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श्रद्धाञ्जलि

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Oct 10, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Oct 2004 00:00:00

डा. राजा रामन्नामहान वैज्ञानिक और दार्शनिक1974 में पोकरण में पहले परमाणु परीक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सुविख्यात परमाणु वैज्ञानिक डा. राजा रामन्ना का गत 24 सितम्बर को मुम्बई के एक अस्पताल में अवसान हो गया। 79 वर्षीय डा. रामन्ना पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थे। उनका अन्तिम संस्कार उसी दिन मुम्बई के शिवाजी पार्क शवदाह गृह में किया गया। 1925 में कर्नाटक के तुमकुर में जन्मे डा. रामन्ना ने मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि ली थी। आगे उन्होंने पीएच.डी. तक की पढ़ाई लंदन में की। भारत लौटने के बाद वे “टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च” में डा. होमी भामा के साथ कार्य करने लगे। 1965 से 1968 के बीच उन्होंने भारत के परमाणु विखण्डन पर गहन शोध-कार्य किया और थोड़े ही समय में देश को परमाणु मानचित्र पर जगह दिला दी। डा. रामन्ना को 1974 में उस समय काफी प्रसिद्धि मिली, जब पहला परमाणु परीक्षण हुआ। उस समय वे भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई में निदेशक थे। 1974 में परमाणु परीक्षण करने वाले वैज्ञानिक दल का नेतृत्व भी उन्होंने ही किया था।मेरे गुरु व मार्गदर्शक थे डा. रामन्ना-डा. अब्दुल कलाम, राष्ट्रपति1983-87 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष रहे डा. रामन्ना ने लेखक, प्रशासक, दार्शनिक और पियानोवादक के रूप में भी अच्छी ख्याति प्राप्त की थी। वह 1990 में रक्षा राज्यमंत्री और 1978-81 के दौरान सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे। स्व. डा. रामन्ना को श्रद्धाञ्जलि देते हुए राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा, “डा. रामन्ना मेरे गुरु एवं मार्गदर्शक थे। उनके निधन से देश ने एक महान वैज्ञानिक खो दिया है।” वहीं प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने अपने शोक-सन्देश में कहा, “भारत ने अपने सर्वश्रेष्ठ परमाणु वैज्ञानिकों में से एक खो दिया है। भारत की परमाणु क्षमता के विकास और परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को सुचारू रखने में डा. रामन्ना का योगदान लम्बे समय तक याद किया जाएगा।”शोभा गुर्टूअनूठी शैली, अनूठा अंदाजसुगम शास्त्रीय संगीत में ठुमरी और दादरा विधा की मनमोहक आवाज की साम्राज्ञी श्रीमती शोभा गुर्टू अब नहीं रहीं। गत 27 सितम्बर को मुम्बई स्थित अपने आवास पर दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। कर्नाटक के बेलगाम में 1925 में जन्मीं श्रीमती गुर्टू बचपन से ही संगीत के प्रति रुझान रखती थीं। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने अपनी मां श्रीमती मीनीका बाई शिरोडकर से प्राप्त की थी। उनकी मां प्रसिद्ध नृत्यांगना और उस्ताद अलादिया खान की अतरौली जयपुर गायिकी की शिष्या थीं।संगीत के प्रति श्रीमती शोभा की विशेष रुचि और सीखने की ललक देखकर ही उस्ताद धामन खां ने उन्हें शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दी थी। उनकी इस शिक्षा को परिमार्जित करने का काम उस्ताद नत्थन खां ने किया था। हालांकि उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा-दीक्षा ली थी, किन्तु ठुमरी, कजरी, होरी और दादरा जैसे सुगम शास्त्रीय संगीत के विभिन्न आयामों पर भी उनकी बहुत अच्छी पकड़ थी। इस कारण उन्होंने ठुमरी जगत में खूब नाम कमाया। पिछले पांच दशक से ठुमरी के प्रशंसकों के दिलों पर राज करने वाली श्रीमती गुर्टू मराठी और हिन्दी फिल्मों से भी जुड़ी रहीं। उन्हें पद्म भूषण, संगीत नाटक अकादमी, लता मंगेशकर पुरस्कार, साहू महाराज पुरस्कार महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार जैसे अनेक पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था।मुल्कराज आनंदअंग्रेजी साहित्य के स्तम्भअपनी सशक्त लेखनी से भारतीय समाज के यथार्थ अंतर्विरोधों और सरोकारों को शब्द देने वाले मुल्कराज आनन्द नहीं रहे। अंग्रेजी के शीर्ष उपन्यासकारों में से एक श्री आनन्द ने गत 28 सितम्बर को पुणे में अंतिम सांस ली। 99 वर्षीय श्री आनन्द निमोनिया से पीड़ित थे और उन्हें गत 17 सितम्बर को पुणे के जहांगीर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। श्री आनन्द के परिवार में पत्नी और एक पुत्री हैं। श्री आनन्द का जन्म 1905 में पेशावर में हुआ था। अमृतसर के खालसा कालेज से शिक्षा ग्रहण के बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। उच्च शिक्षा उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से प्राप्त की और वहीं से उन्होंने 1929 में पीएच.डी. की। 1935 में प्रकाशित उनकी प्रथम कृति “अनटचेबल” से उन्हें अपार प्रसिद्धि मिली। उन्होंने अनेक कालजयी कृतियों की रचना की। इनमें प्रमुख हैं “टू लीव्ज एंड अ बड” (1937), “द विलेज” (1939), एक्रोस द ब्लैक वाटर्स (1940) और “सोर्ड एंड द सिकल” (1942)। वामपंथी झुकाव वाले श्री आनंद नेहरूवादी नीतियों से बहुत प्रभावी थे।रमेश चन्द्र जैनबहुआयामी व्यक्तित्वटाइम्स आफ इंडिया प्रकाशन समूह के पूर्व कार्यकारी निदेशक और प्रमुख समाजसेवी साहू रमेश चन्द्र जैन का गत 22 अगस्त को नई दिल्ली में निधन हो गया। श्री जैन 79 वर्ष के थे और पिछले एक साल से फेफड़े के कैंसर से जूझ रहे थे। टाइम्स आफ इंडिया समूह से लगभग 40 वर्ष से जुड़े रहे श्री जैन “द टाइम्स आफ इंडिया” के प्रबंध सम्पादक और “नवभारत टाइम्स” के सम्पादक भी रहे थे। टाइम्स समूह के अलावा श्री जैन अनेक संस्थाओं के भी सर्वोच्च अधिकारी रहे। वे “इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी” और पी.टी.आई. के अध्यक्ष भी रहे। नेत्रदान के लिए उन्होंने एक आन्दोलन चलाया था और समय-समय पर नेत्रदान शिविरों का भी आयोजन करते थे। महामना मालवीय मिशन के उपाध्यक्ष के रूप में उन्होंने महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के विचारों को भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने का अथक प्रयास किया था। शिक्षा क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए गुरुकुल कांगड़ी विश्विद्यालय, हरिद्वार ने उन्हें “विद्यावाचस्पति” और बुंदेलखंड विश्वविद्यालय ने “डी. लिट्” की उपाधि से सम्मानित किया था।13

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