आरोपों से घिरी एक संस्था है, जिसके संस्थापक का अतीत भी दागदार है। जब आरोपों पर कार्रवाई की बात होती है तो बेचैन राजनैतिक प्यादे पहले ही बचाव का बिगुल फूंकने लगते हैं। हैरत यह कि ये प्यादे सूचना के आधार की पुष्टि भी नहीं करते।अब जरूरी है कि संस्था की आपराधिक अनियमितताओं पर कार्रवाई के साथ ही उसके राजनीतिक संबंधों और समीकरणों की भी छानफटक हो।
27 दिसंबर : अपराह्न 3 बजकर 2 मिनट
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट होता है – ‘यह सुनकर दिल दहल गया है कि क्रिसमस के दिन केंद्रीय मंत्रालय ने भारत में मदर टेरेसा के मिशनरीज आफ चैरिटी के सभी बैंक खातों को फ्रीज कर दिया है। भारत सरकार द्वारा यह कदम उठाए जाने से 22,000 रोगी और कर्मचारी बिना भोजन और दवाओं के पड़े हैं। जब कानून सर्वोपरि है तो मानवीय प्रयासों से समझौता नहीं किया जाना चाहिए।’
यह ट्वीट पूरे भारत को चौंका देता है। सभी समाचार चैनलों, वेबसाइटों पर खबर चलने लगती है। एक हंगानमा सा बरपा हो जाता है।
मिशनरी आफ चैरिटी के खातों के फ्रीज होने के संदर्भ में यह पहला ट्वीट नहीं था। इससे मात्र 16 मिनट पहले अपराह्न 2 बजकर 46 मिनट पर पश्चिम बंगाल माकपा के सचिव सूर्यकांत मिश्र ने ट्वीट किया-‘#दिल दहलाने वाली खबर। कल, क्रिसमस के दिन केंद्रीय मंत्रालयने मदर टेरेसा के मिशनरीज आॅफ चैरिटी के सभी बैंक खाते फ्रीज कर दिए। भारत में सरकार ने मिशनरी की हाथ की नकदी समेत सभी खाते फ्रीज कर दिए। भारत सरकार द्वारा यह कदम उठाए जाने से 22,000 रोगी और कर्मचारी बिना भोजन और दवाओं के पड़े हैं।’
छह घंटे गहमागहमी चलती रही। लोग कयास लगाते रहे। फिर केंद्रीय गृह मंत्रालय का बयान आ गया जिसमें कहा गया कि मिशनरीज आॅफ चैरिटी ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से कहकर अपने खाते खुद ही फ्रीज करवाए हैं। मंत्रालय ने कहा कि संस्था के एफसीआरए रजिस्ट्रेशन का नवीनीकरण करते वक्त कुछ 'प्रतिकूल इनपुट' पाए गए। इसलिए नवीनीकरण को मंजूरी नहीं दी गई और नवीनीकरण आवेदन खारिज कर दिया गया। नवीनीकरण से इनकार किए जाने के बाद मिशनरीज की ओर से कोई आग्रह/पुनर्विचार आवेदन प्राप्त नहीं हुआ है। मिशनरी आफ चैरिटी का रजिस्ट्रेशन 31 अक्तूबर, 2021 तक वैध था। उसका नवीनीकरण आवेदन लंबित होने के कारण उसकी वैधता 31 दिसंबर तक बढ़ाई गई थी। गृह मंत्रालय ने संस्था का कोई भी खाता फ्रीज नहीं किया है। एसबीआई ने सूचित किया है कि स्वयं मिशनरी आॅफ चैरिटी ने अपने खातों को फ्रीज करने का आग्रह किया था।
मिशनरी आफ चैरिटी की सफाई
