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पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले

by
Oct 6, 2001, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Oct 2001 00:00:00

थ् वर्ष 5, अंक 29 थ् फाल्गुन कृष्ण 11, सं. 2008 वि. 21 फरवरी,1952 थ् मूल्य 3 आने

थ् सम्पादक : ज्ञानेन्द्र

थ् प्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊ

——————————————————————————–

चिरायु हों

जब हम सच्चे पौरुष का साक्षात्कार करेंगे तभी अपने भाग्य को बनाएंगे। ह्मदय की श्रद्धा तथा अपने बाहुबल में विश्वास रखकर पशु को मनुष्य बनाकर छोड़ेंगे, ऐसी निश्चय शक्ति को धारण कर कार्य करें। अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए, उनके प्राचीन जीवन को उद्दीप्त करके जो श्रद्धा आज बाहर चली गई है उसे वापस लाकर अपने स्फूर्ति-देवता को जागृत करें। अपने ही स्वतन्त्र कार्य के आधार पर अपनेपन के भाव से अनेक ह्मदयों को गूंथकर अपने मानबिन्दु के चारों ओर एक अभेद्य शक्ति का वलय खड़ा करने का कार्य करें। अपने प्रखर एवं कठोर राष्ट्रवाद के लिए आत्मीयत्व को जाग्रत करें तथा उससे उत्पन्न उस प्रबल सामथ्र्य एवं ऐहिक जीवन का निर्माण करें जिसमें भ्रष्टाचार न हो, और जीवन के महान एवं शाश्वत तत्वों के साथ व्यभिचार न हो। इस प्रकार प्रत्येक क्षेत्र से दासत्व-वृत्ति को दूर करके माता की सेवा के लिए आसेतु-हिमालय वह शक्ति निर्माण करें जो कि निरन्तर बढ़ती जाए, व बाह्रारोपों के कारण जिसके अन्त:करण में विकार उत्पन्न न हो, तथा अनेक आन्दोलनों से वि·श्व के डांवाडोल होने पर भी जो अटल शोभा को प्राप्त करे। -श्री गुरुजी

युग-पुरुष का परिचय

यदा यदाहि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम् धर्मस्य तदात्मानम् सृजाम्यहम्। परित्राणाय साधूनां- विनाशाय च दुष्कृताम्, धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे।।

भगवान श्रीकृष्ण ने यह बात गीता में कही है। इसी के अनुसार जब-जब इस भारतभूमि में धर्म का ह्मास होता है तब-तब भगवान धर्म की पुनस्स्थापना के लिए अवतार लेते हैं। इतिहास भी इस बात का साक्षी है। नन्दवंशीय राजाओं द्वारा जब भारतीय जनता त्रस्त हो उठी उस समय चाणक्य ने अपने बुद्धि बल एवं नीति बल से अत्याचारी नन्द राजा को राज्यच्युत किया एवं चन्द्रगुप्त को भारत का सम्राट बनाया। उस समय हमें चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त के रूप में भगवान के ही किसी अवतार का आभास मिलता है। पुन: मुगल काल में भी जब विदेशों यवन शासकों की धर्मान्ध रक्तपिपासु तलवारों के नीचे इस देश की “संस्कृति, धर्म एवं मूलभूत परम्पराओं के विनाश की तैयारी पूर्ण गति से चल रही थी, उस समय गुरु गोविन्द सिंह एवं उनके सहयोगी बन्दा वैरागी, समर्थ गुरु रामदास तथा उनके पदानुगामी छत्रपति महाराज शिवाजी का आविर्भाव क्या ई·श्वरीय अवतरण नहीं! इतना ही क्यों। इस युग में भी अगर हम विचारात्मक दृष्टि से देखें तो रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द, योगिराज अरविन्द तथा देश हित में तिल-तिल कर अपने जीवन का होम करने वाले डाक्टर हेडगेवार का आविर्भाव भी हमें गीता के उक्त श्लोक की सत्यता को ही प्रमाणित करता दृष्टिगोचर होगा। आज भी भीष्म के समान दृढप्रतिज्ञ, ब्राह्मचारी, स्वामी विवेकानन्द के समान परम आध्यात्मवादी, योगिराज अरविन्द के समान सौम्य एवं लम्बे बिखरे पर निखरे हुए केशयुक्त माधव को देखकर भगवान श्री कृष्ण द्वारा उपदिष्ट गीता में हमारी निष्ठा दृढ़ और वि·श्वास अडिग हो जाता है। उसी युगपुरुष माधव की आज के दिन शुभ वर्षगांठ है। आज हमारे माधव आध्यात्मिक भावना से ओत-प्रोत समाज संगठन के कार्य में अहर्निश परिश्रम-रत तपश्चर्यापूर्ण जीवन का 46 वां वर्ष समाप्त कर 47वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं।

कांग्रेस कैसे जीती? — श्री धर्मेन्द्र कुमार

कांग्रेस कैसे जीती?

हमारे देश के चुनाव में की गयी अनियमितताओं को सुनकर वि·श्व का कोई भी प्रजातांत्रिक देश लज्जा से सर झुका लेगा। गांधी जी की कांग्रेस के कुछ खद्दरधारी गुंडे शासन सुन्दरी को हड़पने के लिए गांधी जी की दुहाई देकर चुनाव अखाड़े में कूदे, और उन्होंने प्रत्येक मार्ग से सफलता प्राप्त की। परन्तु क्या गांधी जी की आत्मा स्वर्ग में भी अपने उन अनुयायियों को नहीं धिक्कार रही होगी? जिन्होंने गांधी जी के सिद्धांतों की हत्या का पाप अपने सरपर शासन-सत्ता को हड़पने के लिए लिया है? कांग्रेस की सफलता के कारणों की मीमांसा करते समय भारत की जनता के नैतिक चरित्र को 4 साल तक गिराने के रहस्यमय षड्यन्त्र का भण्डाफोड़ हो जाता है। कांग्रेसी नेता भली प्रकार जानते थे कि यदि भारत की जनता का नैतिक चरित्र ऊंचा उठ गया तब जनता में शासन के बुरे कार्यों के विरुद्ध मोर्चा लेने की शक्ति आ जाएगी और एक महान विरोध के घोर झंझावात में कांग्रेस का खोखला वृक्ष गिरने से न बचेगा। इस कारण 4 वर्ष तक कांग्रेसी शासन ने भारतीय जनता का चरित्र गिराया।

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