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द शशिकान्तकब तलक देखोगे तुम यूं चांद-तारेरफ्ता-रफ्ता डूब जाएंगे ये सारे।जूझना होगा हमें मौजों से बढ़करकुछ नहीं कर पाएंगे बेबस किनारे।जीत की खातिर किया क्या कुछ न उसनेएक हम हैं, जीत की बाजी भी हारे।कुछ नहीं बदला यहां, सब कुछ वही हैफिर न क्यों दिलकश रहे अब ये नजारे।आस की ये आखिरी कश्ती भी डूबीपार कर दरिया अब अपने ही सहारे।22
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