104 वर्ष की आयु में आज लक्ष्मीनारायण गुप्ता उपाख्य नन्ना जी का झांसी में निधन हो गया है। नन्ना जी 1952 में वह पहली बार विधायक बने थे। इसके बाद वह पांच बार विधायक रहे, दो बार कैबिनेट मंत्री, उन्होंने वीर सावरकर, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पं.दीनदयाल उपाध्याय जैसे महापुरुषों के सानिध्य में रहकर काम किया और ताउम्र लोगों की मदद की। सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में उनकी शुचिता की मिसाल दी जाती थी।
हिंदू महासभा से सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करने वाले नन्ना जी ऐसे महानुभाव थे, जिनसे यह सीखा जा सकता था कि राजनीति में रहकर सात्विक जीवन कैसे किया जाता है। नन्ना इसकी मिसाल थे। उनका जीवन आज के नेताओं के लिए भी एक उदाहरण है। आज समय में इतना लंबा जीवन जीने के बाद वह गोलोक वासी हुए। 104 बरस की उम्र तक नन्ना जी पूरी तरह स्वस्थ रहे। आजादी की लड़ाई के जिन वीरों की गाथाएं हमने सुनी हैं उनमें से बहुत से लोगों को उन्होंने प्रत्यक्ष देखा था। लक्ष्मीनारायण गुप्ता जिन्हें प्यार से नन्ना जी कहा जाता था उनका जन्म 6 जून 1918 को हुआ था।
पांच बार विधायक और दो बार कैबिनेट मंत्री रह चुके नन्ना जी के पास गाड़ी की बात तो छोड़ो मोबाइल तक नहीं था। सादगी ऐसी कि किसी को भी मोहित कर दे। सहजता, सरलता, ईमानदारी व विनम्रता जैसे गुणों के चलते दुश्मन भी उनका कायल हो जाता था। उनके पास लगातार लोग अपनी समस्याएं लेकर आते थे। 100 बरस की आयु पूरी कर लेने के बाद भी वह लोगों की समस्याओं को उठाते रहते थे। उन्हें अक्सर लोगों की समस्याओं के निराकरण के लिए जिलाधिकारी कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक के चक्कर लगाते हुए देखा जा सकता था। नन्ना जी का जन्म 6 जून, 1918 को ईशागढ़ में हुआ। उनके सार्वजनिक जीवन की शुरुआत 1944 में हिन्दू महासभा से हुई। जब तक वह जीवित रहे और स्वस्थ रहे वह लोगों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहे। उन्हें निकट से देखने वाले बताते हैं कि अब राजनीति में इस प्रकार के गुणों में रचा-बसा जनप्रिय नेता मिल पाना असंभव ही है। 1945 में ग्वालियर राज्य के प्रजासभा (विधानसभा) के निर्वाचन में विजयी हुए हिन्दू महासभा के प्रत्याशी चनावनी के दीवान वरजोर सिंह के सहयोगी की भूमिका में क्षेत्र की जनता ने उन्हें निकट से जाना-समझा। 1947 में लक्ष्मीनारायण हिन्दू महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने। यह बात शिवपुरी एवं पिछोरवासियों को गौरव प्रदान करने वाली थी क्योंकि उस समय स्व. डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे।
मात्र 700 रुपए में लड़ा था पहला चुनाव
आज जबकि चुनाव में नेताओं द्वारा करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन नन्ना जी ऐसे नेता रहे हैं जो अपनी साख के चलते चुनाव जीतते थे। महज 700 रुपए में उन्होंने पहला चुनाव लड़ा था। यही नहीं नन्ना जी को 1948 में गांधी जी की ह्त्या के बाद गिरफ्तार भी किया गया था, लेकिन महीने भर बाद प्रशासन को उन्हें साथियों सहित छोड़ना पड़ा। समाज में बढ़ती पैठ और लोगों की सेवा के लिए रात-दिन एक करने के चलते 1949 में नन्ना जी को सहकारी बैंक का निदेशक बनाया गया। उसी के कुछ समय बाद 1952 के निर्वाचन में शिवपुरी के पिछोर को दो निर्वाचन क्षेत्रों में बांटा गया। नन्ना जी पिछोर उत्तर से चुनाव लड़े और 700 वोटों से विजयी हुए। उन्होंने 1957, 1962 तथा 1967 के उन्होंने लगातार विधानसभा चुनावों में सफलता प्राप्त की। 1967 में राजमाता सिंधिया की स्वतंत्र पार्टी एवं 1990 में भाजपा की ओर से भी वे इसी क्रम में निर्वाचित हुए। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि है कि 1967 के चुनाव में जहां उन्हें 29000 से अधिक मत प्राप्त हुए। वहीं उनके कांग्रेसी प्रतिद्वंद्वी को महज 3000 के लगभग वोट ही मिल सके। यह उनका प्रभाव ही था कि 1944 से 1972 तक पिछोर में कांग्रेस को झंडा लगाने वाला भी नहीं मिलता था। इस लोकप्रियता का कारण जनता के प्रति उनकी सेवाभावना थी।
अपने पैसे से बनाया डिग्री कॉलेज
साठ के दशक में जब जिला मुख्यालय पर कॉलेज नहीं होते थे, तब उन्होंने अपने स्वयं की वकालत के मेहनताने से पिछोर में छत्रसाल डिग्री कॉलेज की स्थापना की। साथ ही साथ कई नहरों और सड़कों के निर्माण में योगदान दिया। आज भी वे एक नदी परियोजना के लिये प्रयासरत थे। अपने राजनीतिक जीवन में 1967 में गोविंद नारायण सिंह और 1990 में सुंदरलाल पटवा के मुख्यमंत्रित्व काल में वे मंत्री रहे। अपने संघर्षशील जीवन और सिद्धांतवादी सोच के चलते उन्हें वीर सावरकर, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, प.दीनदयाल उपाध्याय जैसे मार्गदर्शकों के साथ काम करने का अवसर मिला तो दूसरी तरफ अटल बिहारी वाजपेयी, कुशाभाऊ ठाकरे के भी वे अत्यंत नजदीकी रहे।
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