मानवाधिकार आयोग की नजर मेंदर्द में भी भेदभाव!!-सूर्य नारायण सक्सेनाएक रियांग मां और उसका दुधमुंहा बच
May 12, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

मानवाधिकार आयोग की नजर मेंदर्द में भी भेदभाव!!-सूर्य नारायण सक्सेनाएक रियांग मां और उसका दुधमुंहा बच

by
Oct 10, 2004, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 10 Oct 2004 00:00:00

मानवाधिकार आयोग की नजर मेंदर्द में भी भेदभाव!!-सूर्य नारायण सक्सेनाएक रियांग मां और उसका दुधमुंहा बच्चा-इनके क्या कोई मानव अधिकार नहीं है?लोकतंत्र में मानव अधिकार एक पवित्र और रक्षणीय सिद्धांत माना गया है। भारतीय संसद ने भी सन् 1993 में एक मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम बनाया और इसी नाम से एक निकाय अर्थात् राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग गठित किया। मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अधीन आयोग को एक दीवानी न्यायालय (सिविल कोर्ट) की शक्तियां दी गई हैं। यद्यपि आयोग एक प्रकार से देश के हर नागरिक के मानव अधिकारों का प्रहरी है, फिर उसे शिकायत रहती है कि उसको शक्ति नहीं दी गई है। वह केवल निर्देश दे सकता है, पर उसका पालन न करने पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकता। यह भी जरूरी नहीं कि आयोग के पास लिखित शिकायत आने पर ही वह जांच करे। वह समाचार पत्रों में छपी रपटों के आधार पर स्वयं अपनी ओर से भी कार्रवाई कर सकता है। पर मेरा स्वयं का और अन्य बहुत से लोगों का यह अनुभव है कि आयोग की नीति भेदभावपूर्ण है। जिन मामलों में उसे अधिक प्रचार मिलने की उम्मीद होती है, उनमें वह बहुत सक्रियता और उत्साह दिखाता है। और जो मामले प्रचार की दृष्टि से रूखे-सूखे होते हैं उनमें या तो वह बिल्कुल रुचि नहीं लेता या एक रपट मांगकर चुप बैठ जाता है।उदाहरण के लिए, गोधरा स्टेशन पर रेलगाड़ी में आग लगाकर 58 रामभक्तों की जान लेने के कारण गुजरात में जो दंगे हुए, उनमें बडोदरा की एक बेस्ट बेकरी में 14 मुसलमान मारे गए थे। इस मामले के अभियुक्तों को गुजरात उच्च न्यायालय ने प्रमाण के अभाव में दोषमुक्त कर दिया। इस पर अपनी मर्यादा को भूलकर मानवाधिकार आयोग सर्वोच्च न्यायालय में जा पहुंचा। सर्वोच्च न्यायालय ने आयोग की शिकायत को एक जनहित याचिका के रूप में स्वीकार कर लिया। इसी प्रकार पिछले दिनों अमदाबाद में तीन आतंकवादियों के साथ मुम्बई के पास स्थित मुंब्राा की एक मुस्लिम लड़की इशरत जहां के मारे जाने पर लेकर सेकुलर बिरादरी और मीडिया ने खूब शोर मचाया। कहा गया कि इशरत एक सीधी-सादी, कालेज में पढ़ने वाली निर्दोष लड़की थी। यह दुष्प्रचार तब जाकर शांत हुआ और सेकुलर नेताओं और मीडिया को मुंह की खानी पड़ी, जब एक आतंकवादी गुट के अंत:क्षेत्र (वेबसाइट) ने यह घोषित कर दिया कि इशरत उसके आतंकवादी दल की सदस्य थी और जिहाद करते हुए “शहीद” हुई है। ऐसे प्रचार वाले मामले में भला मानवाधिकार आयोग कहां चूकने वाला था। उसने भी अपनी ओर से गुजरात सरकार से रपट मांग ली। अंत:क्षेत्र पर यदि इस दुष्प्रचार का पर्दाफाश न होता तो यह आयोग पता नहीं क्या-क्या करता। … ये कुछ उदाहरण हैं जब मानवाधिकार आयोग अपनी मर्यादा को भूलकर राजनीतिक संघर्ष का अखाड़ा बन गया। मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 18 में ऐसे छह कदम गिनाए गए हैं जो आयोग अपनी जांच के बारे उठा सकता है, इनमें एक विकल्प न्यायालय में जाना भी है। लेकिन यह विकल्प तभी अपनाया जाना चाहिए जब आयोग पहले अपनी ओर से जांच करे और पाए कि मानवाधिकार का उल्लंघन हुआ है और सरकार, पुलिस या उल्लंघनकर्ता पीड़ित व्यक्ति के प्रति कुछ करने को तैयार नहीं हैं। बेस्ट बेकरी के