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सम्पादकीय

by
Feb 5, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Feb 2004 00:00:00

घर और गांव के क्षुद्र सम्बंधों से ऊपर प्रत्येक व्यक्ति का विश्व के साथ योग सम्पादन करने के लिए हिन्दू धर्म ने समाज के प्रत्येक सदस्य को इस बात का स्मरण कराया है कि देवता, ऋषि, पितृ-पुरुष, समस्त मानव जाति और पशु-पक्षी के साथ उसका मंगलमय सम्बंध है।-रवीन्द्रनाथ ठाकुर (रवीन्द्रनाथ के निबंध, पृष्ठ 380)जिताएं उन्हें जो भारत जिता रहे हैंयह एक विशेष परिस्थिति है। विशेष चुनाव और निर्णायक क्षण। 1947 के बाद भारत के राजनीतिक इतिहास में ऐसा समय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में आया है जब कांग्रेस के भ्रष्टाचारी और अपसांस्कृतिक शासन से अलग भारत की माटी की सोंधी गंध से महकता हुआ एक नितांत गैर कांग्रेसी, राष्ट्रवादी गठबंधन केन्द्र में अपना कार्यकाल पूरा कर सका और सिर्फ बात यहीं तक नहीं थमी बल्कि यह कार्यकाल देश के स्वर्णिम भविष्य और आगे बढ़ते वर्तमान का भी साक्षी बना। सरकार ने आते ही भारत को परमाणु शस्त्रों से सज्ज किया। अमरीका सहित पश्चिमी देशों के तमाम प्रतिबंधों की परवाह न करते हुए अपनी नीति पर अडिग रही। कारगिल में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। Ïक्लटन के दबाव को अस्वीकार किया। और सारे देश को सबसे बुनियादी जरूरत महामार्गों के जाल से जोड़ने का पराक्रमी प्रयास प्रारंभ किया।इस सरकार को इस बात का श्रेय जाता है कि आजादी के बाद पहली बार जनजातीय समाज के विकास के लिए एक अलग मंत्रालय स्थापित किया गया और जनजातीय विकास के लिए सैकड़ों करोड़ रुपयों की फलदायी योजनाएं प्रारंभ कीं।सूचना प्रौद्योगिकी का क्षेत्र हो या शिक्षा, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का, हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए जिनसे उत्साहवद्र्धक परिणाम सामने आए।पहली बार ऐसी सरकार बनी जो युद्ध के उन्माद पर नहीं बल्कि शान्ति की पहल पर मतदाताओं से नया जनादेश मांग रही है। यह उस समूचे विश्व को अचंभित करने वाली बात है जहां के नेता और अखबार यह मानकर चल रहे थे कि यदि अपनी हिन्दुत्वनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में कोई सरकार आएगी तो देश में अल्पसंख्यकों का रहना मुहाल हो जाएगा तथा इसके साथ ही पाकिस्तान से युद्ध- जो परमाणु युद्ध में भी बदल सकता है- की पूरी आशंका बनी रहेगी। उन्होंने देखा कि हिन्दुत्वनिष्ठ नेतृत्व में बनी सरकार के राज में न केवल अल्पसंख्यक सर्वाधिक सुरक्षित और विकासोन्मुख रहे बल्कि पिछले 50 वर्षों में अल्पसंख्यकों की हमदर्द होने का ढिंढोरा पीटने वाली सरकारों ने जो नहीं किया, वह इस सरकार ने अपने एक कार्यकाल में कर दिखाया।अटल जी ने ठीक ही कहा है, जहां देश नए उत्साह के साथ आगे बढ़ने का रोमांच महसूस कर रहा है, दूसरी और “मातम के मसीहा” सिर्फ अंधेरों की बातें कर रहे हैं। इन्हें परास्त करने का अर्थ होगा भारत को अंधेरों से मुक्त करना।एक लंबे समय के बाद भारत एक नई करवट लेने को आतुर दिख रहा है। पिछला समय याद करें, विभिन्न तथाकथित सेकुलर सरकारों के कालखंडों में हिन्दुत्व किंवा भारतीय अस्मिता पर जितने प्रहार हुए, उन्होंने मुगलों और अंग्रेजों के राज की याद दिला दी। हिन्दू बहुल देश में हिन्दू हित की बात करना ही एक बड़ा अपराध बना दिया गया था। हिन्दू- मुस्लिमों के बीच दरार को चौड़ा करवाना, दंगे करवाना, हिन्दू संवेदनाओं पर कुठाराघात करना तथाकथित सेकुलर शासन की पहली पहचान बना दी गई। हिन्दू संगठनों की शिक्षा संस्थाओं पर अमर्यादित और अन्यायपूर्ण शिकंजे कसे गए, पाठक्रमों में हिन्दू मान्यताओं का मजाक उड़ाया गया, जनजातीय क्षेत्रों में हिन्दुओं के छल-कपट से मतांतरण को खुली छूट दी गई, हिन्दू संगठनों पर प्रतिबंध लगाए गए, उनकी इस प्रकार की छवि प्रसारित की गई मानो वे देश की एकता के लिए नहीं बल्कि देश तोड़ने के लिए काम कर रहे हों। यह स्थिति इस देश को अस्वीकार्य थी, यहां की जनता को अस्वीकार्य थी। फलत: हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों द्वारा देशभर में राष्ट्राभिमान और अस्मिता की रक्षा के ऐसे प्रखर आंदोलन प्रारंभ हुए जिनके कारण पहली बार उन लोगों के हाथों में सत्ता आई जो हमारे वैचारिक आंदोलन की देन कहे जा सकते हैं। 28-28 दलों का गठबंधन, राजनीतिक विचारधाराओं मे तीव्र मतभेद, लेकिन इसके बावजूद ये सब उस राजनीतिक दल के नेतृत्व में इकट्ठा हुए जिस पर प्रखर राष्ट्रवाद की भूमिका का आरोप लगाकर अब तक आघात किए जाते रहे थे। यह भारतीय राजनीति में एक अत्यंत आश्चर्यजनक घटनाक्रम हुआ, जिसे सफल बनाने में एक मात्र कारण रहा “भारत सर्वोपरि” की भावना।अभी तो एक अच्छी शुरुआत हुई कही जा सकती है। इसे और आगे बढ़ाने तथा भारत को परम वैभव के लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए आवश्यक है कि अंधेरे के वकीलों को पूरी एकजुटता के साथ परास्त किया जाए तथा उन्हें पूर्ण बहुमत के साथ जिताया जाए जो भारत को विजयशाली बना रहे हैं।5

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