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जख्म के भरने, रिसने और
नासूर बनने की आधी सदी
कुछ घंटों, पलों की नहीं
सालों साल की गिनती है
आकाश की लम्बाई से खेलना
पर्वतों की चोटियों पर दौड़ना
समुद्र की तरंगों में मचलना
अपना इतिहास रहा है।
सातों द्वीपों पर एक राज
समरस समाज स्थापित किया है
पर किसी जिहाद में हमने
गर्दनों की गिनती नहीं करायी है।
जहर पीकर संजीवनी परोसना
हमारा आचार रहा है
हमने दम तोड़ते दुश्मन को भी
जिन्दगी का हौसला दिया है।
पड़ोसी के बौनेपन को दरकिनार कर
दोस्ती का पैगाम
कोई कल की बात नहीं
फूलों के उपहार पर
छत-विक्षत लाशों के ढेर
शायह हम भूल चुके थे
शिव के वरदान भी
रावण को नहीं बदला करते।
दुनिया इस सच को मानती है
पर जाने किस मानवता की
वकालत करती है।
भाईचारा कभी नारों से
नहीं आया करता।
मूल्य, मानव, भाईचारा
सड़क पर हांफते नजर आते हैं
विश्व राजनीति का दोमंुहापन
नंगा हो चुका है-
भारत का जनमानस अब
समझ चुका है:
देव और दानव में संवाद नहीं
संग्राम हुआ करते हैं
या तो 47 की भूल
सुधारनी होगी या उन्हें
भूगोल समझना होगा
या बदलती सदी के साथ
भारत को मूल्य बदलना होगा।
द विनीता शास्त्री
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