गृह मंत्रालय के बयान के बाद मिशनरी ऑफ चैरिटी को सामने आना पड़ा और उसने बताया कि मिशनरीज ऑफ चैरिटी का एफसीआरए रजिस्ट्रेशन न निलंबित किया गया है, न ही निरस्त किया गया है। इसके अलावा हमारे किसी बैंक खाते को फ्रीज करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से आदेश नहीं दिया गया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कोई गड़बड़ी न हो, हमने अपने केंद्रों से कहा है कि जब तक एफसीआरए रजिस्ट्रेशन के नवीनीकरण का मुद्दा सुलझ नहीं जाता, वे किसी विदेशी मुद्रा खाते का संचालन न करें। इससे खातों के फ्रीज होने का मामला तो स्पष्ट हो गया, साथ ही ममता बनर्जी का छलावा भी सामने आ गया। मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए क्या कोई बिना पुष्टि के किसी सूचना को जारी कर सकता है। क्या इस सूचना से पड़ने वाले असर पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। परंतु निर्मम ममता ने सिर्फ राजनीति देखी, राजनीति के समीकरण देखे, अपने राजनीतिक हित देखे और फर्जी सूचना आगे बढ़ाने में संलिप्त हो गईं।
परंतु लोगों के मन में यह प्रश्न घुमड़ने लगा कि मिशनरीज आफ चैरिटी का एफसीआरए नवीनीकरण आवेदन किन प्रतिकूल इनपुट की वजह से खारिज हुआ। एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक मिशनरीज द्वारा दाखिल रिटर्न के अनुसार उसे 347 विदेशी लोगों और 59 संस्थागत दाताओं से 75 करोड़ रुपये मिले और उसका कुल संतुलन 103.76 करोड़ रुपये है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि आडिट अनियमितताओं के कारण मिशनरीज का एफसीआरए नवीनीकरण नहीं किया गया। हालांकि गृह मंत्रालय और मिशनरीज आफ चैरिटी, दोनों में से किसी ने उन प्रतिकूल इनपुट के विवरण का जिक्र नहीं किया है परंतु मिशनरीज का नर्म रवैया बीते दिनों में मिशनरीज पर लगे आरोपों को ताजा कर देता है और सेवा, करुणा एवं परोपकार के नाम पर आपराधिक अनियमितताओं की कड़ियां जुड़ने लगती हैं।
कन्वर्जन और बच्चे बेचने का आरोप
मिशनरीज आफ चैरिटी पर सेवा के बदले कन्वर्जन कराने का आरोप पहले से लगता रहा है। अभी दिसंबर के दूसरे सप्ताह के आखिर में गुजरात के वड़ोदरा में मिशनरीज आॅफ चैरिटी पर फिर जबरन कन्वर्जन कराने का आरोप लगा है। इस मामले में एफआईआर भी दर्ज की गई है। मिशनरीज के वड़ोदरा स्थित बाल गृह में कथित रूप से धार्मिक भावनाओं को आहत करने और युवा लड़कियों को ईसाई बनने के लिए लुभाने का मामला दर्ज किया गया है। प्राथमिकी जिला सामाजिक सुरक्षा अधिकारी की शिकायत पर दर्ज की गई।
मिशनरीज पर 2018 में झारखंड में बच्चों को बेचने का आरोप लगा था, उसकी दो नन गिरफ्तार भी की गई थीं और उन्होंने बच्चे बेचने की बात भी स्वीकारी थी। मिशनरी के झारखंड स्थित केंद्रों में असहाय महिलाओं के नवजात बच्चों के रजिस्टर में भी हेराफेरी पाई गई और 280 बच्चे गायब पाए गए। वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस पर जवाब तलब किया था।
सर्वोच्च न्यायालय में राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार संरक्षण आयोग ने याचिका दायर की थी। आयोग ने बताया कि उसने पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और केरल से मिशनरीज आॅफ चैरिटी की गतिविधियों पर जानकारी मांगी थी। लेकिन उनका जवाब संतोषजनक नहीं रहा।