माटी का मन रामनवमी और पहला बीज-कोष
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माटी का मन रामनवमी और पहला बीज-कोष

by
Oct 8, 2003, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Oct 2003 00:00:00

द डा. रवीन्द्र अग्रवालमध्य प्रदेश में छिदवाड़ा जिले का वनवासी गांव नांदेवानी। रामनवमी का पर्व आया। गांव के सभी लोगों ने रामनवमी मनाने के लिए चंदा इकट्ठा किया। हर्षोल्लास से रामनवमी मनायी। तेरह साल पूर्व की यह रामनवमी गांव वालों के लिए यादगार बन गयी। उत्सव आयोजन के लिए एकत्र किए चंदे में से कुछ राशि शेष रह गयी। आयोजकों ने सोचा कि इस राशि का क्या किया जाए? काफी सोच विचार किया गया। एक विचार आया कि क्यों न इस पैसे से बीज खरीद कर किसानों को दिया जाए और फसल आने पर उनसे डेढ़ गुना बीज वापस ले लिया जाए। इन वनवासियों को बीज खरीदने के लिए प्रतिवर्ष साहूकार की चिरौरी करनी पड़ती थी। ऊंची ब्याज-दर पर पैसा मिलता था और दो से ढाई गुना बीज साहूकार को वापस करना होता था। अत: रामनवमी चंदे के शेष पैसे से बीज खरीदने के विचार पर पूरे गांव में सहमति बनी। पहले वर्ष किसानों को बीज दिया गया और फसल आने पर किसानों ने डेढ़ गुना बीज वापस कर दिया।जिन अनपढ़ समझे जाने वाले वनवासियों ने यह प्रयोग किया, उन्हें भी उस समय पता नहीं था कि उन्होंने पहले बीज-कोष का बीजारोपण किया है। तेरह वर्षों से यह कोष बीज वितरित कर रहा है। जरूरतमंद किसानों को नगद सहायता भी दी जाती है। इस तरह श्रीराम के जन्मदिन पर सहज भाव से शुरु हुआ बीज-कोष किसानों के लिए प्रेरणा केन्द्र और प्रतीक है, वनवासियों की एकजुटता का। हो भी क्यों न? वनवासियों को एकजुट कर ही तो राम ने रावण जैसे शक्तिशाली योद्धा को परास्त किया था। एक बार फिर इन्हीं वनवासियों ने मायावी बहुराष्ट्रीय बीज कम्पनियों से मुक्ति का रास्ता दिखाया है। अब आप भी अपने गांव में शुरुआत कर सकते है बीज-कोष की।8

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