महेश दत्त
मुझे इस बात का यकीन नहीं है कि समाज हमारे हितों की रक्षा करेगा। मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है कि मैं अपने नसीब का फैसला उन लोगों के हाथ में दे दूं, जिनकी एकमात्र योग्यता यह है कि उन्होंने जनता को बरगला कर अपने लिए वोट समेट लिये हैं’ : मारियो पूजो, द गॉडफादर अमेरिका की विदेश सचिव रही हिलेरी क्लिंटन ने पिछले वर्ष डीप स्टेट की परिभाषा को मात्र एक शब्द में सीमित कर दिया था। शब्द था पाकिस्तान। पिछले एक माह से खबर गर्म है कि नवाज शरीफ की लंदन से वापसी का सफर शुरू होना ही चाहता है। कौन हैजो इस सफर की राह हमवार कर रहा है। क्या हैं वह परिस्थितियां, जिन्होंने पाकिस्तान की फौज को इस बात पर परोक्ष रूप से आमादा कर दिया है कि वह तीन बार के प्रधानमंत्री रहे उसी नवाज शरीफ की तरफ मुड़े जिसे उन्होंने एक झूठे केस में फंसा कर चुनाव लड़ने से रोका और फिर इमरान खान के शासन की राह को प्रशस्त किया था?
जब भी आप पाकिस्तानी फौज के बारे में सोचें, तो यह जान लें कि उसका प्रेरणा स्रोत क्या है। वह स्रोत है मारियो पूजो का उपन्यास द गॉडफादर। याद रहे, नवाज शरीफ के केस को सुनते हुए और उनके खिलाफ फैसले में इस उपन्यास को बार-बार उद्धृत किया गया है। इस लेख के आरंभ में दी गई पंक्तियां पाकिस्तानी फौज की मानसिकता को रेखांकित करती हैं।
एक इंटरव्यू में फौज के बेहद नजदीकी समझे जाने वाले मोहसीन बेग ने इमरान खान को सत्ता में लाने के तमाम राज खोल दिए और बताया कि किस प्रकार फौज के कहने पर चुनाव के परिणामों में फेरबदल की गई थी। इस बात को कुछ इस तरह समझा जा रहा है कि फौज ने इस शख्स के जरिए अपनी बात को जनता तक पहुंचा दिया है कि वह इमरान को लाने की जिम्मेदार है और अब उसे हटाने का सिलसिला शुरू होने वाला है।
आज स्थिति यह है कि हाल ही में गिलगित-बाल्टिस्तान के मुख्य जज रहे राणा समीम का लंदन में दर्ज कराया गया एक हल्फिया बयान द न्यूज इंटरनेशनल के खोजी पत्रकार अंसार अब्बासी द्वारा प्रकाशित किया गया है जिसमें उन्होंने बताया है कि चुनाव से पूर्व जब नवाज शरीफ और उनकी बेटी मरियम जेल में थे, उन्हीं दिनों पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश साकिब निसार गिलगित-बाल्टिस्तान में सपरिवार छुट्टियां मनाते हुए उनके घर आए थे। वह स्पष्ट रूप से परेशान दिख रहे थे और बार-बार एक जज को फोन करने का प्रयास कर रहे थे। अंतत: जब उनसे बात हुई तो उन्होंने निर्देश दिया कि चुनाव होने तक किसी भी हालत में नवाज शरीफ और उनकी बेटी को जमानत न दी जाए। वर्तमान में इस खबर की रोशनी में इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने इसे कोर्ट की अवमानना मानते हुए पत्रकार अंसार अब्बासी और अखबार के मालिक के खिलाफ अदालत की अवमानना के आरोप तय करने के लिए तारीख तय कर दी है।
इमरान-बाजवा के दांवपेंच
