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कांग्रेस की शह पाकर<p style=font-weight:bold;text-a

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Apr 7, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Apr 2004 00:00:00

कांग्रेस की शह पाकर

फिर सुलगा पृथक गोरखालैण्ड का मुद्दा

कोलकाता से अमरनाथ दत्ता

सुभाष घीसिंग

वर्षों खामोश रहे सुभाष घीसिंग ने फिर कहा-

“मेरा आखिरी सपना है पृथक गोरखालैण्ड”

कुछ वर्ष शांत रहने के बाद गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के नेता सुभाष घीसिंग ने एक बार फिर पृथक गोरखालैण्ड का मुद्दा उछाला है। सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस के सहयोगी दल तेलंगाना राष्ट्र समिति द्वारा पृथक तेलंगाना राज्य की मांग से सुभाष घीसिंग के हौंसले बुलन्द हो गए हैं। इसी कारण उन्होंने पृथक गोरखालैण्ड का राग फिर से अलापना शुरू कर दिया है। एक चतुर राजनीतिक खिलाड़ी की तरह सुभाष घीसिंग ने हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनावों में दार्जीलिंग (प. बंगाल) संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी दावा नरबुला का समर्थन किया था। इस समर्थन की शर्त थी कि बदले में कांग्रेस उनकी पृथक गोरखालैण्ड की मांग का समर्थन करेगी। कांग्रेस नेतृत्व ने घीसिंग की इस शर्त का कोई विरोध भी नहीं किया, क्योंकि आन्ध्र प्रदेश में तेलंगाना राष्ट्र समिति से गठबंधन के समय उसे ऐसी ही स्थिति का सामना करते हुए पृथक तेलंगाना राज्य की मांग का समर्थन करना पड़ा था।

उल्लेखनीय है कि राज्य के दार्जीलिंग, कुर्सियांग और कालिम्पोंग क्षेत्र सन् 1986 से 1988 तक सुभाष घीसिंग के नेतृत्व में चले गोरखालैण्ड आंदोलन के कारण हुए भारी रक्तपात के साक्षी रहे हैं। 1988 में केन्द्र सरकार और सुभाष घीसिंग के बीच एक समझौता हुआ, जिसके परिणामस्वरूप दार्जीलिंग गोरखा हिल काउंसिल अस्तित्व में आई। काउंसिल को पूरी तरह स्वायत्त रखा गया और इसका अध्यक्ष सुभाष घीसिंग को बनाया गया। लेकिन दार्जीलिंग गोरखा हिल काउंसिल बन जाने के बावजूद पृथक गोरखालैण्ड की मांग को दबाया नहीं जा सका, मुद्दा पूरी तरह सुलगता रहा। इसका प्रमाण है हाल ही में गठित गोरखा लिबरेशन आर्गेनाइजेशन, जो गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट से ही टूटकर है। इन विद्रोही कार्यकर्ताओं को आशंका थी कि घीसिंग भीतर ही भीतर गोरखालैण्ड के मुद्दे पर समझौता कर रहे हैं। यहां तक कि माकपा की दार्जीलिंग जिला इकाई भी गोरखालैण्ड के मुद्दे पर विभाजित हो गई थी। और उसी का एक धड़ा कम्युनिस्ट पार्टी फार रिवोल्यूशनरी माकर््िसस्ट के नाम से अलग हो गया। इन सच्चाइयों को देखते हुए सुभाष घीसिंग को आशंका बनी रही कि कहीं इस मुद्दे पर पर्वतीय क्षेत्रों में उनके समर्थक विभाजित न हो जाएं और उनसे अलग कोई अन्य दूसरा गुट न बना लें। परिणाम यह हुआ कि सुभाष घीसिंग के सामने गोरखालैण्ड का मुद्दा दोबारा उछालने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा। घीसिंग ने पृथक तेलंगाना के सुर में अपने पृथक गोरखालैण्ड का सुर भी मिला दिया।

प. बंगाल के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष तथागत राय ने अलग गोरखालैण्ड के रूप में राज्य के विभाजन का कड़ा विरोध किया है। राय के अनुसार राज्य सरकार द्वारा दार्जीलिंग गोरखा हिल काउंसिल को सहयोग न दिये जाने के कारण पृथक गोरखालैण्ड का जिन्न फिर जिंदा हो गया है। राय ने इसके लिए सुभाष घीसिंग के साथ कांग्रेस को भी दोषी ठहराया है। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा सुश्री ममता बनर्जी ने भी गोरखालैण्ड के रूप में राज्य के विभाजन की मांग का जमकर विरोध किया है। प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व ने इस मुद्दे पर खामोश रहने में ही अपनी भलाई समझी। राज्य में सत्तारूढ़ वाममोर्चे ने भी सुभाष घीसिंग की इस मांग पर आपत्ति जताते हुए इसका दोष कांग्रेस के मत्थे मढ़ा है।

पाञ्चजन्य संवाददाता द्वारा दूरभाष पर सम्पर्क किये जाने पर गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के नेता सुभाष घीसिंग ने स्पष्ट कहा, “मेरा एकमात्र सपना पृथक गोरखालैण्ड राज्य है। मुझे उम्मीद है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस इस मुद्दे पर हमारा समर्थन करेगी।” जहां तक प्रस्तावित गोरखालैण्ड की बात है, इसमें दार्जीलिंग, कुर्सियांग, कालिम्पोंग और पश्चिमी द्वार के कुछ हिस्से शामिल हैं।

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