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मेनका गांधी, सांसद, लोकसभा
ये सब बहाने छोड़िए, शाकाहारी बनिए यदि सभी शाकाहारी बन जाएंगे तो इतने जानवरों का क्या करेंगे?
-संजय नाथ
अर्पित अपार्टमेंट्स, जे.सी. रोड, लालपुर, रांची (झारखंड)
ज्यों-ज्यों शाकाहार बढ़ता है, भोजन के लिए पाले जाने वाले पशुओं की संख्या में शनै: शनै: कमी आएगी, क्योंकि उनके लिए तब बाजार और ग्राहक उपलब्ध नहीं होंगे। शेष बचे पशुओं की समाज द्वारा सहानुभूतिपूर्वक देखभाल की जाएगी।
यदि हम पशुओं का वध करना रोक दें तो क्या कई रीति-रिवाज, परम्पराएं और रोजगार समाप्त नहीं हो जाएंगे?
सुमित कौशिक
बर्तन वाली गली, हल्द्वानी (उत्तराञ्चल)
यह गलत धारणा है कि हम परम्पराओं तथा रोजगार को बचाने के लिए मांस खा रहे हैं। कुछ रीति-रिवाजों तथा परम्पराओं को समय के साथ समाप्त होना ही होता है, जैसे-दास प्रथा, सार्वजनिक रूप से फांसी, नस्लवाद, सती प्रथा, ठगी, पशु-बलि, महिलाओं तथा दलितों को मन्दिरों से अलग रखना, वर्ण-व्यवस्था, चीन में पैर बांधने की प्रथा, रोम में तलवारबाजी की प्रतियोगिताएं, पशुओं का शोषण तथा गुलाम बनाना आदि। उपरोक्त रीति-रिवाजों की समाप्ति से मानव जाति को कोई विशेष हानि नहीं हुई है। पशु-वध की समाप्ति के लिए भी विश्वासपूर्वक ऐसी बात कही जा सकती है। प्रत्येक युग में नए व्यापार पनपते हैं। क्या सिन्थेटिक इसलिए नहीं पहनना चाहिए, क्योंकि इसका अर्थ होगा कई जुलाहों का रोजगार समाप्त हो जाना? अथवा कार इसलिए नहीं लेनी चाहिए क्योंकि इससे घोड़ा-तांगा बन्द हो जाएगा? कपड़े धोने की मशीन पर भी प्रतिबन्ध होना चाहिए, क्योंकि इससे धोबी प्रभावित होते हैं।
कसाइयों तथा पशुओं के अवैध परिवहनकर्ताओं का व्यापार समाप्त होने के बाद दया व करुणा के कई गुना बढ़ने से मानव जाति लाभान्वित होगी। अन्य प्रकार से भी हम बहुत अधिक बेहतर होंगे- जंगल सम्पोषित हो जाएंगे, जलवायु स्थिर हो जाएगी, पानी जैसे परमावश्यक संसाधनों के लिए कम झगड़े होंगे, मानव पोषण के लिए भूमि मुक्त हो जाएगी और भोजन सस्ता हो जाएगा।
मानव के लिए अनेक रोजगार हैं, जिन्हें नैतिक रूप से किसी बेहतर रोजगार के बदले त्यागा जा सकता है। पशु पर यातना तथा शोषण की समाप्ति के साथ ही मानव के शोषण तथा क्रूरता से मुक्त एक बेहतर जीवन की संभावना है।
(लोग अक्सर कहते हैं कि “मानव ने सदैव ही पशुओं को खाया है”, जैसे कि यह इस प्रक्रिया को जारी रखने के लिए कोई न्यायोचित कारण हो। इस तर्क के अनुसार हमें किसी व्यक्ति को अन्य की हत्या करने से भी नहीं रोकना चाहिए, क्योंकि यह भी प्राचीनकाल से ही होता आ रहा है। यह कहना है 1978 में नोबल पुरस्कार पाने वाले आईजैक बाशेविस सिंगर का।)
यदि मांसाहार के लिए मैं पहले से मरे हुए पशु का प्रयोग करुं तो इसमें गलत क्या है?
प्रेम गुप्ता
झा कालोनी, पन्त नगर, जिला- उधम सिंह नगर (उत्तराञ्चल)
“पर मैंने पशु नहीं मारा”, यह एक आम बहाना है। मांस के लिए पशुओं को उपभोक्ताओं की मांग पर (बाजार की मांग के द्वारा) और उनके वित्तीय समर्थन (भुगतान के द्वारा) से मारा जाता है। चुराई हुई वस्तुओं के प्राप्तकर्ता को समाज इसलिए निर्दोष नहीं मान लेता क्योंकि उसने “डकैती नहीं डाली।”
वे लोग जो दावा करते हैं कि कई उत्पाद ऐसे पशुओं से निर्मित हैं जिनकी मृत्यु प्राकृतिक रूप से हुई थी, झूठ है। प्राकृतिक मौतें पशु उत्पादों की भारी मांग की पूर्ति नहीं कर सकतीं। जैसे खादी ग्रामोद्योग एक दिन में एक लाख जोड़ी जूतें बेचता है, तो क्या वे जूते बनाने से पहले दूरदराज के किसी गांव में किसी गाय के मरने का इन्तजार करते हैं, नहीं। वे भी उसी प्रकार के जूतें बेचते हैं जैसा कि कोई अन्य जूता निर्माता।
पशु कल्याण आंदोलन में भाग लेने के इच्छुक पाठक श्रीमती मेनका गांधी से 14, अशोक रोड, नई दिल्ली-110001 के पते पर सम्पर्क कर सकते हैं।
श्रीमती मेनका गांधी
“सरोकार” स्तम्भ
द्वारा, सम्पादक, पाञ्चजन्य
संस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, झण्डेवाला, नई दिल्ली-110055
इस स्तम्भ में हर पखवाड़े प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और शाकाहार की समर्पित प्रसारक श्रीमती मेनका गांधी शाकाहार, पशु-पक्षी प्रेम तथा प्रकृति से सम्बंधित पाठकों के प्रश्नों का उत्तर देती हैं। अपना प्रश्न भेजते समय कृपया निम्नलिखित चौखाने का प्रयोग करें।
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