अत्याचारों के खिलाफ घाटी के लोगों को आवाज बुलंद करनी होगी। जम्मू-कश्मीर में जारी इस “जिहाद” की असलियत दुनिया के सभी देश जानें और इसके खिलाफ एकजुट हों।

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