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दक्षिण अमरीका में हिन्दुत्व-जागरण-ब्राह्मभिक्षुअभी कुछ समय पहले डेनमार्क जाना हुआ था। यह छोटा-सा देश है और इसकी राजधानी ओस्लो है। डेनमार्क में 12 हजार हिन्दू हैं, इनमें अधिकांश ओस्लो में ही रहते हैं। यहां सनातन धर्म सभा का एक बहुत बड़ा मन्दिर और विश्व हिन्दू परिषद् का कार्यालय भी है। डेनमार्क सरकार विश्व हिन्दू परिषद् के कार्यों से बहुत प्रभावित है और वह कहती है, “परिषद् यहां संस्कारयुक्त नागरिक बनाने का काम कर रही है।” यह कार्य और बड़े पैमाने पर हो, इस उद्देश्य से डेनमार्क सरकार वहां विश्व हिन्दू परिषद् को प्रतिवर्ष लगभग 15 लाख रुपए देती है। सरकार ने ही विश्व हिन्दू परिषद् को ओस्लो में एक भवन उपलब्ध कराया है, जहां एक हजार लोग एक साथ बैठ सकते हैं।ईसाइयों और हिन्दुओं को तो अपने उपासना स्थल बनाने की अनुमति आसानी से मिल जाती है और सरकार पैसा भी देती है, पर अब मुस्लिमों को न तो पैसा मिलता है और न ही उपासना स्थल बनाने की अनुमति। ओस्लो में कई धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लिया, कई अनुष्ठानों को स्वयं सम्पन्न कराया।डेनमार्क से स्वीडन जाना हुआ। यहां के उपशाला विश्वविद्यालय से फ्रांसिक परेज नाम की एक महिला ने विश्व हिन्दू परिषद् पर पीएच.डी. की है। क्या कोई भारतीय विश्वविद्यालय विश्व हिन्दू परिषद् पर शोध करने वाले को पीएच.डी. की उपाधि दे सकता है? अमरीका के फ्लोरिडा शहर में तो विश्व हिन्दू परिषद् का बहुत अच्छा काम है। यहां पांच दिवसीय गीता ज्ञान यज्ञ में भाग लेने गया था। वहां पांच दिन का योग शिविर लगा।ब्रिटिश गुयाना के 52 प्रतिशत लोग भारतीय मूल के हैं। गुयाना में रामनवमी का उत्सव वृहद् स्तर पर मनाया जाता है। गुयाना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यहां की विश्व हिन्दू परिषद् के अध्यक्ष हैं।ब्रिटिश गुयाना से फिजी में एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए जाना हुआ। यहां 10 हजार हिन्दू गुयाना से और 3 हजार हिन्दू त्रिनिदाद से जाकर बसे हैं। इन सबका मतान्तरण करने का प्रयास होता रहता है। तीन साल पहले मुझे इसकी सूचना मिली थी। इसके बाद मैं और विश्व हिन्दू परिषद्, वेस्टइंडीज के संयोजक स्वामी अक्षरानन्द जी वहां लगातार जाते रहे और तीन साल तक अथक प्रयास के बाद उन्हें मतान्तरित होने से बचा लिया। इन्हीं लोगों के बीच इस बार श्रीराम कथा हुई और कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। वहां तीन मन्दिरों की स्थापना भी हुई।वहां सभी कार्यक्रम सम्पन्न करके वेनेजुएला आ गए। जहां लगभग 70 हजार भारतवंशी हैं। ये लोग त्रिनिदाद, गुयाना आदि देशों से वहां पहुंचे हैं। यहां आठ मंदिर हैं, पर “इस्कान” की तरफ से प्राय: सभी शहरों में मन्दिर बनवाए गए हैं। आठों मन्दिरों में कथा हुई, फिर अन्त में एक सप्ताह तक गीता पर प्रवचन हुए। एक-एक कथा में 500-500 लोगों ने भाग लिया, जो कि वहां की दृष्टि से बहुत बड़ी संख्या थी। उल्लेखनीय है कि पूरे वेस्टइंडीज और दक्षिण अमरीकी देशों में 150 वर्ष पूर्व भारतीय मूल के लोग गए थे। 15 मई से लेकर 15 जून तक हर वर्ष “हिन्दू सांस्कृतिक महीना” इन देशों में मनाया जाता है। ये देश हैं ब्रिटिश गुयाना, सूरीनाम, फ्रेंच गुयाना, त्रिनिदाद एवं टोबैगो, जमैका, ग्वादलोफ आदि। हालांकि इन देशों में रहने वाले भारतीय एक तरह से ईसाई हो चुके हैं। वे हिन्दू मात्र इसके लिए रह गए हैं कि उन्हें भारतीय संगीत और नृत्य बहुत पसन्द हैं। इन लोगों को धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन ग्वादलोफ, जहां भारतीय मूल के लोग सबसे बाद में गए थे, में इस वर्ष भारतीयों के यहां आने का 150वां आगमन वर्ष मनाया जा रहा है। इसका समापन समारोह 18 दिसम्बर, 2004 को है, जिसमें विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष श्री अशोक सिंहल भी भाग लेंगे।24
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