अनिरुद्ध जगन्नाथ फिर बने मारीशस के प्रधानमंत्री
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अनिरुद्ध जगन्नाथ फिर बने मारीशस के प्रधानमंत्री

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Jan 10, 2000, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Jan 2000 00:00:00

सिर्फ चार दिनों में बन गई नई सरकार

–बालेश्वर अग्रवाल

मारीशस भी भारत की तरह एक गणतांत्रिक राज्य है। प्रत्येक पांच वर्ष बाद वहां भी आम चुनाव होते हैं।

वर्तमान संसद का कार्यकाल दिसम्बर, 2000 तक था, किन्तु 11 अगस्त को संसद भंग कर दी गई। किसी को उम्मीद नहीं थी कि इस तरह अचानक संसद भंग कर दी जाएगी। न तो वहां के राजनीतिक दलों को यह उम्मीद थी और न ही मारीशस की राजनीति में रुचि रखने वालों को, क्योंकि राजनीतिक पण्डित यह मान कर चल रहे थे कि प्रधानमंत्री डा. नवीन चन्द्र रामगुलाम अपने पिता स्व. शिवसागर रामगुलाम के जन्म शताब्दी समारोह के बाद ही संसद को भंग कर सकते हैं। यह समारोह 18 सितम्बर को था। यहां तक कि अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद् के अनुरोध पर उन्होंने 15 सितम्बर को मारीशस में भारत वंशी सांसदों का द्वितीय सम्मेलन आयोजित करने की अनुमति भी दे दी थी। और उन्हें ही इस सम्मेलन का उद्घाटन करना था। इसलिए सभी को पूर्ण वि·श्वास था कि 18 सितम्बर के पूर्व संसद भंग नहीं की जाएगी। लेकिन अचानक सूचना मिली कि 11 अगस्त को संसद भंग कर दी गई है और 11 सितम्बर को चुनाव होने वाले हैं। संयोगवश पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मैं 16 अगस्त को मारीशस गया था। मैंने प्रधानमंत्री श्री रामगुलाम, पूर्व प्रधानमंत्री श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ, श्री पाल विरांजे आदि प्रमुख नेताओं से भेंट की तो कोई भी सन्तोषजनक उत्तर नहीं दे पाए कि अचानक संसद भंग करने के पीछे क्या कारण हैं? ध्यान देने योग्य और एक बात है कि प्रधानमंत्री ने संसद भंग करने के साथ ही चुनाव-तिथि की घोषणा भी करवा दी। चुनाव आयोग के समक्ष राजनीतिक दलों को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कि कौन किसके साथ है, कौन किसके साथ नहीं है, इसके लिए उन्होंने बहुत कम समय राजनीतिक दलों को दिया। इसके पीछे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री श्री रामगुलाम को संभवत: यह वि·श्वास हो गया था कि इतने कम समय में दोनों प्रमुख विरोधी दल-श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ का मारीशस सोशलिस्ट मूवमेंट (एम.एस.एम.) और पाल विरांजे का मारीशस मिलिटेन्ट मूवमेन्ट (एम.एम.एम.) एक नहीं हो पाएंगे। और मैं बाजी मार लूंगा। उल्लेखनीय है कि छह महीने पूर्व तक ये दोनों दल एक साथ थे, किन्तु बाद के उपचुनावों में मिली हार के पश्चात् दोनों एक-दूसरे से अलग हो गए थे। किन्तु प्रधानमंत्री श्री रामगुलाम का यह अनुमान गलत निकला, क्योंकि चुनाव की घोषणा होते ही ये दोनों दल एक हो गए। एक होने के बाद दोनों के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार श्री हरीश बुधू, जो मारीशस की राजनीति में एक प्रभावी व्यक्ति हैं और श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ की पत्नी श्रीमती सरोजिनी जगन्नाथ के अथक प्रयास से चुनाव के ठीक पहले इन दोनों दलों के बीच एक समझौता हुआ। समझौते के अनुसार प्रथम तीन वर्ष के लिए श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ प्रधानमंत्री होंगे और अन्तिम दो वर्ष के लिए पाल विरांजे प्रधानमंत्री बनेंगे। और प्रधानमंत्री पद छोड़ने के पश्चात् श्री जगन्नाथ राष्ट्रपति बन जाएंगे। गठबंधन हो जाने के बाद सभी का यही मानना था कि यह गठबंधन ही विजयी होगा, क्योंकि मारीशस का इतिहास रहा है कि जिस भी दल ने पाल विरांजे के साथ गठबंधन किया है, वह विजयी रहा है। भले ही श्री पाल विरांजे लड़-झगड़ कर सरकार से निकल गए हों अथवा उन्हें निकाल दिया गया हो। इसका उदाहरण है, 1995 का चुनाव। इस चुनाव में श्री पाल विरांजे और श्री रामगुलाम एक साथ थे। इसलिए इनके गठबंधन को सभी 60 सीटें मिली थीं। श्री जगन्नाथ को उस समय एक भी सीट नहीं मिली थी। किन्तु एक-डेढ़ साल के बाद पाल विरांजे को सरकार से निकाल दिया गया। चूंकि श्री रामगुलाम की पार्टी लेबर पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त था, इसलिए उनकी सरकार पूरे समय तक चली। पिछले दिनों जब मैंने श्री जगन्नाथ से भेंट की तो मैंने उनसे कहा, आप जीतेंगे तो जरूर, किन्तु इस गठबंधन का भी क्या भरोसा? इस पर उन्होंने विश्वास के साथ कहा कि श्री पाल विरांजे अब ऐसा नहीं करेंगे। उल्लेखनीय है कि सत्तारूढ़ लेबर पार्टी को कुल 60 सीटों में से केवल 6 सीटें मिली हैं। और गठबंधन को 54 सीटें प्राप्त हुई हैं। गठबंधन के दोनों दलों-एम.एस.एम. और एम.एम.एम. के 30-30 उम्मीदवार चुनाव लड़े थे। जिनमें एम.एस.एम. के 26 और एम.एम.एम. के 28 प्रत्याशी विजयी रहे।

