|
हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भ”स्त्री” स्तम्भ के लिए अपनी सामग्री, टिप्पणियां इस पते पर भेजें”स्त्री” स्तम्भद्वारा, सम्पादक, पाञ्चजन्य संस्कृति भवन,देशबन्धु गुप्ता मार्ग, झण्डेवाला, नई दिल्ली-55तेजस्विनीकितनी ही तेज समय की आंधी आई, लेकिन न उनका संकल्प डगमगाया, न उनके कदम रुके। आपके आसपास भी ऐसी महिलाएं होंगी, जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प, साहस, बुद्धि कौशल तथा प्रतिभा के बल पर समाज में एक उदाहरण प्रस्तुत किया और लोगों के लिए प्रेरणा बन गयीं। क्या आपका परिचय ऐसी किसी महिला से हुआ है? यदि हां, तो उनके और उनके कार्य के बारे में 250 शब्दों में सचित्र जानकारी हमें लिख भेजें। प्रकाशन हेतु चुनी गयी श्रेष्ठ प्रविष्टि पर 500 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।इंदुमती जोंधलेपहले अनाथ थीं, अब सैंकड़ो की मां-श्रीति राशिनकरऔरंगाबाद (महाराष्ट्र) की श्रीमती इंदुमती जोंधले के जीवन में घटित घटनाओं को लोग पढ़कर या सुनकर सहसा विश्वास नहीं कर पाते हैं कि ये वास्तविक घटनाएं हैं या कोई फिल्मी-कहानी। सरस्वती भुवन विद्यालय, औरंगाबाद में अंग्रेजी एवं मराठी विषय की शिक्षिका श्रीमती जोंधले में वह जुझारूपन एवं ऊर्जा है, जो मरूभूमि को भी हरियाली में बदल सकती है। स्वयं उनके जीवन में भी ऐसा ही हुआ है।बचपन की यादों को ताजा करते हुए वह कहती हैं, “मेरे पिताजी एक शिक्षक थे, लेकिन समय के कुचक्र में उन्होंने क्रोधवश मेरी माताजी की हत्या कर दी। उस समय मैं लगभग सात वर्ष की थी और मुझसे छोटी एक बहन और दो भाई थे। पिताजी को आजन्म कारावास की सजा हो गई और हम सब अनाथ हो गए। पिताजी को तो कम से कम दो समय का खाना कारागृह में मिल जाता था लेकिन हम बच्चों को तो रूखा-सूखा भी नसीब नहीं होता था।”कुछ समय तक एक रिश्तेदार के घर नरक से भी बदतर स्थिति में रहते हुए इंदुमती को अपनी छोटी बहन मुन्नी के जीवन से हाथ धोना पड़ा। वह बताती हैं, “मुझे आज भी याद है वह दुर्भाग्यपूर्ण दिन। मैं व मेरे भाई हाथ चक्की पर गेहूं पीस रहे थे और पालने में पड़ी छोटी बहन मुन्नी के हाथ में हमने सूखी रोटी का एक टुकड़ा दे रखा था। कुछ समय बाद हमने देखा कि मुन्नी ने गर्दन लटका दी है। वह दिन हमारे लिए सबसे बदतर दिन था, जिसे हम कभी नहीं भूला पाएंगे। इसके बाद कुछ संवेदनशील लोगों की मदद से हम तीनों को अलग-अलग छात्रावासों में रखा गया, ताकि कुछ पढ़-लिख सकें।””मैंने अपने जीवन के दस वर्ष कोल्हापुर के एक छात्रावास में बिताए। छात्रावास में अन्य लड़कियां भी रहती थीं। वहां के धनी लोग अपने कपड़े हमारे लिए भेजते थे। छात्रावास में सभी लड़कियों के लिए खाना पकाने का काम दलों में बांट दिया जाता था। एक समय में दस से पन्द्रह किलो आटा गूंथकर उसकी रोटियां बेलना, चूल्हे पर सेंकना… सभी काम करने पड़ते थे। छात्रावास के नियम अत्यंत कठोर थे। यही नियम आगे संघर्षशील जीवन में काम आए।”