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विनिवेश की मूल सोच सही लेकिन

by
Jul 4, 2002, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Jul 2002 00:00:00

विदेशी हाथों में न जाएं हमारे प्रतिष्ठान–डा. भरत झुनझुनवालाआर्थिक विश्लेषकविनिवेश के बारे में सरकार की मूल सोच एकदम सही है। सरकार का काम उद्योग चलाना नहीं है। लेकिन इस विनिवेश नीति में कुछ कमियां हैं, जिन पर गौर करना जरूरी है। जैसे हाल ही में इंडो-बर्मा पेट्रोलियम का विनिवेश कर उसे इंडियन आयल कारपोरेशन को सौंपा गया, यह वास्तविक विनिवेश नहीं है। एक घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रम को दूसरे घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रम को बेचा जाना गलत है। इससे इंडो-बर्मा पेट्रोलियम पर मंत्रियों और नौकरशाहों का नियंत्रण सीधा न होकर इंडियन आयल के जरिए हो गया।विदेश संचार निगम को टाटा को सौंपा जाना ठीक है, लेकिन इसमें भी खतरा है, कहीं उसकी निरंकुशता न बढ़ जाए। उस पर नियंत्रण रखना जरूरी है। आज टाटा है, अप्रैल से विदेश संचार के क्षेत्र में दूसरी कम्पनियों को भी छूट मिल जाएगी। लेकिन इन सब कम्पनियों का एक संगठन बन सकता है। ये सब मिलीभगत करके उपभोक्ता को चूस सकती हैं। जैसे सीमेंट के चार-पांच उत्पादकों ने मिलकर सीमेंट के दाम सौ रुपए से बढ़ाकर डेढ़ सौ रुपए कर दिए थे और उपभोक्ता के पास कोई विकल्प नहीं बचा। ऐसे ही टाटा अन्य कंपनियों की मिलीभगत से विदेश संचार के भाव बढ़ा दे तो उपभोक्ता के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा। इसलिए सरकार का नियंत्रण होना जरूरी है। सरकार द्वारा होटलों के निवेश का फैसला एकदम उचित है। सरकार का काम होटल चलाना नहीं है। जहां तक यह बात है कि उनका सौदा कम कीमत में हुआ तो इस विवाद में उलझने की जरूरत नहीं है। सरकार ने होटलों की बोली लगाने के लिए उद्योग समूह को आमंत्रित किया था, ऐसा तो है नहीं कि किसी ऊंची बोली लगाने वाले को सरकार ने नजरअन्दाज करके कम बोली लगाने वाले के साथ सौदा किया। इस तरह के आरोप तो हर तरह के व्यापारिक समझौतों में लगाया जाता है। यह बड़ा भ्रम है कि सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश से देश की अर्थव्यवस्था सुधर जाएगी। ऐसा कुछ नहीं होने वाला। यह ऊंट के मुंह में जीरे वाली बात है। जहां सरकार का बजट घाटा लगभग सौ हजार करोड़ होता है, सरकार सौ हजार करोड़ का अतिरिक्त ऋण ले रही है, तो विनिवेश से 5 हजार करोड़ या 10 हजार करोड़ मिले कोई फर्क नहीं पड़ता। सरकार को घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों के घाटे की जो भरपाई करनी पड़ रही है, वह काफी भारी पड़ रहा है।इस नीति में एक और कमी यह है कि सरकार का रुझान विदेशी निवेशकों को विनिवेश करने का है। यह खतरनाक है। भारत सरकार को डालरों का मोह छोड़ना होगा। यह विनिवेश भारतीय उद्यमियों के पक्ष में ही होना चाहिए, जिससे देश के उद्यमियों का साहस बढ़े। यह भावना खत्म हो कि विदेशी निवेशक ही भारत का उद्धार करेंगे। इससे देश का उद्धार नहीं होगा, बल्कि और भी चौपट होगा।28

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