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सद्दाम के साथ भी बेहतर बर्ताव<p style=font-weight:b

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Dec 12, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Dec 2004 00:00:00

सद्दाम के साथ भी बेहतर बर्ताव

-जितेन्द्र बजाज

पुलिस ने चेन्नै उच्च न्यायालय में दावा किया है कि कांची कामकोटि पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती ने पुलिस हिरासत में पूछताछ के दौरान हत्या का अपराध “कबूल” कर लिया और उसके पास श्री जयेन्द्र सरस्वती के “टूट जाने” और “अपराध कबूल करने” का वीडियो टेप है। वादी पक्ष के अधिवक्ता ने न्यायालय को यह भी बताया कि स्टार न्यूज पर दिखाए गए पूछताछ, अपराध कबूल करने और टूट जाने के जो ब्यौरे प्रसारित किए गए, वे वस्तुत: सही हैं। (उल्लेखनीय है कि पूज्य शंकराचार्य जी से पूछताछ के दौरान रिकार्डिंग करने की बात कही गई है।)

पुलिस के इस दावे पर संदेह के बादल छाए हुए हैं। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी ने स्वयं पुलिस के इस दावे को झूठा और मनगढ़न्त बताया, जब जेल में उनसे मिलने भाजपा की वरिष्ठ नेता श्रीमती सुषमा स्वराज और श्री राधाकृष्णन गए। लेकिन पुलिस के दावे में चौंकाने वाली बात यह नहीं है कि शंकराचार्य जी ने कथित रूप से अपराध कबूल लिया है बल्कि ऐसा कहकर पुलिस ने अप्रत्यक्ष रूप से यह स्वीकार कर लिया है कि उन्होंने पूज्य स्वामीजी के साथ सामान्य पुलिसिया तरीके अपनाए और उन्हें अपराध कबूल करने, टूट जाने और रोने के लिए मजबूर किया। राज्य सरकार द्वारा किए गए घृणित कृत्य की भयावहता की कल्पना कीजिए। सरकार उच्च न्यायालय के समक्ष औपचारिक रूप से कबूल कर रही है कि उसने आदरणीय जगद्गुरु शंकराचार्य जी, जिन्हें लाखों लोग जीवित देवता मानते हैं, पर पुलिसिया तरीके आजमाए। दु:खद यह भी है कि न्यायालय ने इस कार्रवाई के प्रति हल्की-सी भी असहमति नहीं जताई।

हम कहां पहुंच गए हैं? मीडिया की विभिन्न विधाओं सहित राज्य और उसके विविध अंग भारतीय सभ्यता और धार्मिक संवेदनाओं के प्रति पूरी तरह से असंवेदनशील हो गए हैं। और पूरा भारत चुपचाप खड़ा तमाशा देख रहा है, जब एक राज्यसत्ता, उसका तंत्र और मीडिया हमारी संवेदनशीलता पर कीचड़ उछाल रहा है।

कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि विश्व में कहीं और एक श्रद्धेय व्यक्ति या सार्वजनिक क्षेत्र के किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति पर इस तरह के दबाव डालने के तरीके अपनाए जा सकते हैं। एक मानक प्रक्रिया यह है कि जब किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लगता है तो सावधानीपूर्वक अकाट्य और वस्तुनिष्ठ तथ्य इकट्ठे करने के बाद उसके खिलाफ मामला तैयार किया जाता है। हिरासत में बल प्रयोग कर अपराध कबूल करवाना लम्बे पुलिस रिकार्ड वाले अपराधियों के मामले में भी निंदनीय माना जाता है। गंभीर अपराध होने पर भी प्रतिष्ठित व्यक्तियों पर इस प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं किया जाता। यहां तक कि इराक पर कब्जा करने वाली अमरीकी फौजें, जिनसे सभ्य बर्ताव की उम्मीद नहीं की जा सकती, वह भी सद्दाम हुसैन के खिलाफ इस तरह के तरीके अपनाकर मुकदमे बनाने की नहीं सोच सकती।

मगर भारत में राज्य सत्ता इससे भी आगे चली गयी है। उसने उच्च न्यायालय में कबूल किया है कि शंकराचार्य जी से अपराध कबूल करवाने की सारी प्रक्रिया का वीडियो तैयार किया गया और न्यायालय को जानकारी देने से पहले कुछ चुने हुए टीवी चैनलों को यह खबर लीक हो गई। उसी पर आधारित काल्पनिक ब्यौरा टीवी चैनलों पर दिखाया जा रहा है। इसी के साथ बहुत से ऐसे आरोप भी लगाए गए जिनका इस मामले से कोई संबंध नहीं था। और यह सब न्यायालय में हलफनामा दाखिल करने से पहले हीे प्रेस को बता दिया गया था। पर न्यायालय ने पुलिस की कार्रवाई और मीडिया को इसका एक अंग बना लेने की कोशिश पर हल्की-सी भी असहमति नहीं जताई।

लगता है कि राज्य सरकार ने पूज्य शंकराचार्य के खिलाफ खुली जंग का ऐलान कर दिया है। एक बड़ा जांच दल बनाया गया है और आम लोगों से कहा जा रहा है कि वे मनगढ़ंत आरोप लगाएं। शासन ने प्रत्येक शिकायत पर जांच का वादा भी किया है। आज नजारा यह है कि तरह-तरह के लोग पूज्य आचार्य द्वारा पिछले कई दशकों में किए गए “कथित अपराधों” के किस्से लेकर पुलिस और मीडिया के सामने आ रहे हैं। भारत की उच्च अदालतें अपने सर्वोपरि होने का दावा करती हैं। उनका दावा है कि उन्हें संविधान ने यह अधिकार दिया है कि हर मामले में पूर्ण न्याय के लिए वे हर वह कदम उठा सकती हैं, जिन्हें वह जरूरी समझती हैं। फिर आदरणीय शंकराचार्य के साथ इतने स्पष्ट रूप से अन्याय क्यों किया जा रहा है?

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