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जम्मू के जन-सांख्यिकी परिवर्तन के षड्यंत्र का विरोध करने वाले

by
Aug 10, 2000, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Aug 2000 00:00:00

भाजपा विधायक की नागरिकता को ही चुनौती!

–गोपाल सच्चर

विभिन्न खेमों में बंटे हुए जम्मू-कश्मीर की कुछ बड़ी संस्थाओं के नेता तथा उग्रवादियों का अन्तत: इस सम्बंध में एक ही दृष्टिकोण दिखाई देता है कि जम्मू-कश्मीर से हिन्दुओं को निकाल बाहर किया जाए और बाहर से आने वाले किसी भी हिन्दू-सिख को इस राज्य में न बसने दिया जाए। वैसे यह दृष्टिकोण कोई नया नहीं है। इसका प्रारंभ 1947 में नेशनल कांफ्रेंस के सत्ता में आने के साथ ही हो गया था। किन्तु पिछले 12-15 वर्षों में इस प्रक्रिया में और भी तेजी आई है। कश्मीर घाटी के बाद जम्मू के कई क्षेत्रों से भी हिन्दुओं को निकाल बाहर करने का काम शुरू हो गया है। इसका प्रभाव मन्दिरों की नगरी जम्मू में स्पष्ट दिखाई देने लगा है।

जम्मू-कश्मीर राज्य के भारत में विलय के पश्चात् पाकिस्तानी आक्रमण के कारण डेढ़ लाख से अधिक लोग पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से पलायन कर सीमा के इस ओर आ गए थे। इसमें बहुत से परिवार कश्मीर घाटी के साथ लगने वाले क्षेत्र मुजफ्फराबाद आदि से आकर बारामूला तथा कश्मीर के अन्य क्षेत्रों में बस गए थे। किन्तु शेख अब्दुल्ला सरकार ने इन सभी परिवारों को जम्मू की ओर धकेल दिया था। हालांकि उस समय भूमि सुधार के नाम पर हिन्दुओं से छीनी गई लाखों एकड़ भूमि सरकार के अधिकार में थी, जिस पर इन लोगों को बसाया जा सकता था। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि अगर इन लोगों को घाटी में बसाया गया होता तो पृथकतावाद तथा उग्रवाद इतना भयंकर रूप धारण नहीं करता। 1947 से लेकर अब तक जितनी भी सरकारें आईं, चाहे वे कांग्रेस की हो या नेशनल कांफ्रेंस की, सभी ने समय-समय पर ऐसे कदम उठाए जिसके कारण हिन्दुओं का कश्मीर घाटी से पलायन होता चला गया। अब स्थिति यह है कि कश्मीर घाटी में अल्पसंख्यकों की संख्या 13 प्रतिशत से घटकर आधा प्रतिशत से भी कम रह गई है। सरकारी नौकरियों में भी उनका प्रतिशत घटकर एक प्रतिशत से कम रह गया है। अब सरकारी नौकरियों में जो भर्ती की जा रही है, वह एक ही समुदाय विशेष के लोगों की हो रही है।

दूसरी तरफ इस षड्यंत्र का प्रभाव कश्मीर घाटी के साथ जम्मू में भी दिखने लगा है। दूर-दराज के मुस्लिमबहुल क्षेत्रों में आतंकवादी व कट्टरपंथी हर प्रकार की नीति अपनाकर वहां से हिन्दुओं को भगाने में लगे हैं। इसके साथ ही राज्य सरकार भी इन क्षेत्रों में सरकारी भर्ती आदि के कार्यों में हिन्दू अल्पसंख्यकों की पूरी तरह उपेक्षा कर रही है। एक षड्यंत्र के अन्तर्गत पिछले 5-7 वर्षों से जम्मू तथा उसके अन्य भागों में बड़ी संख्या में मुसलमान कश्मीर तथा अन्य क्षेत्रों से आकर बसने शुरू हो गए गए हैं। हजारों की संख्या में ऐसे परिवार पाकिस्तान के साथ लगने वाली सीमा पर रहस्यमय ढंग से बस गए हैं। एक अनुमान के अनुसार पिछले 4-5 वर्षों में ऐसे तीस हजार से अधिक परिवार जम्मू के साथ लगने वाले छोटे-छोटे गांवों में सरकारी तथा निजी लोगों की जमीन पर आकर बसे हैं तथा कई नई बस्तियां भी बस गई हैं। कई लोगों ने तो इन बस्तियों में बड़े-बड़े बंगले तथा महल जैसे भवन भी बना लिए हैं। ऐसे लोगों में कश्मीर के कई मंत्री, विधायक तथा उच्चाधिकारी भी सम्मिलित हैं।

जम्मू के निवासियों के लिए चिन्ता का एक विषय यह भी है कि राज्य सरकार के प्रोत्साहन से बनने वाले इन भवनों में कई ऐसे लोग भी आकर बस गए हैं जिनकी पृष्ठभूमि अत्यन्त संदिग्ध रही है। इस सम्बंध में उल्लेखनीय बात यह भी है कि कश्मीर घाटी के पश्चात् अब जम्मू के कई गांवों के नाम बदले जाने लगे हैं और उन्हें मुस्लिम नाम दिया जा रहा है। गत दिनों जम्मू के साथ लगने वाले सुंजवा गांव का नाम बदलकर फिरदौसबाद रख दिया गया।

जम्मू क्षेत्र के दूर-दराज में बसे हिन्दुओं को भगाने के लिए एक ओर जहां उग्रवादी मार-काट तथा भय फैलाने में लगे हैं, दूसरी ओर राज्य सरकार ने कई लोगों को यह कहकर नोटिस जारी कर दिए हैं कि वे इस बात के प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें कि वे इस राज्य के स्थायी निवासी हैं। ऐसा ही एक नोटिस भाजपा के विधायक चौधरी प्यारा सिंह को भी भेजा गया है। इस सम्बंध में चौधरी प्यारा सिंह का कहना है कि उनके बाप-दादा इसी राज्य के निवासी थे और वह इस सम्बंध में सभी प्रमाण-पत्र उनके पास सुरक्षित रखे हुए हैं। इस प्रकार का नोटिस जारी करके सरकार एक ओर आतंक का वातावरण पैदा कर रही है, दूसरी ओर कुछ धनी लोगों को डरा-धमकाकर उनसे अवैध धन वसूली की जा रही है। ऐसा करने वालों में राज्य के कई मंत्री तथा नेशनल कांफ्रेस के विधायक शामिल हैं, जिन्होंने जम्मू में अनधिकृत तौर पर बड़े-बड़े भवन बनाने का काम शुरू कर दिया है।

उल्लेखनीय है कि जम्मू नगर के आस-पास संदिग्ध लोगों द्वारा बनाए जा रहे भवन और कश्मीर से लाकर बहुसंख्यकों को जम्मू में बसाने का विरोध करने वालों में चौधरी प्यारा सिंह एक विधायक हैं। उन्होंने विधानसभा में भी यह प्रश्न कई बार उठाया है। अत: उन्हें चुप कराने के उद्देश्य से उनके विरोधियों ने उनकी ही नागरिकता को चुनौती दे दी है।

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