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल मानव तस्करी के एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा है महिलाओं और बच्चों की तस्करी के लिए राज्य चर्चा में रहा है। पश्चिमम बंगाल इन दोनों ही मामलों में लगातार तीन वर्षों से पूरे देश में दूसरे स्थान पर बना हुआ है। पश्चिम बंगाल में बाल तस्करी के बढ़ते मामलों को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां किस प्रकार से मानव तस्करों के गिरोह सक्रिय हैं। जानकारों का कहना है कि पश्चिम बंगाल मानव तस्करी के अंतरराष्ट्रीय रूट पर स्थित है। यहां कई घरेलू व अंतरराष्ट्रीय गिरोह इस धंधे में सक्रिय हैं। साथ ही पड़ोसी देशों की लंबी सीमा का होना भी इसकी एक प्रमुख वजह है।
एक ओर बच्चे बेचने वाले सफेदपोश रसूखदार एनजीओ को लेकर राजनीतिक बेचैनी है वहीं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बच्चों के लापता होने का बहुत ही भयावह दृश्य पेश करते हैं। 2016 में बंगाल से 8,335 बच्चे, 2017 में 8,178 बच्चे और 2018 में 8,205 बच्चे लापता हुए। बच्चों के लापता होने के सबसे अधिक मामले बारासात, कोलकाता व बैरकपुर पुलिस कमिश्नरेट एरिया में दर्ज हुए।
टेरेसा की संतई का सचमिशनरी आफ चैरिटी के लिए आरोप नई बात नहीं है दरअसल उसकी रसूखदार संस्थापक का अतीत दागदार रहा है। टेरेसा के मिशनरीज आफ चैरिटी के सच पर कई देसी-विदेशी लेखकों ने लिखा है। ऐसे ही एक ब्रिटिश-अमेरिकी लेखक क्रिस्टोफर हिचेन्स (अप्रैल1949-दिसंबर 2011) ने टेरेसा पर -मिशनरी पोजीशन : टेरेसा इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस नामक किताब लिखी। उन्होंने किताब में लिखा है कि – कल्पना कीजिए किसी मरते हुए कैंसर रोगी की, किसी दर्द में कराहते वृद्ध की, जिसे उसकी तथाकथित सेवा कर रहे लोग 'पेनकिलर्स' से वंचित रखें, या इलाज के बिना तड़पता छोड़ दें, ताकि वह जीसस द्वारा सूली पर भोगे गए दर्द को महसूस करके ईसाइयत में दीक्षित हो सके। आप विचलित हो सकते हैं, पर ऐसा हजारों अभागों के साथ हुआ है। सारी दुनिया में मीडिया के वर्ग विशेष द्वारा महिमामंडित की गईं टेरेसा के 600 मिशन कार्यरत हैं। इनमें से कुछ मिशन में रखे गए रोगियों के बारे में चिकित्सकों ने चौंकाने वाले वक्तव्य दिए हैं। इन स्थानों को मरने वालों का बसेरा कहा है। उन्होंने यहां पर स्वच्छता की भारी कमी, अपर्याप्त भोजन और दर्द निवारक दवाओं की अनुपस्थिति पर आश्चर्य व्यक्त किया है। इन परिस्थितियों का कारण पूछे जाने पर, क्रिस्टोफर हिचेंस के अनुसार, टेरेसा का उत्तर था-'गरीबों, पीड़ितों द्वारा अपने नसीब को स्वीकार करता देखने में, जीसस की तरह कष्ट उठाने में एक तरह का सौंदर्य है। उन लोगों के कष्ट से दुनिया को बहुत कुछ मिलता है।' यहां यह बताना जरूरी है कि जब मदर टेरेसा स्वयं बीमार पड़ीं तो उन्होंने इन सिद्धांतों को स्वयं अपने ऊपर लागू नहीं किया। न ही अपने इन अस्पतालों को खुद के इलाज के लायक समझा। टेरेसा अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित स्क्रप्सि क्लीनिक एंड रिसर्च फाउन्डेशन में भर्ती हुईं। यह बात