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स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के जन्मदिवस (28 सितम्बर) पर विशेषएक सूर्य है, एक चंद्र है…और केवल एक ल

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Oct 10, 2004, 12:00 am IST
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दिंनाक: 10 Oct 2004 00:00:00

स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के जन्मदिवस (28 सितम्बर) पर विशेषएक सूर्य है, एक चंद्र है…और केवल एक लताजी-निर्मला भुराड़ियाएक रेडियो विज्ञापन में लताजी का खनकता हुआ स्वर सुनाई पड़ता है… “मधुबाला जी कहती थीं मेरे लिए लता मंगेशकर ही गाएंगी…”, यह वाक्य पूरा भी नहीं होता कि लताजी की हंसी गूंजती है, मद्धम-सी हंसी- जैसे हंसी भी गा रही हो। हंसी में यह उल्लास भी साफ झलकता है जो मधुबाला के विशेष आग्रह से उन्हें मिला है। सचमुच यही तो है लता जी के गायन की विशेषता। भावनाओं के उतार-चढ़ाव दर्शाने के लिए वे सिर्फ गीतकार द्वारा लिखे शब्दों पर ही निर्भर नहीं रहतीं। एक खास अहसास उनके गायन में महसूस होता है। फिर पाकीजा के गीत “यूं ही कोई मिल गया था, सरे राह चलते-चलते” में अगर अनदेखे, अछूते प्रेम की रहस्यमयता सुनाई देती है तो उनके गाए मीरा के भजनों में प्रकट होने वाली आध्यात्मिकता आत्मा के द्वार खटखटा देती है। जब वे किसी किशोरी के लिए गाती हैं तो उनकी आवाज से किशोरी वाला उल्लास झलकता है। यही वजह है कि मधुबाला, नर्गिस, कामिनी कौशल से शुरू होकर हेमामलिनी, रेखा, श्रीदेवी, माधुरी की पीढ़ी को पार करती हुई लता जी की आवाज आज काजोल और प्रीति जिंटा तक को दी जा रही है। क्योंकि लताजी एक निर्झर हैं जो सदियों से सदियों तक बह रही हैं।लताजी का संगीत महज लोकप्रिय संगीत नहीं है, जैसा कि फिल्म संगीत या सुगम संगीत हो सकता है। उनका गायन लोकप्रिय तो है ही, मंजा हुआ शास्त्रीय गायन है। यही वजह है कि शास्त्रीय संगीत के गायकों और प्रेमियों ने भी लताजी के संगीत को उच्च स्तर का माना है। फिल्म संगीत से परहेज रखने वालों ने भी लताजी के मामले में ऐसा नहीं किया। क्योंकि लताजी का गायन इतना परिष्कृत है कि उसे “फिल्मी” कहकर एक ओर रखा ही नहीं जा सकता। मालवा के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक कुमार गंधर्व कहते हैं, “लता के स्वरों में निर्मलता, कोमलता और मुग्धता है। उनका जीवन के प्रति जो दृष्टिकोण है वह उनके गायन में झलकता है।” सामान्यजन शायद इस बात से बहुत परिचित न हो कि लता जी ने सिर्फ गीत ही नहीं गाए बल्कि संगीत निर्देशन भी किया है। वह भी “आनंदघन” नाम से। लता जी ने इस नाम से राम-राम पाहुणे, मोहित्यांची मंजुला, मराठ तितुका मेलवावा, साथी माणसं, ताम्बड़ी माटी इत्यादि फिल्मों के लिए संगीत सृजन किया है।नाम की बात चली तो यह बात भी हो जाए कि लता से इतर उनका नाम आनंदघन ही नहीं रहा। अलग-अलग आत्मीयजन के लिए उनके अलग-अलग नाम रहे हैं। लताजी का जन्म नाम हेमा है तो उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर उन्हें हृदया कहकर पुकारते थे। संगीतकार सी. रामचंद्र उन्हें मराठी नूरजहां कहते थे। आम श्रोता उन्हें स्वर साम्राज्ञी से लेकर स्वर कोकिला तक तरह-तरह के विशेषणों से अलंकृत करता है। फिर भी कहा तो यही जाएगा कि लताजी को विशेषण देने में कोई भी शब्द असमर्थ है। आखिर यूं ही नहीं कहा जाता कि दुनिया में एक ही चंद्र है, एक ही सूर्य और एक ही लताजी। गायिका आशा भोंसले अपनी बहन के बारे में कहती हैं, “लता दीदी- न भूतो न भविष्यति”। सच ही है लताजी इतने सारे संजोगों और खूबियों का प्रतिफल हैं कि बस… और क्या कहा जाए।24

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