तालिबान की राह चला पाकिस्तान
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तालिबान की राह चला पाकिस्तान

by
Jun 7, 2003, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Jun 2003 00:00:00

द रवि शंकर

परवेज मुशर्रफ एक बार फिर संकटों के घेरे में हैं। पाकिस्तान में कट्टरपंथी इस्लामी शक्तियों का सक्रिय होना मुशर्रफ के लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है। तालिबानों के विरुद्ध अमरीका का साथ देने के कारण पहले से ही मुशर्रफ कट्टरपंथियों के निशाने पर थे। इधर अफगानिस्तान की सीमा से सटे पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में इस्लामी कट्टरपंथियों ने शरिअत कानून लागू कर दिया है। प्रांत में इस समय छह मजहबी गुटों के राजनीतिक संगठन मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमाल (एम.एम.ए.) की सरकार है। उसने गत 2 जून को शरिअत कानून लागू करने का प्रस्ताव पारित कर दिया। तालिबानी कानून के समान ही वहां भी अब विद्यालयों में कुरान की भाषा अरबी पढ़ानी जरूरी होगी। पुरुषों के लिए खास प्रकार की दाढ़ी रखना तथा 12 वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियों को बुर्का पहनना अनिवार्य होगा और वे बिना किसी पुरुष को साथ लिए अकेली घर से बाहर नहीं निकल सकेंगी। इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद हस्बा नामक एक अलग विभाग बनाने के लिए भी प्रस्ताव पेश किया गया है। हस्बा विभाग अफगानिस्तान में बनाए गए तालिबानी पुलिस की तर्ज पर बनाया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि एम.एम.ए के गुटों में दो गुट स्पष्ट रूप से तालिबानों के समर्थक हैं। इससे पूर्व एम.एम.ए. सरकार ने सभी प्रशासनिक अधिकारियों को आदेश दिया कि वे रोज पांचों वक्त की नमाज अदा करें और उस समय सभी सरकारी कामकाज बंद रखे जाएं। साथ ही संगीत और वीडियो कैसेटों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। वहां अब कोई पुरुष चिकित्सक महिला रोगी की जांच नहीं कर सकता। महिला खिलाड़ियों हेतु पुरुष प्रशिक्षक और उनकी खबरें लेने हेतु पुरुष पत्रकारों पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। प्रांतीय अधिकारियों ने कहा है कि पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को शरिअत को सम्मान देना होगा। इस प्रकार पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत कट्टर इस्लामी कानून को लागू करने वाला पाकिस्तान का पहला प्रांत बन गया है। इसके साथ ही पूरे प्रांत में कट्टरवादियों की हरकतें भी प्रारंभ हो गई हैं। संगीत के कैसेट बेचने वालों की दुकानें तोड़ी जा रही हैं। बिना बुर्का पहने महिला माडलों के विज्ञापनों पर कालिख पोती जा रही है। पोस्टर फाड़े जा रहे हैं। हालांकि परवेज मुशर्रफ ने इसे तालिबानीकरण कहते हुए शरिअत कानून लागू करने की आलोचना की है। परंतु एम.एम.ए. के नेताओं को इसकी परवाह नहीं है। एम.एम.ए. के महासचिव मौलाना फजलुर्रहमान ने कहा है कि वे किसी भी धमकी का सामना करने के लिए तैयार हैं। वहीं जमात-ए-इस्लामी के नेता अमीर काजी हुसैन अहमद ने कहा है कि मुशर्रफ द्वारा शरिअत कानून की आलोचना करना प्रांतों की स्वतंत्रता पर हमला है। सभी प्रांत संवैधानिक दायरे में अपने यहां कानून बनाने के लिए स्वतंत्र हैं। मुशर्रफ का यह कहना कि जमात तालिबानी इस्लाम चाहती है, इस्लाम का अपमान है। इसके उत्तर में मुशर्रफ प्रांत की विधानसभा को भंग कर सकते हैं लेकिन इससे उनकी मुसीबतें कम होने की बजाय बढ़ेंगी ही। उल्लेखनीय है कि मुल्लाओं के देशव्यापी गठबंधन ने मुशर्रफ के राष्ट्रपति और सैन्य अधिकारी दोनों बने रहने की सीधी आलोचना की है। हालांकि उन्होंने कहा है कि यदि मुशर्रफ शरिअत का कानून लागू करते हैं तो वे यह मांग छोड़ भी सकते हैं। एक मजहबी नेता चौधरी शुजात हुसैन ने कहा है कि यदि मुशर्रफ इस्लामीकरण के 17 सूत्री कार्यक्रम को लागू करते हैं तो एम.एम.ए. एक निश्चित अवधि के लिए उनका राष्ट्रपति और सेना प्रमुख दोनों पदों पर बने रहना स्वीकार कर सकती है। एम.एम.ए. ने धमकी दी है कि यदि मुशर्रफ इसके विपरीत प्रांत द्वारा लागू शरिअत कानून को समाप्त करने का प्रयास करते हैं तो पाकिस्तानी संसद में से उसके 68 सदस्य इस्तीफा दे देंगे। हालांकि इसका कोई सीधा असर मुशर्रफ पर नहीं पड़ेगा लेकिन बड़ी कठिनाई से बनी नवनिर्वाचित पाकिस्तानी सरकार को इससे खतरा पैदा हो सकता है और यदि यह सरकार गिरती है तो मुशर्रफ की स्थिति खराब हो जाएगी।

पाकिस्तानी समाचारपत्र बलूचिस्तान पोस्ट के अनुसार पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत के बाद इस्लामी कट्टरवादियों की नजरें पंजाब और बलूचिस्तान पर टिकी हैं। सूत्रों के अनुसार पंजाब के एक शहर मुल्तान में भी ये लोग महिलाओं को दिखाने वाले विज्ञापनों पर कट्टरवादी कालिख पोत रहे हैं। गत दिनों जमात-ए-इस्लामी की युवा शाखा शबाब-इ-मिल्ली के लगभग 200 सदस्य मुल्तान में पोस्टरों को फाड़ते रहे तथा चित्रों पर कालिख पोतते रहे और पुलिस मूकदर्शक बनी रही।

इस्लामी कट्टरवादियों की सक्रियता केवल पाकिस्तान में बढ़ रही हो, ऐसी बात नहीं है। गत दिनों कुवैत के सबसे बड़े इस्लामी गुट इस्लामिक कांस्टीट्यूशनल मूवमेंट (आइ.सी.एम.) ने कुवैत में शरिअत के अनुसार नए कानून बनाने की मांग की है। गत 7 जून को इसके लिए एक आंदोलन शुरू करते हुए 15 उम्मीदवारों की सूची जारी की गई जो कुवैत की 50 सदस्यीय राष्ट्रीय संसद के लिए होने वाले 5 जुलाई के चुनावों में भाग लेंगे। उनकी प्रमुख मांग कुवैती कानून को इस्लामी कानून में बदलने की है। आइ.सी.एम. के घोषणापत्र में देश के सभी विद्यालयों के पाठ्यक्रम को भी इस्लाम के अनुसार बनाने की मांग की गई है।

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