मामले में किसी भी वादी या प्रतिवादी ने आयोग से शिकायत नहीं की थी। यहां यह याद रखना आवश्यक है कि किसी भी छोटे या बड़े न्यायालय के निर्णय को, वह चाहे कितना भी कड़वा या गलत दिखाई देता हो, मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता। क्योंकि उसके विरुद्ध अपील हेतु सबके लिए सर्वोच्च न्यायालय का रास्ता खुला है। यदि बेस्ट बेकरी के कथित हत्यारों को किसी भी न्यायालय ने बरी किया तो सम्बंधित पक्षों में से प्रत्येक को सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार था और मानवाधिकार आयोग कोई भी पक्ष नहीं था। इससे यह तो सिद्ध होता ही है कि इस मामले में आयोग ने बहुत सक्रियता दिखाई, क्योंकि यह जाहिरा शेख यानी मुसलमानों का मामला था। अपने अति उत्साह में आयोग यह भी भूल गया कि दंगों की जांच के लिए पूर्व न्यायाधीशों वाले नानावती और शाह आयोग पहले ही जांच कर रहे हैं।दूसरी तरफ मानवाधिकार के घोर उल्लंघन पर आयोग की चुप्पी के सैकड़ों उदाहरण हैं। स्वयं मैंने 12 जून, 2002 को आयोग से शिकायत की थी कि मिजोरम में जातीय दंगों के कारण निकाले गए रियांग (ब्रू) जनजाति के लोग अक्तूबर, 1997 से त्रिपुरा के कंचनपुरा में बनाए गए छह शरणार्थी शिविरों में नारकीय जीवन जी रहे हैं। उनमें से दो शिविरों में, जिनमें लगभग 12 हजार रियांग हैं, मई-जून, 2002 के 42 दिनों में 70 बच्चे तथा बूढ़े हैजा, खूनी पेचिश और डायरिया से मर गए और कोई उनकी सुध नहीं ले रहा है। इतना ही नहीं मैंने इन दोनों शिविरों में बीमारी से मारे गए लोगों की विस्तृत सूची भी आयोग को भेजी थी। किन्तु आयोग ने उस पर ध्यान तक नहीं दिया। मुझे नहीं लगता कि आयोग ने मामला दर्ज भी किया हो। मैंने पुन: 24 अगस्त, 2002 को आयोग के पास आठ संलग्नकों के साथ एक विस्तृत शिकायत भेजी। जिसमें यह भी लिखा था कि रियांग शरणार्थियों के अनुसार 1998 के पहले ही मानसून में 930 लोग गंदा पानी पीने से होने वाली बीमारियों से मर गए थे और 15 अक्तूबर, 1997 से 23 जून, 2002 के बीच 2,442 रियांग शरणार्थी मर चुके थे। अब तो सन् 2004 आ चुका है। ईश्वर जाने कितने और मरे होंगे। शरणार्थियों की प्रतिनिधि संस्था ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री को इस भीषण दुर्दशा के बारे में जो पत्र लिखा था, उसमें उन्होंने स्पष्ट किया था कि ये सब संख्या मुख्य शिविर के जन्म-मृत्यु पंजिका के अनुसार दी गई हैं, सुनी सुनाई नहीं हैं।… यह है राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की संवेदनशीलता और निष्पक्षता का दोहरा चरित्र! क्या हैजा, पेचिश या डायरिया जैसी बीमारियां अनजानी हैं, असाध्य हैं? फिर भी रियांग शरणार्थी शिविरों में कोई व्यवस्था नहीं की गई, उन्हें छोड़ दिया गया है पल-पल मरने के लिए। पर मानवाधिकार आयोग को गुजरात से ही फुर्सत नहीं है।जो जितना करे, उसे उसका उतना श्रेय भी देना चाहिए। मानवाधिकार आयोग ने जम्मू-कश्मीर के शरणार्थी हिन्दुओं की 5 शिकायतों सहित रियांगों के बारे में की गई वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगदेवराम उरांव की शिकायत पर उच्चस्तरीय जांच की। सारी शिकायतों को प्राय: सच पाया और रियांग शरणार्थियों की वापसी के बारे में तीन सिफारिशें भी कीं। साथ ही भारत सरकार के गृह मंत्रालय को सक्रिय भूमिका अदा करने और मिजोरम सरकार पर इन्हें वापस लेकर इनका पुनर्वास करने की जिम्मेदारी डाली। किन्तु दु:ख की बात यह है कि आयोग सिफारिश करने के बाद चुप बैठ गया और सात वर्ष बीत जाने के बाद भी, और एक-दो नहीं लगभग 2500 मौतें हो जाने पर भी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में मामला दर्ज नहीं किया, जैसा कि उसने बेस्ट बेकरी के बारे में किया।32

