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शंकराचार्य जी से जेल में भेंट का

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Dec 12, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Dec 2004 00:00:00

आंखों देखा हाल

शंकराचार्य जी ने सुषमा स्वराज से कहा-

मेरे बारे में सब झूठा प्रचार

किया जा रहा है

राज्यसभा में भाजपा की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज गत 29 नवम्बर को शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी से मिलने वेल्लोर जेल गईं। वहां उन्होंने जो देखा और महसूस किया वह उनसे साक्षात्कार के आधार पर उन्हीं के शब्दों में यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। -सं.

सींखचों में शंकराचार्य जी को देख फूट-फूट कर रो पड़ीं सुषमा स्वराज

चेन्नै से वेल्लोर लगभग ढाई-तीन घंटे का रास्ता है। वेल्लोर में ही सबसे बड़ी जेल है जो कांची से लगभग 45 मिनट से एक घंटे के रास्ते पर है। हम दिल्ली से चेन्नै पहुंचते ही हवाई अड्डे से वेल्लोर के लिए रवाना हुए। लगभग ढाई बजे वेल्लोर जेल पहुंचे तो द्वार पर जेल अधीक्षक हमें लेकर भीतर गए। मेरे साथ तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष श्री सी.पी.राधाकृष्णन थे। उन्होंने हमें अपने दफ्तर में बैठाया और कहा कि मैं स्वामी जी को बताकर आता हूं। स्वामी जी से सप्ताह में तीन दिन मिलने का समय होता है-सोमवार, बुधवार और बृहस्पतिवार। एक दिन में तीन लोग मिल सकते हैं यानी सप्ताह में कुल नौ लोग। जो उनसे मिलने के लिए प्रार्थना भेजते हैं उनके नाम स्वामीजी तक पहुंचाए जाते हैं और वे स्वयं तय करते हैं कि उन्हें किनसे, कब मिलना है।

केन्द्र सरकार वह वीडियो

मंगवाए, जिसका यह कहकर

प्रचार किया जा रहा है कि

इसमें शंकराचार्य जी ने

“अपराध कबूल किया है”

दिल्ली लौटकर श्रीमती सुषमा स्वराज ने एक पत्रकार वार्ता में जो कहा, उसके मुख्य अंश यहां प्रस्तुत हैं।पूज्य शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी से मैं 29 नवम्बर को वेल्लोर जेल में मिलने गई थी। मुझसे बातचीत करते हुए उन्होंने कहा है कि वे पूरी तरह निर्दोष हैं। उन पर लगाए गए सभी आरोप निराधार एवं असत्य हैं। यह प्रचारित किया जाना भी पूरी तरह झूठ है कि उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। इस भेंट में उन्होंने टेलीविजन पर प्रसारित हो रहे इस समाचार का पूरी तरह खंडन किया कि उन्होंने कोई अपराध स्वीकारा है। पूज्य शंकराचार्य जी ने ऐसी किसी भी स्वीकारोक्ति से इनकार किया और इस प्रचार को सरासर झूठ कहा। उन्होंने मुझको अधिकृत करते हुए कहा कि मैं उनकी ओर से मीडिया और सम्पूर्ण देश को यह संदेश दूं कि वे पूरी तरह निर्दोष हैं, उनके विरुद्ध राज्यसत्ता नित नए झूठ फैला रही है और उसे मीडिया के माध्यम से प्रचारित कर रही है।

“मैं पूरी प्रमाणिकता से कहती हूं कि यह पूरा मामला झूठ पर आधारित है। यह प्रचार भी झूठा है कि अभियोजन पक्ष के पास ऐसी कोई “रिकार्डिंग” है जिसमें शंकराचार्य जी ने अपना अपराध स्वीकार किया है। मैं चुनौती देती हूं कि यदि ऐसी कोई “रिकार्डिंग” है तो मीडिया के माध्यम से सामने लायी जाए। केन्द्र सरकार संविधान की धारा 256-257 में दिए गए अधिकारों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार से इस पूरे मामले की विस्तृत रपट मांगे। यह एक राज्य सत्ता द्वारा देश के सबसे बड़े धार्मिक प्रतिष्ठान को ध्वस्त करने और उसके सर्वोच्च व्यक्ति की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का षड्यंत्र है। इस कार्य में राज्य सत्ता ने सरकारी तंत्र का दुरुपयोग किया है। ऐसे में केन्द्र सरकार को हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे रहना चाहिए। प्रधानमंत्री द्वारा राज्य की मुख्यमंत्री को पत्र लिख दिए जाने को कर्तव्य की इतिश्री मान लेना भूल होगी। यदि अदालती कार्यवाही के दौरान व्यवस्था के अन्तर्गत वह “रिकार्डिंग” सार्वजनिक नहीं की जा सकती, तो कम से कम देश के कानून मंत्री स्वयं उस “रिकार्डिंग” को देख लें और देशवासियों को बता दें कि वे राज्य सरकार के दावे से सहमत हैं या नहीं।