दिसंबर 1991 की है। ननों की यंत्रणा संयोग से टेरेसा के विडंबनाओं और वर्जनाओं से पूर्ण जगत में झांकने के लिए कई झरोखे मौजूद हैं। टेरेसा के ही मिशन में काम करने वाली एक आस्ट्रेलियाई नन कॉलेट लिवरमोर ने अपने मोहभंग और यंत्रणाओं पर किताब लिखी है-होप एन्ड्योर्स। अपने 11 साल के अनुभव के बारे में कॉलेट बताती हैं कि कैसे ननों को चिकित्सकीय सुविधाओं, मच्छर प्रतिरोधकों और टीकाकरण से वंचित रखा गया ताकि वे 'जीसस के चमत्कार पर विश्वास करना सीखें' और किस प्रकार कॉलेट स्वयं एक मरणासन्न रोगी की सहायता करने के कारण संकट में पड़ गई थीं। वे लिखती हैं कि वहां पर तंत्र उचित या अनुचित के स्थान पर हुक्म बजाने पर जोर देता है। ननों को आदेशित करते हुए टेरेसा ईसाई वाड्मय के उदाहरण देती थीं, जैसे कि 'दासों को उनके मालिकों की आज्ञा का पालन करना चाहिए भले ही वे कर्कश और दुरूह हों' (पीटर 2:8:23)। जब ऐलेक्स नामक एक बीमार बालक की सहायता करने से रोका गया तब कॉलेट ने टेरेसा को अलविदा कह दिया। कॉलेट ने लोगों से अंधानुकरण छोड़कर अपनी बुद्धि का उपयोग करने की अपील की है। धीरे-धीरे मिथक टूट रहे हैं। मास-मीडिया के उपयोग से गढ़ी छवि इतने सारे विवादों के बावजूद टेरेसा मातृत्व की मूर्ति के रूप में कैसे प्रचलित हो गईं, इसके बारे में लैरिवी और कैनार्ड कहते हैं कि 1968 में लंदन में टेरेसा की मुलाकात रूढ़ि़वादी कैथोलिक पत्रकार मैल्कम मगरिज से हुई। मगरिज ने टेरेसा को मास-मीडिया की शक्ति के बारे में समझाया और संत की छवि गढ़ने की प्रक्रिया शुरू हुई। 1969 में टेरेसा को केन्द्र में रखकर एक प्रचार फिल्म बनाई गई जिसे चमत्कार का पहला फोटोग्राफिक प्रमाण कहकर हवा बनाई गई। उसके बाद टेरेसा एक चमत्कारिक संत कहलाती हुईं, पुरस्कार और सम्मान बटोरती हुईं सारी दुनिया में घूमीं, नोबेल पुरस्कार भी मिल गया। भारत की तथाकथित सेकुलर राजनीति की जरूरतों के चलते टेरेसा को भारत रत्न से भी नवाजा गया। धीरे-धीरे टेरेसा के चारों ओर ऐसा आभामंडल गढ़ दिया गया कि किसी भी प्रकार का सवाल उठाना वर्जित हो गया। कितने सवाल हैं, जो पूछे नहीं गए। गरीबों के बीच काम करने वाली मदर टेरेसा परिवार नियोजन साधनों के विरुद्ध थीं। जिन भारतवासियों से प्यार का टेरेसा ने दावा किया, उनकी संस्कृति, उनकी समृद्ध विरासत की प्रशंसा में कभी एक शब्द भी नहीं कहा। 1983 में एक हिन्दी पत्रिका को दिए साक्षात्कार में जब मदर टेरेसा से सवाल पूछा गया कि 'एक ईसाई मिशनरी होने के नाते क्या आप एक गरीब ईसाई और दूसरे गरीब (गैर ईसाई) के बीच स्वयं को तटस्थ पाती हैं?' तो टेरेसा का उत्तर था, ‘मैं तटस्थ नहीं हूं। मेरे पास मेरा मजहब है।’ इसी साक्षात्कार में जब टेरेसा से पूछा गया कि अपनी खगोलशास्त्रीय खोजों के कारण मध्ययुगीन चर्च द्वारा प्रताड़ि़त किए गए वैज्ञानिक गैलीलियो और चर्च में से वे किसका पक्ष लेंगी, तो टेरेसा का संक्षिप्त उत्तर था-'चर्च'। गौरतलब है कि मध्ययुगीन चर्च ने अपने विश्वासों और नियमों को समाज पर थोपने के लिए कठोर यंत्रणाओं का सहारा लिया। रोमन कैथोलिक चर्च के लोगों ने यूरोप सहित दुनिया के अनेक भागों में कुख्यात इंक्वीजीशन कानून लागू किया, जिसमें लोगों को उनके गैर ईसाई विश्वासों के कारण कठोर यातनाएं दी गईं। डायन कहकर सैकड़ों वर्षों में लाखों महिलाओं को जिंदा जलाया गया। अंग-अंग काटकर लोगों को मारा गया। चर्च के ही दस्तावेज उन बर्बरताओं को बयान करते हैं, परंतु मदर टेरेसा ने इस सब पर कभी मुंह नहीं खोला। अपराधियों से साठगांठ चार्ल्स हम्फ्री कीटिंग जूनियर अमेरिका के आर्थिक अपराध जगत का जाना-पहचाना नाम है। यह व्यक्ति '90 के दशक में तब चर्चा में आया जब उसके काले कारनामों के कारण सामान्य अमेरिकियों की बचत के 160 बिलियन डॉलर का गोलमाल हुआ। इन पीड़ितों में अधिकांश लोग गरीब तबके के अथवा पेंशन भोगी वृद्ध थे। बाद में यह तथ्य सामने आया कि कीटिंग ने टेरेसा को एक मिलियन डॉलर दिए थे और हवाई यात्राओं के लिए अपना जेट उपलब्ध करवाया था। जब कीटिंग पर मुकदमा चल रहा था तब टेरेसा ने न्यायाधीश को पत्र लिखकर नरमी बरतने की गुजारिश की और सलाह दी कि चूंकि चार्ल्स कीटिंग एक अच्छा आदमी है इसीलिए उन्हें (न्यायाधीश को) उसके साथ वही करना चाहिए जैसा कि जीसस करते। जीसस क्या करते, कहना मुश्किल है लेकिन न्यायाधीश ने कीटिंग को दस साल की सजा सुनाई। इंडियन हाउस आॅफ रिप्रेजेन्टेटिव्स के पूर्व सदस्य और लेखक डॉ़ डॉन बॉएस के अनुसार टेरेसा को डेप्युटी डिस्ट्रक्टि अटॉर्नी का पत्र प्राप्त हुआ जिसमें उन्होंने कहा कि चूंकि कीटिंग ने लोगों की मेहनत की कमाई का पैसा चुराया था, अत: टेरेसा को कीटिंग के दिए 10 लाख डॉलर लौटा देने चाहिए, क्योंकि जीसस भी संभवत: यही करते। परंतु टेरेसा ने न तो पत्र का उत्तर दिया, न ही एक पैसा लौटाया। दुनिया के कुख्यात तानाशाह, जैसे हैती के जीन क्लाउड डोवालिए और अल्बानिया के कम्युनिस्ट तानाशाह एनवर होक्सा, सभी से उनकी नजदीकियां रहीं, सवाल उठते रहे। संत बनने के पीछे का झूठ रोमन कैथोलिक चर्च जब किसी मिशनरी को संत घोषित करता है, तो उसकी एक विशेष प्रक्रिया होती है, जिसका एक मुख्य भाग है उस व्यक्ति द्वारा किए गए किसी 'चमत्कार' की पुष्टि। टेरेसा की मृत्यु के एक वर्ष बाद पोप ने उन्हें संत की उपाधि दी। क्रिस्टोफर हिचेंस ने इस पर सवाल खड़ा किया है। वे लिखते हैं-'मोनिका बसरा नामक एक बंगाली महिला ने दावा किया कि उसके घर में लगे मदर टेरेसा के फोटो से प्रकाश किरणें निकलीं और उसकी कैंसर की गांठ ठीक हो गई, जबकि मोनिका बसरा के चिकित्सक डॉ़ रंजन मुस्तफी का कहना है कि मोनिका बसरा को केंसर था ही नहीं। वह टीबी की मरीज थी एवं उसका बाकायदा इलाज किया गया। क्या वेटिकन ने डॉ़ रंजन से बात की? नहीं। दुर्भाग्य है कि हमारा मीडिया इन विषयों पर प्रश्न नहीं उठाता, न ही तर्कवादी ऐसे दावों पर कोई सवाल खड़ा करते हैं। गरीब लोग ईश्वर की सबसे बड़ी भेंट 1989 में पत्रकार एडवर्ड डब्ल्यु डेसमंड ने टाइम पत्रिका के लिए टेरेसा का साक्षात्कार लिया। इस साक्षात्कार में टेरेसा ने बहुत सधे हुए शब्दों में उत्तर दिए हैं, लेकिन अपने विचारों को पूरी तरह छिपाया भी नहीं। साक्षात्कार के अंश कुछ इस प्रकार हैं – |
