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-आर. बालशंकर
संपादक, आर्गेनाइजर
भारतीय मुस्लिम लीग के नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य पी.वी. अब्दुल वहाब इन दिनों हर उस वजह से सुर्खियों में छाए हुए हैं जिस वजह से भले लोग बचना चाहते हैं।
राज्यसभा सदस्य बनने के बावजूद यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि उनकी भारतीय नागरिकता के बारे में सही स्थिति क्या है। वे प्रवासी भारतीय (एन.आर.आई.) के सभी फायदे और विशेषाधिकार का लाभ उठा रहे हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि प्रवासी भारतीय राज्यसभा सदस्य नहीं बन सकते। राज्यसभा सदस्य के लिए नामांकन भरते समय अपनी नागरिकता और सम्पत्ति की घोषणा करना अनिवार्य होता है। वहाब की घोषणा क्या है और किस प्रकार उन्होंने किस कायदे से बचाव किया, यह समझ नहीं आया है। केरल से आने वाली रपटों के अनुसार न केवल वहाब राज्यसभा के सदस्य हैं, बल्कि प्रवासी भारतीय भी हैं, जो केरल में सत्तारुढ़ संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा के उम्मीदवार के रूप में निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं।
वहाब के विवादास्पद नामांकन से मुस्लिम लीग में भीतरी विद्रोह जैसी स्थिति भी पैदा हो गई है, जहां उसके प्रमुख पन्नकड़ शिहाब टंगल की “सर्वेषाम अविरोधेन” वाली स्थिति का मजाक उड़ाया जा रहा है।
अगर मुस्लिम लीग के नामांकन के बाद वहाब भारतीय नागरिक बन गए हैं तो उन्हें न केवल अपनी तमाम सम्पत्ति का ब्यौरा देना होगा बल्कि भारतीय नागरिक द्वारा दिया जाने वाला आयकर भी देना होगा। क्या वहाब इसका कोई दस्तावेजी प्रमाण दे सकते हैं?
केरल में अब्दुल वहाब बहुत विवादास्पद व्यक्ति के रूप में विख्यात हैं। एक भले और हर काम करवा सकने में समर्थ व्यक्ति के नाते वे स्वयं को प्रचारित करते हैं। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे का वहाब के नामांकन और उससे उठे विवाद पर चुप्पी साधना स्वयं में इस बात का प्रमाण है कि धनबल और भुजबल के आधार पर सेकुलरों की चुप्पी भी हासिल की जा सकती है। अब असली सवाल यह है कि एक प्रवासी भारतीय राज्यसभा का सदस्य कैसे बना और मुस्लिम लीग ने इस बार अपने वरिष्ठ नेता जी.एम.बनातवाला की उम्मीदवारी को शहीद कर करोड़पति वहाब के लिए जगह कैसे बनाई।
यह पूरा मामला तब सामने आया जब कोच्चि से प्रकाशित मलयालम दैनिक जन्मभूमि ने इस पर एक विस्तृत रपट प्रकाशित की। इस रपट के छपते ही क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी (आर.एस.पी.), जो सत्तारूढ़ मोर्चे में शामिल घटक दल है, ने इस पर आपत्ति उठाई और वहाब के बारे में माक्र्सवादी खामोशी पर क्षोभ व्यक्त किया। इस प्रकरण से न केवल कांग्रेस और सत्तारूढ़ लोकतांत्रिक मोर्चा शर्मनाक रक्षात्मक स्थिति में पहुंच गया है बल्कि मुस्लिम लीग के लिए भी इस स्थिति का जवाब देना कठिन हो गया है।
वहाब की कथा के अनेक रोचक पहलू हैं। कुछ सूत्रों के अनुसार वहाब का देश के कट्टर इस्लामी संगठनों के साथ गहरा सम्बंध है। कुछ का तो यहां तक संदेह है कि कुछ समय पहले मराड में मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा मछुआरों की हत्या की घटना में भी वहाब का हाथ हो सकता है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार केरल के मुख्यमंत्री ए.के.एंटोनी को केरल पुलिस विभाग से वहाब के संदिग्ध रिश्तों के बारे में रपट मिली है। परन्तु चूंकि वहाब कांग्रेस नेतृत्व में केरल में सत्तारूढ़ संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे के साथ शामिल हैं, एंटोनी ने यह रपट दबा दी।
मुस्लिम लीग में सत्ता का संघर्ष अजीब मोड़ लेता जा रहा है। कुछ वर्ष पहले तक इब्राहिम सुलेमान सेठ और फिर जी.एम. बनातवाला इस सीट से राज्यसभा में जाते रहे हैं। पर दोनों को ही मुस्लिम लीग की भीतरी राजनीति ने अपमानित करके राज्यसभा की उम्मीदवारी से हटाया और अब इस पर केरल गुट का कब्जा हुआ है। उधर माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में भी दरारें दिखने लगी हैं। राज्य माकपा के सचिव पीनरई विजयन वहाब के प्रति झुकाव रखते हैं तो विपक्षी नेता तथा माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य वी.एस. अच्युतानंदन ने धमकी दी है कि वे वहाब के नामांकन को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देंगे। विजयन माकपा के मलयालम चैनल कैराली टी.वी. के निदेशक भी हैं। कहा जाता है कि इस चैनल को वहाब से वित्तीय सहायता मिलती है।
अखिल भारतीय फारवर्ड ब्लाक के सचिव श्री डी. देवराजन ने कहा है कि वामपंथी दलों में से एक आर.एस.पी. द्वारा जब यह मुद्दा उठाया गया तो माकपा को यह विषय तुरंत निर्वाचन अधिकारी के समक्ष उठाना चाहिए था। इस प्रकार वामपंथी दल सबके सामने यह प्रकट कर देते कि मुस्लिम लीग धनपतियों को आगे बढ़ा रही है।
अब वहाब के सामने दिक्कत यह है कि या तो वह दावा करें कि वे भारतीय नागरिक हैं और यह स्वीकार करें कि वे प्रवासी भारतीय हैं, जिस स्थिति में उनकी राज्यसभा सदस्यता खत्म हो सकती है। अंत में, हालांकि कहा जाता है कि वहाब ने नामांकन भरने से पूर्व रात्रि में अपनी सम्पत्ति की घोषणा करते हुए कहा कि उसके पास 130 करोड़ रुपए की सम्पत्ति है, परन्तु मामला इतना छोटा व आसान नहीं लगता।
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