शंकराचार्य जी एक व्यक्ति नहीं, संस्था हैं। सनातन परम्परा के प्रतीक एवं वाहक हैं। इसलिए उनके विरुद्ध जो आरोप लगाए गए हैं उनकी सच्चाई अति शीघ्र सामने आनी चाहिए। हम जानते हैं कि न्यायालय में चल रहे वाद में भी अंतत: सच सामने आएगा, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। पर यह कानूनी प्रक्रिया बहुत लम्बी होती है और तब तक मीडिया के माध्यम से दुष्प्रचार कर शंकराचार्य जी की प्रतिष्ठा को धूमिल किया जाता रहेगा। यही राज्य सरकार का षड्यंत्र है। इसलिए शंकररमन हत्याकाण्ड में लिप्त अभियुक्त कथिरमन द्वारा बयान बदलने, पुलिस द्वारा मारपीट किए जाने के कारण शंकराचार्य जी का नाम लिए जाने आदि बयान के बाद राज्य सरकार अन्य कुछ मामलों में शंकराचार्य जी का नाम घसीटने का प्रयत्न कर रही है। इसी से पता चलता है कि राज्य सरकार की मंशा क्या है।

-प्रतिनिधि

मैंने सोमवार को ही मिलने का समय मांगा था और स्वामी जी ने कृपापूर्वक मुझे सोमवार को ही बुला लिया। कुछ ही देर में जेल अधीक्षक आए और हम उनके साथ जेल के भीतर की छोटी सी गली से होते हुए एक सींखचों वाले दरवाजे के पास ले जाए गए। वह एक कोठरी थी, जिसके भीतर हमें शंकराचार्य जी से भेंट करनी थी। वह देखकर ही बहुत अटपटा लगा। हमारे साथ जो पुलिस वाले थे उन्होंने भीतर जाकर बैठने के लिए कहा। वहां चार कुर्सियां बाईं ओर और चार कुर्सियां दाईं ओर थीं। बीच में एक काले पत्थर की मेज थी। शंकराचार्य जी जेल की जिस कोठरी में रहते हैं वहां से उन्हें मिलने वालों से भेंट के लिए यहां लाया जाता है। यह सब देखकर मन भर आया और बैठे-बैठे ही आंखों से आंसू झरने लगे। जेल अधीक्षक हमारे साथ ही बैठे थे। उन्होंने कहा कि स्वामी जी का सेल यहां से दूर है, उन्हें कह कर आते हैं। आठ-दस मिनट बाद सामने के दरवाजे से शंकराचार्य जी ने प्रवेश किया। उन्हें देखते ही मैं खुद को रोक नहीं पाई। वे मेज के दूसरी ओर बैठे। पत्थर की मेज पर ही मैंने माथा टिकाकर उनको प्रणाम किया और मैं कुछ कह न पाई।

मेरा माथा उठ ही नहीं रहा था। मैं जीवन में कभी जार-जार नहीं रोई, पर शंकराचार्य जी को जेल की उस कोठरी में देखकर मेरी भावनाओं का बांध टूट पड़ा। रोते हुए मेरी हिचकियां नहीं रुक रही थीं। यह दृश्य देखकर शांत भाव से उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखा, “नारायण- नारायण” कहा और बोले, “खुद को संभालो, सब ठीक हो जाएगा।”

मैंने कहा, स्वामी जी यह सब कैसे हुआ?

वे बोले, (शायद तनिक व्यंग्य के साथ) तुम्हारी मित्र ने ही किया। तुमने तो उसको गले लगाया था न।

मैंने कहा, जी स्वामी जी। मित्र तो मैंने कहा था पर वह आपकी तो शिष्या थी। आपके चरणों के पास बैठी थी। क्या हो गया उसे?

स्वामी जी ने वहां बैठे पुलिस वालों की ओर संकेत करते हुए कहा- हो गया, हो गया। यहां तो नहीं बता सकता।मैंने पूछा- स्टार टी.वी. पर दो दिन से लगातार खबरें आ रही हैं जिसमें कहा जा रहा है कि आपने सब आरोप स्वीकार कर लिए हैं।

स्वामी जी ने कहा, ये बातें पहले समाचार पत्रों में भी छपवाईं गईं। सब झूठ है, सब झूठ है।

मैंने पूछा- कहा जा रहा है कि आपने 10 मिनट के लिए संयम छोड़ दिया था आपने जयललिता को कामाक्षी अम्मा कहा?

स्वामी जी बोले- अम्मा? देवी? सब झूठ है, सब झूठ है।

मैंने कहा- क्या यह सब मैं बाहर बता दूं?

स्वामी जी ने कहा- हां, सबको प्रकट रूप से कहो, यह सब जो हो रहा है सब झूठ है। स्टार और टेलीविजन पर आया कि मैंने सब अपराध माना है वह भी झूठ है।

जाने का समय हो रहा था जेल अधीक्षक ने कहा कि अभी कुछ मिनट और हैं अभी आप बैठ सकती हैं। मैंने उनसे दिनचर्या पूछी। शंकराचार्य जी ने बताया कि सुबह उठता हूं, स्नान और पूजा के बाद दूध लेता हूं फिर एकांत में बैठता हूं। दिन में दही और अन्न लेता हूं। खूब मन लगाकर हृदय से पूजा करता हूं। कोई शिकायत नहीं है, कोई शिकायत नहीं है। पूर्व जन्म के पाप हैं। कोई आपत्ति नहीं।

साफ दिख रहा था कि वे भीतर से क्या महसूस कर रहे हैं और बाहर से वे शांतमना होकर सब कुछ इश्वरेच्छा मान रहे थे।

भारी मन से उन्हें प्रणाम कर और मन में इस संकल्प के साथ कि इस दु:स्थिति को हर हाल में बदलना ही है, हम बाहर निकल आए।

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