स्नातक होते-होते इंदुमती एन.सी.सी., राष्ट्रीय सेवा योजना एवं संघर्ष वाहिनी से जुड़ गईं। जीवन के झंझावातों को सहन करते हुए भी इंदुमती ने कभी हार नहीं मानी। अण्णासाहेब सहस्रबुद्धे, मामा क्षीरसागर, दादा धर्माधिकारी आदि विद्वानों का उन्हें स्नेह और मार्गदर्शन मिला।हालांकि उन्हें अपने छोटे भाइयों से दूर रहना कभी अच्छा नहीं लगा, पर जिन्दगी का सवाल था। अत: उन्होंने माया-ममता को जबरदस्ती दबाकर एक ही लक्ष्य रखा, पढ़ाई का। उनका यह त्याग शीघ्र ही मीठा फल बना। अब वह बी.एड. कर अध्यापन कार्य करने लगीं।इस संघर्ष के काल में ही उनकी भेंट पत्रकार एवं लेखक श्री महावीर जोंधले से हुई। दोनों एक-दूसरे को सहयोग करने लगे। बाद में उनकी निकटता बढ़ती गई और 30 दिसम्बर, 1976 को दोनों विवाह सूत्र में बंध गए। अध्यापन के साथ-साथ उन्होंने लेखन का भी कार्य शुरू किया और सबसे पहले उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी। उनकी आत्मकथा “बिनपटाची चौकट” पुस्तक में है। इस पुस्तक को डा. बाबासाहब आंबेडकर मराठवाड़ा वि.वि., औरंगाबाद एवं यशवंतराव मुक्त वि.वि., नासिक ने स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर अपने पाठक्रम में सम्मिलित किया है। कई अन्य विश्वविद्यालयों में भी यह पुस्तक पढ़ाई जाती है। इस पुस्तक को वा.सी. मर्ढेकर पुरस्कार और उत्कृष्ट साहित्य का पुरस्कार भी मिला है। अब कन्नड़, अंग्रेजी व गुजराती भाषा में इसका अनुवाद हो रहा है। महिला भूषण सम्मान से सम्मानित इंदुमती दहेज विरोधी अभियान समिति की सदस्या हैं। बाल-मजदूरों की समस्याओं को दूर करने एवं उनके विकास हेतु वे निरंतर कार्यरत रहती हैं।उनकी एक अन्य पुस्तक “बेदखल” के लिए भी उन्हें पुरस्कार मिला है। फुलझड़ी नामक बाल साहित्य भी प्रकाशित हुआ है। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाजसेवी श्री अण्णासाहेब सहस्रबुद्धे पर आधारित पुस्तक “तत्वज्ञानी अण्णा” और कथा संग्रह “गर्भलांच्छन” शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली हैं।”बिनपटाची चौखट” पुस्तक ने श्रीमती जोंधले को देश-विदेश तक प्रसिद्धि दिलाई है। इसी प्रसिद्धि के कारण आज उनकी एक आवाज पर सैकड़ों लोग उनके पक्ष में खड़े हो रहे हैं। वह कहती हैं “मुझे असंख्य लोगों का प्रेम एवं सम्मान मिला है, जो मेरे जीवन की अकूत पूंजी है। आज मैं अनाथ नहीं, सनाथ हूं। मेरे पीछे बहुत बड़ा परिवार है।” सचमुच कभी अनाथ रहीं श्रीमती जोंधले के आज सैकड़ों पुत्र एवं पुत्रियां हैं, जो उन्हें एक शिक्षिका से बढ़कर एक वात्सल्यमयी एवं ममतामयी मां के रूप में देखते हैं।20
टिप्पणियाँ