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गुजरात

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Jun 6, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Jun 2004 00:00:00

क्यों उलट गई बाजी?-किशोर मकवाणाचुनाव से पहले तक गुजरात में भाजपा को लेकर एक आम धारणा थी- “भाजपा जैसी कोई नहीं।” किन्तु चुनाव परिणामों के बाद “भाजपा ही क्यों, कोई और क्यों नहीं?” की चर्चा प्रारम्भ हो गई है। परिणाम आने के दो सप्ताह बाद तक भी गुजरात भाजपा आत्ममंथन नहीं कर पाई कि हम चुनाव क्यों हारे। और तो और कांग्रेस राज्य सरकार को बर्खास्त करने या नेतृत्व परिवर्तन की बात करे, इससे पूर्व ही कुछ सत्ताकांक्षी भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को ही कटघरे में खड़ा करने का अभियान छेड़ दिया है। किन्तु कोई भी नहीं समझ पा रहा है कि आखिर चूक कहां हुई। जहां गुजरात में भाजपा लोकसभा के 26 स्थानों में से 23-24 स्थान जीतने का दावा कर रही थी, वहां उसे सिर्फ 14 स्थान ही मिले। भाजपा नेतृत्व ही नहीं, राजनीतिक समीक्षक, सर्वेक्षणकर्ता और यहां तक कि कांग्रेस भी मानती थी कि इस बार भी भाजपा ही गुजरात का मैदान मार ले जाएगी। लेकिन ऐसी करारी हार मिलेगी, यह तो किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।चुनाव अब परिणाम आ गए हैं, सब अपने-अपने दृष्टिकोण से मंथन कर रहे हैं। गुजरात में भाजपा की हार के कुछ कारण जो सच्चाई के निकट हैं, उनकी इस प्रकार व्याख्या की जा रही है-केन्द्र सरकार ने जो कार्य किए, वे किसानों और पिछड़े वर्गों के हित में थे, किन्तु यह बात उस वर्ग तक पहुंची ही नहीं।भाजपा नेतृत्व मुसलमानों के प्रति कुछ ज्यादा ही झुका, जिसे उनका तुष्टीकरण माना गया।राज्य की भाजपा सरकार ने किसानों के हित में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए एवं महत्वाकांक्षी योजनाएं बनाईं, इसके बावजूद किसानों में रोष है।सांसदों का अपने कार्यकर्ताओं से सीधा व जीवंत संपर्क नहीं रहा। नेताओं द्वारा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और उनकी अनदेखी। इस कारण उनमें निष्क्रियता।कहीं-कहीं जीत के प्रति अतिविश्वास के कारण निष्क्रियता।संघ-विचार-परिवार के संगठनों का आपस में तालमेल नहीं बन पाया।राज्य सरकार और भाजपा संगठन के बीच भी आपसी तालमेल में अभाव दिखा।अनेक सीटें ऐसी थीं, जहां उम्मीदवार बदलना आवश्यक था। 15 वर्षों से एक ही कार्यशैली से जनता ऊब चुकी थी। अगर भाजपा उम्मीदवार बदलने का साहस दिखाती तो परिणाम कुछ बेहतर हो सकते थे।… ये, और ऐसे कई अन्य कारण हैं जिसने “भाजपा जैसी कोई नहीं” नारे को पलटकर “भाजपा ही क्यों?” कर दिया। गुजरात में भाजपा का मजबूत गढ़ है और यह गढ़ कोरी कल्पना नहीं, वास्तविकता है। गुजरात में छोटे-छोटे दल नहीं हैं, भाजपा और कांग्रेस-दो ही दल चुनाव मैदान रहते हैं। इन लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस मुकाबले में कहीं नहीं दिखती थी। उनकी आपसी कलह भी चरम पर थी और पार्टी का संगठन भी बिखरा हुआ था। न ही लोगों पर इसका कोई विशेष प्रभाव था। कांग्रेस जीतेगी, ऐसा दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता था। बेस्ट बेकरी कांड को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने जो रुख अपनाया था, उसका भी लाभ भाजपा को मिलता दिखाई दे रहा था। गुजरात की जनता को लग रहा कि गोधरा में जब 58 निर्दोष हिन्दुओं को कुछ मुस्लिम कट्टरपंथियों ने जिन्दा जला दिया तब किसी ने चर्चा की नहीं की। उसकी प्रतिक्रिया में हुए दंगों को आधार बनाकर यहां के हिन्दुओं को बदनाम करने का एक षड्यंत्र चल रहा है। बेस्ट बेकरी कांड को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर जो कुछ भी घटा, उसे भी लोग इसी षड्यंत्र का हिस्सा मानते हैं। इस कारण भी लगता था कि जीत भाजपा की ही होगी। इसके बावजूद कांग्रेस को आशा से ज्यादा लाभ मिला। 1999 के लोकसभा में वह सिर्फ 5 स्थान जीते थे, इन चुनावों में उसने 12 स्थान जीतकर आश्चर्यजनक विजय प्राप्त की है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस को लोगों ने विकल्प न होने के कारण मजबूरी में पसंद किया। यह भी कहा जा रहा है कि कई स्थानों पर भाजपा के ही कुछ विधायक तथा कार्यकर्ता अपने ही प्रत्याशी को हराने में लगे थे।कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष श्री बी.के. गठवी ने स्वयं स्वीकार किया कि हमें ऐसी जीत की उम्मीद नहीं थी। हमें जो सफलता मिली उसका मुख्य कारण है कि गुजरात की भाजपा सरकार किसान विरोधी और जनविरोधी है। लोगों में इस सरकार के प्रति तीव्र रोष है।”दूसरी तरफ भाजपा नेता मानते हैं कि हमें स्थान भले ही कम मिले हों लेकिन हमारा जनाधार बढ़ा है। प्रदेश भाजपा महासचिव जयंती भाई बारोट ने बताया कि 1999 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार चुनाव में दो प्रतिशत मतदान कम हुआ। इसके बावजूद हमें कांग्रेस से 3 प्रतिशत ज्यादा मत मिले। भाजपा को इस बार 47.30 प्रतिशत मत मिले और कांग्रेस को 44.09 प्रतिशत। अर्थात् भाजपा का जनाधार बढ़ा है। हालांकि यह चुनावी आंकड़ेबाजी लोगों को संतुष्ट नहीं कर पा रही है। उनकी नजर में इस बार गुजरात में भाजपा की पराजय हुई है। क्योंकि लोकतंत्र में तो आखिरकार “सर” ही गिने जाते हैं और इस बार लोकसभा में भाजपा के “सर” कम हुए हैं। भाजपा के लिए यही गंभीर चिंतन का विषय है, क्योंकि कांग्रेस पार्टी उसके गढ़ गुजरात में उसका स्थान छीन लेने को आतुर है।36

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