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द महेश शुक्लसूरज तम के आगे हारा।अंतर में फैला अंधियारा।किसको हम आलोक दिखायें?बोलो! कैसे दीप जलायें?जिनके पास भाग्य लिपि कालीउनको नहीं मिली दीवाली।मातृभूमि के बलिदानी को-मिलती मुट्ठी खाली झोलीसौ-सौ सूर्य उगे हों जिनसेलाखों फूल खिले हों जिनसेउनसे सच को सदा छुपायें।बोलो! कैसे दीप जलायें?……कुछ अपने हाथों छलते हैंकुछ घर दीप नहीं जलते हैं।कुछ घर चांद उगा करते हैंकुछ घर सूर्य नहीं ढलते हैं।दु:ख सहकर सुख कह देते हैंहंसकर विपदा सह लेते हैं।वहीं चलो! अब दीप जलायें।जग को हम आलोक दिखायें।23
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