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— नरेन्द्र कोहली सुभद्राहरण-1
श्रीकृष्ण का मन
इंद्रप्रस्थ से अपने निर्वासन की अवधि में मणिपुर से चलकर अर्जुन प्रभास क्षेत्र मेंं पहुंचता है। यहां उसकी स्थिति पहले से पर्याप्त भिन्न है। यहां न वह अकेला है, न असहाय। प्रभास क्षेत्र में पहुंचते ही श्रीकृष्ण उसका स्वागत करते हैं। जैसे उन्हें पहले से ही उसके आगमन की सूचना हो। श्रीकृष्ण उसके मातुलपुत्र तथा मित्र हैं ही, द्वारका में उसके मामा वसुदेव भी हैं तथा अन्य सम्बंधियों की भी कमी नहीं है। द्वारका में सबसे बड़ी घटना सुभद्राहरण है। महाभारतकार ने अर्जुन का सुभद्रा पर मुग्ध होना चित्रित अवश्य किया है, किन्तु अर्जुन के मन में सुभद्रा से विवाह की कामना स्वत: नहीं जागती। उसकी प्रेरणा उसे श्रीकृष्ण से ही मिली है। सुभद्रा का परिचय देकर श्रीकृष्ण उससे पूछते हैं कि क्या वह सुभद्रा से विवाह करना चाहेगा? उसकी सहमति मिलने पर यह प्रस्ताव भी रखते हैं कि वे इस संदर्भ में अपने पिता वसुदेव से बात करेंगे। किन्तु अगले ही क्षण हम देखते हैं कि वे अर्जुन को सुभद्रा का हरण करने का परामर्श दे रहे हैं। यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि वे प्रस्ताव रखकर भी वसुदेव से बात नहीं करते, वरन् सुभद्राहरण की योजना को कार्यान्वित करने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। उससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह है कि अर्जुन दूत के माध्यम से युधिष्ठिर से विधिवत् इस हरण की अनुमति मांगता है। किन्तु द्वारका में रहते हुए भी वसुदेव और बलराम से न श्रीकृष्ण चर्चा करते हैं, न अर्जुन। यहां तक कि सुभद्रा को भी इसका कोई आभास नहीं है। इस व्यवहार का एक ही अर्थ हो सकता है कि श्रीकृष्ण और उनके माध्यम से अर्जुन-यह जानते थे कि वसुदेव और बलराम को यह संबंध मान्य नहीं होगा। सुभद्रा की भी अर्जुन के प्रति कोई आसक्ति दिखाई नहीं देती। श्रीकृष्ण की उक्तियां स्पष्ट संकेत करती हैं कि वे इस सम्बंध में सुभद्रा के निर्णय को स्वीकार नहीं कर सकते। वे उसकी बुद्धि को अनिश्चित मानते हैं।
सुभद्रा के विषय में जो भी संकेत मिलते हैं वे उसके स्वावलम्बी व्यक्तित्व की छवि आंकते हैं। यहां तक कि श्रीकृष्ण भी उसके विवाह विषयक निश्चय के संबंध में आश्वस्त नहीं हैं। यदि सुभद्रा श्रीकृष्ण के कहने में नहीं है तो निश्चय ही वह किसी के भी कहने में नहीं है। ऐसी कन्या, क्षत्रियों की परम्परा के अनुसार, स्वयंवर की कामना करेगी और स्वयंवर में उसका चयन क्या होगा, इस विषय में कोई भी पहले से आ·श्वस्त नहीं हो सकता। श्रीकृष्ण के व्यवहार से हम एक ही स्पष्ट निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि वे सुभद्रा को स्वयंवर का अवसर नहीं देना चाहते थे। इसलिए नहीं कि वे सुभद्रा से प्रेम नहीं करते, अथवा अपना निर्णय उस पर थोपना चाहते थे, वरन् इसलिए कि सुभद्रा की निर्णायक बुद्धि पर उनको वि·श्वास नहीं था। उन्होंने सुभद्रा के वर के रूप में अर्जुन को चुना था और मानते थे कि उससे श्रेष्ठतर वर सुभद्रा के लिए हो नहीं सकता था। किन्तु इस संदर्भ में वे सुभद्रा को समझा-बुझा नहीं सकते थे, उसे बाध्य ही कर सकते थे, यही उन्होंने किया। सुभद्रा से इस विषय में चर्चा न कर सकने के दो ही कारण हो सकते हैं, या तो सुभद्रा अभी विवाह ही नहीं करना चाहती थी, या फिर उसने अपने लिए कोई अन्य पुरुष चुन रखा था। अगले अंक में जारी
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