इसी बीच, इमरान का लाहौर दौरा सामने आया है, जिसके दौरान पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश साकिब निसार ने इमरान से खुफिया तौर पर मुलाकात की। यह मुलाकात बेहद फिल्मी अंदाज में लाहौर के कैंट इलाके में की गई। साकिब निसार की कार एक नियत स्थान पर थी जहां इमरान की कारों का काफिला पहुंचा और उस कार को घेरे में ले लिया गया। कार से साकिब निसार निकलकर इमरान की कार में बैठे और बाद में उन्हें उसी जगह पर उसी तरह वापस छोड़ दिया गया। सवाल है ऐसा क्यों किया गया, जवाब है इमरान और फौज के बीच चलती रस्साकशी। याद रहे, हाल ही में आईएसआई के मुखिया की नियुक्ति को लेकर आर्मी चीफ बाजवा और इमरान आमने-सामने आ चुके है। अंतत: हुआ वही, जो फौजी चाहते थे। लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम को आईएसआई का मुखिया बना दिया गया। इस परिदृश्य में इमरान और बाजवा अपनी-अपनी चालें चल रहे हैं। एक तरफ इमरान किसी तरह अप्रैल के इंतजार में है, जब वह नए आर्मी चीफ का ऐलान कर दें। वही बाजवा की कोशिश है कि तब तक इमरान को हटाकर नई अंतरिम सरकार बना दी जाए जो चुनाव तक काम करे।
इसकी अगली कड़ी है, जिसे लेकर इमरान और साकिब निसार की मुलाकात मायने अख्तियार कर लेती है। इरादा यह लगता है कि अगर साकिब निसार को नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो का मुखिया बना दिया जाए तो तमाम विपक्षी नेताओं को सच्चे-झूठे मुकदमों में जेल में डाला जा सकेगा, जिससे इमरान की सत्ता में बने रहने की राह हमवार होगी।
फौज की रणनीति
इन बातों के पीछे एक उद्देश्य है। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बेहद नाजुक है। आईएमएफ ने एक अरब डॉलर की एवज पाकिस्तानी सरकार को घुटनों पर ला दिया है। पाकिस्तानी रिजर्व बैंक के गवर्नर को सरकारी प्रभाव से अलग कर लगभग वायसराय जैसा बना दिया गया है। वह जब चाहे, अगर छुट्टी पर भी जाए तो, उसकी जगह पर कौन रिजर्व बैंक को चलाएगा, यह भी वह खुद तय करेगा और उसके ऊपर कोई सरकारी अमल दखल नहीं होगा। याद रहे, रजा बाकर, जो रिजर्व बैंक के गवर्नर हैं,आईएमएफ के ही लगाए हुए हैं। सऊदी अरब ने 3 अरब डॉलर पाकिस्तान को दिए हैं, लेकिन इसकी शर्तें शायद पहले किसी स्वतंत्र देश के इतिहास में कभी नहीं सुनी गईं। पाकिस्तान सरकार इसे खर्च नहीं कर सकती, इस पर 4 प्रतिशत की ब्याज दर होगी, सऊदी अरब इस पैसे को 72 घंटे के नोटिस पर वापस ले सकता है और अगर पाकिस्तानी सरकार इसे न चुका पाए तो दुनिया में कहीं भी पाकिस्तानी इकाइयां यानी हवाई जहाज, इमारतों, दूतावासों पर सऊदी सरकार द्वारा कब्जा किया जा सकता है। बाजवा की सोच है कि भारत और अमेरिका के साथ संबंध सुधरे और व्यापार चले, लेकिन ऐसा करना इमरान सरकार की अब तक की भारत के प्रति नीतियों के अनुरूप नहीं है।
एक उल्लेखनीय घटना हुई, एक वरिष्ठ पत्रकार सलीम साफी को दिए गए एक इंटरव्यू में फौज के बेहद नजदीकी समझे जाने वाले मोहसीन बेग ने इमरान खान को सत्ता में लाने के तमाम राज खोल दिए और बताया कि किस प्रकार फौज के कहने पर चुनाव के परिणामों में फेरबदल की गई थी। इस बात को कुछ इस तरह समझा जा रहा है कि फौज ने इस शख्स के जरिए अपनी बात को जनता तक पहुंचा दिया है कि वह इमरान को लाने की जिम्मेदार है और अब उसे हटाने का सिलसिला शुरू होने वाला है। माना जा रहा है कि जनवरी के अंत या फरवरी के आरंभ तक यह सामने आ जाएगा कि आगामी सरकार की रूपरेखा क्या होगी और इमरान सरकार को कब तक बेदखल किया जा सकेगा। पाकिस्तानी राजनीति में आने वाले दिन बेहद रुचि का विषय होंगे, यह तय है। (लेखक पाकिस्तान मामलों के जानकार हैं)
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