राजनीतिक पक्ष
इस पूरे प्रकरण का एक राजनीतिक पक्ष भी है। यह स्पष्ट हो जाने कि केंद्र सरकार ने मिशनरीज के बैंक खातों को फ्रीज नहीं किया है, के बावजूद कांग्रेस के शशि थरूर, पी. चिदंबरम, रणदीप सुरजेवाला जैसे नेताओं ने इस मुद्दे को लपक लिया कि केंद्र सरकार बहुसंख्यकवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए ईसाईयों को निशाना बना रही है।
मिशनरीज आफ चैरिटी पर दिसंबर के दूसरे सप्ताह के आखिर में गुजरात के बड़ोदरा में फिर जबरन कन्वर्जन कराने का आरोप लगा है। मिशनरीज पर 2018 में झारखंड में बच्चों को बेचने का आरोप लगा था, उसकी दो नन्स को गिरफ्तार भी किया था और उन्होंने बच्चे बेचने की बात कबूली भी थी। मिशनरी के झारखंड स्थित केंद्रों से 280 बच्चे गायब पाए गए।
सोशल मीडिया शोधकर्ताओं के अनुसार यह प्रकरण कई तरह के छलावे उजागर करता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट के जरिए फर्जी सूचना क्यों फैलाई? माकपा सचिव सूर्यकांत मिश्र और ममता बनर्जी के ट्वीट की भाषा एक ही जैसी कैसे है? क्या इसके पीछे कोई टूल किट है? कांग्रेस नेता सूचना के गलत साबित होने के बाद भी बहुसंख्यक एजेंडे को आगे बढ़ाने और ईसाइयों को निशाना बनाने के बेबुनियाद आरोप क्यों लगा रहे हैं?
हैरानी इस बात पर भी है कि किसी संस्था पर कार्रवाई होती है तो संस्था का बयान आने से पहले स्थानीय सत्ताधारी पार्टी की ओर से प्रतिक्रिया कैसे आ जाती है। कार्रवाई करने वाले पक्ष और जिन पर कार्रवाई हुई, उनकी ओर से कोई सूचना जारी किए जाने से पहले ही तीसरे पक्ष तक यह सूचना कैसे पहुंचती है। लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर यह कैसा गठजोड़ है और कैसे हित परस्पर जुड़े हुए हैं।
लोग यह प्रश्न उठा रहे हैं कि ममता बनर्जी को किसी केंद्रीय कार्रवाई की सूचना आखिर कैसे मिली। लोग इस प्रश्न को डेरेक-ओ-ब्रायन से जोड़ रहे हैं जो सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस में बड़ी हैसियत रखते हैं और जिनके मिशनरीज आफ चैरिटी से गहरे संबंध हैं। पर मिशनरी के खाते फ्रीज होने पर तृणमूल और माकपा एक मंच पर क्यों आ जाती हैं? लोगों का प्रश्न राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे से जुड़ता है। जानकार बताते हैं कि तृणमूल और माकपा के ट्वीट बंगाल की राजनीति में नए समीकरण का संकेत हैं। क्या तृणमूल कांग्रेस बंगाल में विपक्ष के स्थान को माकपा से भरना चाहती है और यह ट्वीट साझेदारी क्या इस मिलीभगत का संकेत है? ममता के ट्वीट में दी गई सूचना को फौरन लपक लेने की कांग्रेस नेताओं की हड़बड़ी और उसे बहुसंख्यक एजेंडे से जोड़ने की कांग्रेसी चेष्टा को लोग राजनीतिक हित साधने की मंशा देख रहे हैं।
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