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

jammu kashmir SIA raids in terror funding case

कश्मीर में SIA का एक्शन : पाकिस्तान से जुड़े स्लीपर सेल मॉड्यूल का भंडाफोड़, कई जिलों में छापेमारी

बागेश्वर बाबा (धीरेंद्र शास्त्री)

पाकिस्तान बिगड़ैल औलाद, जिसे सुधारा नहीं जा सकता : पंडित धीरेंद्र शास्त्री

शतरंज खेलना हराम है… : तालिबान ने जारी किया फतवा, अफगानिस्तान में लगा प्रतिबंध

चित्र प्रतीकात्मक नहीं है

पाकिस्तान पर बलूचों का कहर : दौड़ा-दौड़ाकर मारे सैनिक, छीने हथियार, आत्मघाती धमाके में 2 अफसर भी ढेर

प्रतीकात्मक चित्र

पाकिस्तान में बड़ा हमला: पेशावर में आत्मघाती विस्फोट, बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सैनिकों के हथियार छीने

स्वामी विवेकानंद

इंदौर में स्वामी विवेकानंद की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी स्थापित, मुख्यमंत्री मोहन यादव ने किया भूमिपूजन

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

jammu kashmir SIA raids in terror funding case

कश्मीर में SIA का एक्शन : पाकिस्तान से जुड़े स्लीपर सेल मॉड्यूल का भंडाफोड़, कई जिलों में छापेमारी

बागेश्वर बाबा (धीरेंद्र शास्त्री)

पाकिस्तान बिगड़ैल औलाद, जिसे सुधारा नहीं जा सकता : पंडित धीरेंद्र शास्त्री

शतरंज खेलना हराम है… : तालिबान ने जारी किया फतवा, अफगानिस्तान में लगा प्रतिबंध

चित्र प्रतीकात्मक नहीं है

पाकिस्तान पर बलूचों का कहर : दौड़ा-दौड़ाकर मारे सैनिक, छीने हथियार, आत्मघाती धमाके में 2 अफसर भी ढेर

प्रतीकात्मक चित्र

पाकिस्तान में बड़ा हमला: पेशावर में आत्मघाती विस्फोट, बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सैनिकों के हथियार छीने

स्वामी विवेकानंद

इंदौर में स्वामी विवेकानंद की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी स्थापित, मुख्यमंत्री मोहन यादव ने किया भूमिपूजन

भारत की सख्त चेतावनी, संघर्ष विराम तोड़ा तो देंगे कड़ा जवाब, ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के 3 एयर डिफेंस सिस्टम ध्वस्त

Operation sindoor

थल सेनाध्यक्ष ने शीर्ष सैन्य कमांडरों के साथ पश्चिमी सीमाओं की मौजूदा सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की

राष्ट्र हित में प्रसारित हो संवाद : मुकुल कानितकर

Jammu kashmir terrorist attack

जम्मू-कश्मीर में 20 से अधिक स्थानों पर छापा, स्लीपर सेल का भंडाफोड़

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies