पाञ्चजन्य ब्यूरो
जंगल में एक प्रसिद्ध ऋषि रहा करते थे। राजा ने अपने बेटे को उनके आश्रम में शिक्षा के लिए भेजा। वह हाथी-घोड़ों, ढोल-नगाड़ों के साथ उनकी कुटिया में पहुंचा। राजकुमार के द्वार खटखटाने पर भीतर से आवाज आई- ‘कौन?’ उसने उत्तर दिया, ‘मैं आपके देश का युवराज हूं, दरवाजा खोलिए।’
भीतर से न कोई आवाज आई, न दरवाजा खुला। गुस्से में तमतमाया राजकुमार वापस राजमहल लौट गया। वह अपने पिता को सारी बात बताकर बोला,‘यह कैसा गुरु है? उसे यह भी नहीं पता कि राजपरिवार का कैसे सम्मान करना चाहिए। उसे तो मृत्युदंड मिलना चाहिए।’
राजा ने अपने बेटे को समझाकर दोबारा भेजा। इस बार वह चुपचाप कुटिया के द्वार पर जाकर खड़ा हो गया। भीतर से आवाज आई- ‘कौन?’ वह अपना लाव-लश्कर कुटिया से बहुत दूर छोड़कर अकेला पैदल ही पहुंचा था। खटखटाने पर भीतर से ऋषि ने पूछा, ‘कौन?’ राजकुमार ने कहा, ‘अगर मैं जानता होता कि मैं कौन हूं तो मुझे आपके पास आने की जरूरत ही नहीं थी।’
विद्यार्थी का अर्थ है कि जब वह विद्या अध्ययन को जाएगा तो उसे अपनी पुरानी पहचान से मुक्त होकर पहुंचना होगा। शिक्षा पूरी होने पर वह युवा लौटकर जाने लगा तो गुरु ने पूछा, ‘क्या तुम जानते हो कि तुम कौन हो?’ उसने उत्तर दिया- ‘मैं अग्नि हूं?’
वेदसूक्त है- ‘अग्निनाम् अग्नि: समिद्यते’ सात्विक ज्ञान की अग्नि की जरा सी चिंगारी संपूर्ण विश्व को अंधेरे से उबार सकती है। वह हम सबके भीतर की अग्नि है जिससे राष्ट्र का निर्माण होता है। वही अग्नि हमारे युवाओं के भीतर होनी चाहिए।
राष्ट्र का निर्माण ईंट-पत्थर, गारों से नहीं होता। राष्ट्र का निर्माण होता है- युवाओं के सपनों से। राष्ट्र सोने से नहीं बनते, सपनों से राष्ट्र बनते हैं। राष्ट्र का निर्माण इच्छाओं से नहीं होता, इरादों से होता है। संकल्प से राष्ट्र बनते हैं। राष्ट्र का निर्माण दब्बू बने रहकर नहीं होता। जब युवाओं के अंदर आत्मविश्वास और साहस हिलोरें मारता है तब राष्ट्र खड़े होते हैं, महान बनते हैं। और राष्ट्र का निर्माण होता है सहकार से। सहकार, यानी सब लोग एक संकल्प के साथ चलें तो राष्ट्रनिर्माण गति पकड़ता है।
ऋग्वेद का एक मंत्र है-
समानोमंत्र: समिति: समानीं समानं मन: स: चित्तमेषाम्
समानं मंत्रमभिमंत्रेये व: समानेन वो हविषा जुहोमि…
हमारी मंत्रणाएं एक समान हों। हम जो कार्यक्रम यहां से लेकर जाएंगे, वह एक समान हों। हमारी समितियों में समानता हो। इसी मंत्र का अभिप्राय है कि हमारे भीतर जो भी सर्वश्रेष्ठ है,हम सब मिलकर उसे यज्ञ की आहुतियों की तरह समर्पित करते हैं ताकि उसकी सुगंधि हर ओर फैल जाए। यह कार्य युवाओं से बेहतर कौन कर सकता है!
यहां एक बात ध्यान रखने की है। सोच, बातचीत और कर्मों का अंतर हमारी सबसे बड़ी बाधा है। हम बोलते कुछ हैं, करते कुछ और सोचते कुछ हैं। इसी से नैतिकता का, चरित्र का ह्रास होता है। हमारे सोचने, बोलने और करने के बीच दूरी जितनी कम होगी, उतना ही ज्यादा व्यक्ति मजबूत होगा, समाज मजबूत होगा, राष्ट्र मजबूत होगा और मानवता का कल्याण होगा।
हम भारतीय वसुधैव कुटुंबकम् बोलकर अपने मन में बहुत बड़ा संकल्प लेते हैं। सारी दुनिया के दर्शन में कहीं ऐसी बात नहीं कही गई है। हमारे ऋषियों ने हजारों साल पहले केवल यह कहा नहीं, बल्कि इसे जिया भी। इसलिए हम जगतगुरु थे। हमें पूरी दुनिया की समस्याएं को समझते हुए, उनके प्रति सरोकार रखते हुए उनका समाधान ढूंढना है। वे हम ही हैं जो ऐसा कर सकते हैं और करेंगे।
जब मेरे नोबेल प्राइज की घोषणा हुई तो किसी विदेशी पत्रकार ने मुझसे कहा कि कैलाश जी, आपने एक बड़ी समस्या के खिलाफ लड़ाई लड़ी और वह समस्या उजागर हुई है। मैंने कहा,‘समस्याओं को उजागर करने में मुझे भरोसा नहीं है। मुझे समाधान तक पहुंचने में भरोसा है।’ मैंने उनसे कहा कि हम सैकड़ों समस्याओं की धरती हो सकते हैं लेकिन मेरी मातृभूमि एक अरब समाधानों की धरती है और वह समाधान भारत की युवा पीढ़ी है। आप अपने नेता हैं, आप अपने हीरो हैं, आप अपने मार्गदर्शक हैं। आपके अंदर वह ऊर्जा है, वह सच्चाई है, वह ईमानदारी है, वे सपने हैं, वे संकल्प हैं जिससे हमारे उम्र के लोगों को प्रेरणा लेनी पड़ेगी, लेनी चाहिए। जो समझते हैं कि युवा कोई समस्या है, वे झूठ बोलते हैं। अगर युवा समस्या बने रहते हैं तो हमारे शिक्षा और संस्कार की कमी है, हमारी कमी है। युवा ही समाधान हैं देश और दुनिया के।
अगर हम हम अपने विचारों और कर्मों में किसी के प्रतिघृणा या हिंसा रखते हैं तो हमधृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: यानी सनातन धर्म का पालन नहीं करते। कितने आश्चर्य की बात है कि दूसरे लोग अब हमें समन्वय का पाठ पढ़ाते हैं। हजारों साल पहले भारत के ऋषि ने आवाज दी-‘संगच्छवं, संवद्धवं, संवो मनांसि जानताम।’ सब साथ-साथ चलें। हम साथ चलेंगे, कोई बिछुड़ेगा नहीं, कोई पिछड़ेगा नहीं। हम एकसाथ चलें, एकसाथ बोलें, हमारे मन एक से हों। समावेशिता और समानता का पाठ तो हमने विश्व को दिया है। संवदध्वं, हम सब बोलेंगे, भले ही हमारे बीच आपस में मतैक्य न हो लेकिन हम किसी के साथ द्वेषपूर्वक बर्ताव नहीं करेंगे। हम संवद्धवं में विश्वास रखते हैं। सबके लिए बोलने का अवसर है, वातावरण है। ‘वादे-वादे जायते तत्वबोध:’ हम वातार्लाप से तत्वबोध या सत्य की खोज करने वाले लोग हैं। हमारे यहां कहा गया है- एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति । एक ही बात को अलग-अलग तरीके से लोग कह सकते हैं। विविधता में एकता हमारी ताकत है।
मैं हमेशा कहता हूं कि दुनिया ने वस्तुओं का भूमंडलीकरण किया-डेटा का, व्यापार का, बाजार का, आर्टिफिशिएल इंटेलिजेंस के रूप में ज्ञान का आदि, आदि। भारत की भूमि से अगर आपको भूमंडलीकरण करना है तो आएं हमलोग साथ चलें और करुणा का भूमंडलीकरण करें। दूसरों के दुख-दर्द को अपना दुख-दर्द समझें।
आप युवाओं में जो क्रोध, जो आक्रोश है वह सृजन के लिए हो। दब्बू, निराश और पिछलग्गू युवाओं से भारत का निर्माण नहीं हुआ, न भारत महान बनेगा। सृजनात्मकता और सात्विक आवेश से भरे युवा भारत का भविष्य हैं। इसी को वेद में मन्यु कहा गया है। हम प्रार्थना करते हैं- ‘मन्युरसि मन्युमहि देहि’ हमारी भुजाओं में वह बल भर दो, हमारी रगों में वह खून भर दो कि भारत माता की एक भी बेटी बलात्कार की शिकार न हो, यौन हिंसा की शिकार न हो। यह ताकत हमें परमात्मा दो। मैं आपसे यह आग्रह करता हूं आपका अनुशासित संगठन उसी मन्यु का आह्वान करे और संकल्प ले कि वह किसी बच्चे पर, किसी बेटी पर, किसी बहन पर अत्याचार नहीं होने देगा, उसका शोषण नहीं होने देगा। भारतमाता के माथे से इस कलंक के धब्बे को मिटाने की जिम्मेवारी आप युवाओं की है। घरों, स्कूलों, बाहर सड़कों पर, बाजारों में हमारे बेटे-बेटियां यौन उत्पीड़न और दुश्चरित्रता के शिकार हो रहे हैं। अगर आप इन्हें नहीं बचाएंगे तो कौन बचाएगा?
मैंने रा. स्व. संघ के विजयादशमी के कार्यक्रम में कहा था कि आप लोग इन बेटियों, इन बेटों के सुरक्षाचक्र बनिए। आप जिलों में हैं, शहरों, कस्बों और गांवों में हैं। कोई पुलिस वो सुरक्षा नहीं दे सकती जो भारत के नौजवान दे सकते हैं। वे यह शपथ लें कि अपने-अपने इलाके में हम यह पाप नहीं होने देंगे। आपको भीम की तरह गदा उठाने की जरूरत नहीं है, तलवार और त्रिशूल की जरूरत नहीं है, कानून की जरूरत है। जो कानून बने हैं उन्हें लागू कराइए। यह संवैधानिक गारंटी ही हमारा हथियार है। दुर्भाग्य से देश में आज तक एक कानून नहीं है जो कि बच्चों की खरीद-फरोख्त और मानव दुर्व्यापार को रोक सके। इसके लिए कानून बनवाइए। आज पोर्नोग्राफी के रूप में जो दुश्चरित्रता फैल रही है, उसके खिलाफ आवाज उठाएं।
मेरे भीतर की अग्नि यदि आपके भीतर की समिधा को प्रज्वलित कर सकी, तो मैं इस यज्ञ की पूणार्हुति समझूंगा।
टिप्पणियाँ