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हिन्दू भूमि

by
Jun 6, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Jun 2004 00:00:00

सुरेश सोनीवेदों का तत्व-चिंतनवेदों में सृष्टिरचना से लेकर समाज का विकास, विविध प्रकार के ज्ञान-विज्ञान की बीज रूप में जानकारी प्राप्त होती है। अत: वैदिक सूक्तों में जहां एक ओर सृष्टि की नियामक शक्तियों के प्रतीक देवताओं की श्रद्धापूर्ण अंत:करणों से की गयी प्रार्थना दिखती है, वहीं दूसरी ओर किन्हीं सूक्तों में दैन्य-दास्य से मुक्त एक ओजस्वी, तेजस्वी, चैतन्यमुक्त यश की जय की, कामना वाले समाज का चित्र दिखाई देता है। अथर्ववेद का भूमिसूक्त-भारत की भक्ति का आदि गान है, तो व्यक्ति, विवाह संस्था और आगे सभा, समिति और राष्ट्र के विकास तक की गाथा भी इसी वेद में है। विज्ञान के अनेक तथ्य वैदिक ऋचाओं में हैं। दीर्घतमस् ऋषि का अस्यवामीय सूक्त सूर्य की उत्पत्ति तथा विभिन्न ग्रहों की उससे दूरी व अन्य तथ्यों की गाथा है। सम्पूर्ण व्याकरण शास्त्र व ध्वनि शास्त्र के विकास के मूल में ऋग्वेद की एक ऋचा है-चत्वारि वाक् परिमिता पदानि तानि विदुब्राह्मणा ये मनीषिण:।गुहा त्रीणि निहिता नेङ्गयन्ति तुरीयं वाचो मनुष्या वदन्ति।(ऋग्वेद-1-164-45)अर्थात् वाणी के चार पद होते हैं, जिन्हें मनीषी जानते हैं। वे हैं- परा, पश्यन्ती, मध्यमा, वैखरी। इनमें तीन गुप्त रहते हैं तथा चौथा तुरीय वाचा मनुष्य बोलता है। इसी प्रकार कालमापन की वृहत्तर इकाई ब्राह्मदिन की गणना अथर्ववेद (8/2/21) में दी है। उसमें कहा है “शतं तेऽयुतं हायनान्द्वे युगे त्रीणिं चत्वारि कृणम:” अर्थात् सौ अयुत के आगे 2, 3, 4 लिखने से कल्प की संख्या आएगी और “अकांनाम् वामतो गति:” इस नियम से यह अर्थ होगा 4320000000, चार अरब बत्तीस करोड़ वर्ष। ऋग्वेद का संज्ञान सूक्त संगठन शास्त्र का आदि काव्य है तो उसके यम-यमी संवाद में नैतिक मापदंडों की समाज में स्थापना का चित्र दिखता है। इस नाते ऐहिक जीवन में एक सक्षम, संपन्न, जीवंत समाज का चित्र हमारे सामने उभरता है, तो दूसरी ओर मात्र भौतिकता में ही सुख नहीं है, वह उससे कुछ परे है और इस खोज में गहन आध्यात्मिक अनुभूतियों की दिशा में बढ़ें; इसे व्यक्त करने वाले सूक्त भारतीय तत्वचिंतन के आधार बने हैं।वैसे वेदों के अनेक सूक्तों में तत्वज्ञान का विश्लेषण व अनुभूतियां मिलती हैं। इन सूक्तों में ऋग्वेद का नासदीय सूक्त, अस्यवामीय-सूक्त, पुरुषसूक्त, हिरण्यगर्भ सूक्त, यजुर्वेद का चालीसवां अध्याय जिनमें तत्वचिंतन, अनुभूतियां अपने सर्वोच्च शिखर पर पहुंची हैं। इन सूक्तों में नासदीय सूक्त अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सृष्टि के पूर्व से वर्णन आरम्भ कर आगे चलकर जितने दर्शन विकसित हुए उनके बीज इस सूक्त में दिखाई देते हैं। स्वामी विवेकानन्द को भी यह सूक्त बहुत प्रिय था। इस सूक्त को देश में अनेक लोगों ने देखा और सुना होगा। श्याम बेनेगल रचित “भारत एक खोज” धारावाहिक के शुरू में कुछ वेदमंत्र बोले जाते थे। ये नासदीय सूक्त के ही मंत्र थे। इसका थोड़ी गम्भीरता से विचार करेंगे तो वैदिक तत्व चिंतन व अनुभूति की गहराई हमारे सामने स्पष्ट होगी। (जारी)(लोकहित प्रकाशन, लखनऊ द्वारा प्रकाशित पुस्तक “हमारी सांस्कृतिक विचारधारा के मूल स्रोत” से साभार।)25

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