इस तरह गठबंधन के नेता श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ को 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। इनके साथ 24 सदस्यीय मंत्रिमण्डल ने भी शपथ ली है। 24 मंत्रियों में से 12 मंत्री एम.एस.एम. पार्टी के और 12 एम.एम.एम. पार्टी के हैं। गृह, रक्षा, विदेश जैसे महत्वपूर्ण विभाग प्रधानमंत्री श्री जगन्नाथ ने अपने पास रखे हैं, जबकि श्री पाल विरांजे को वित्त मंत्रालय सौंपा गया है। मारीशस में कुल 20 संसदीय क्षेत्र हैं, किन्तु एक क्षेत्र से तीन सांसद चुने जाते हैं। इसलिए वहां के कुल सांसदों की संख्या 60 होती है।

मारीशस की 12 लाख की जनसंख्या में लगभग 6 लाख मतदाता हैं। इनमें 70 से 75 प्रतिशत तक भारतीय मूल के मतदाता हैं। इसमें 52 प्रतिशत हिन्दू मतदाता हैं। शेष में ईसाई और मुस्लिम हैं। हिन्दू मतदाता श्री रामगुलाम की लेबर पार्टी और श्री जगन्नाथ की पार्टी एम.एस.एम. के बीच बंटे हुए हैं। जबकि अधिकांश मुसलमान और क्रियोन (वहां की स्थानीय जाति) श्री पाल विरांजे की पार्टी एम.एम.एम. के समर्थक हैं।

श्री अनिरुद्ध की जीत का भारत के लिए कोई विशेष अर्थ नहीं है, क्योंकि 1995 के चुनाव के पूर्व वे 1982 से लगातार 13 वर्ष तक प्रधानमंत्री रहे। अपने प्रधानमंत्रित्व काल में उन्होंने वहां की अर्थव्यवस्था को काफी अच्छी कर दी थी। लेकिन फिर भी वे बुरी तरह हारे, उन्हें एक भी सीट नहीं मिली। उन्होंने अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में भारतीय भाषा से सम्बंधित एक आदेश जारी किया था, जिसे वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था। अत: उन्होंने एक साल पहले ही संसद भंग कर दी और इस मुद्दे को जनता के सामने ले गए, फिर भी वे हारे। इसलिए मैं इस चुनाव का कोई विशेष अर्थ नहीं समझता हूं। मारीशस का इतिहास रहा है कि जब कोई दो पार्टी मिली हैं, उन्हें सफलता मिली है। बाद में झगड़े भी होते हैं और सरकार गिरती-बनती रहती है। किन्तु इस बार शायद ऐसा नहीं होगा, क्योंकि समझौते के अनुसार तीन साल के बाद पाल विरांजे प्रधानमंत्री बनेंगे और श्री जगन्नाथ राष्ट्रपति। इसलिए यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी-ऐसी आशा है। जहां तक भारत और मारीशस के सम्बंध का प्रश्न है, वह हमेशा ही मधुर रहा है। सबसे बड़ी बात है कि भारत के साथ सम्बंध बिगाड़ कर रखना मारीशस के हित में ही नहीं है। इसलिए चाहे वहां कोई भी भारतवंशी प्रधानमंत्री हो भारत और मारीशस के बीच का सम्बंध मधुर ही रहेगा।

(बातचीत पर आधारित)

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