अंगकोरवाट: विश्व का विशालतम हिंदू मंदिर
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अंगकोरवाट: विश्व का विशालतम हिंदू मंदिर

by प्रो. भगवती प्रकाश
Dec 25, 2021, 11:30 am IST
in भारत, धर्म-संस्कृति, दिल्ली
हिन्दू मंदिर

हिन्दू मंदिर

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अंगकोरवाट का उल्लेख ईसा पूर्व सातवीं सदी में भी मिलता है। यहां का मंदिर विश्व का विशालतम और स्थापत्य की दृष्टि से कल्पना से परे है। इसका प्राचीन नगर अंकोरथोम औद्योगिक युग से पहले का विश्व का विशालतम जलतंत्रयुक्त राजधानी नगर था। अंगकोरवाट के पूरे क्षेत्र में उत्कृष्ट कोटि के असंख्य मंदिरों के अवशेष हैं। खमेर आक्रमण के बाद यह मंदिर इतिहास से गायब होता गया। 19वीं शताब्दी में फ्रांसीसी खोजकर्ता हेनरी महोत ने पुन: इसकी खोज की

दक्षिण-पूर्व एशिया में कंबोडिया स्थित एक हजार वर्ष प्राचीन अंगकोरवाट विष्णु मंदिर, विश्व का सबसे बड़ा धर्म स्थल और प्राचीन नगर अंगकोरथोम, औद्योगिक युग से पहले का विश्व का विशालतम जलतंत्र युक्त राजधानी नगर था। अंगकोरथोम की जनसंख्या आज के बोस्टन की जनसंख्या के बराबर रही है। अंगकोरवाट का प्राचीन विष्णु मंदिर परिसर 400 एकड़ के विस्तार में फैला है। मंदिर के वास्तुशिल्प को पाश्चात्य वास्तु विशेषज्ञ विश्व दुर्लभ और सामान्य मानवीय सामर्थ्य से परे बताते हैं (चित्र 1 व 2)। विश्व में अन्य कोई मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च इतना विशाल नहीं है।

कंबोडिया के इस नगर का प्राचीन नाम यशोधरपुर था, जो उस काल का विशालतम एवं सर्वाधिक विस्तृत जलतंत्रयुक्त हाइड्रॉलिक नगर है। चारों ओर चौड़ी खाई से घिरे इस नगर में 2,895 छोटे-बड़े तालाब व जल प्रवाह तंत्र का सघन जाल है। इसके राजधानी केंद्र अंगकोरथोम में भी अनगिनत मंदिरों के अवशेष फैले हैं जिसमें ‘बेयन’ का मंदिर प्रमुख है (चित्र 3)।

अंगकोरथोम नगर : इस प्राचीन कम्बोज की राजधानी में मंदिरों सहित राजधानी के भग्नावशेष सैकड़ों वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं। सदियों पहले से हिन्दचीन, कम्बोज, मलाया, इन्द्र्रद्वीप (म्यांमार), सुवर्णद्वीप (सुमात्रा) आदि में हिंदुओं के कई साम्राज्य अपने उत्कर्ष पर थे। संस्कृत पाण्डुलिपियों व शिलालेखों के अनुसार महाभारतकालीन अश्वत्थामा के वंशजों में कौण्डिण्य ब्राह्मण ने कम्बोज (वर्तमान कंबोडिया) की स्थापना की थी। ईसा पूर्व सातवीं सदी के पाणिनि के संस्कृत व्याकरण में भी कम्बोज का वर्णन है।

अंगकोरवाट का विष्णु मंदिर : विश्व के इस सबसे बड़े विष्णु मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में राजा सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53) ने आरंभ किया, जो घरणीन्द्र्रवर्मन के शासन में पूर्ण हुआ। ब्रह्मा, विष्णु व महेश की एक साथ आराधना की जा सके, ऐसा यह एक मात्र मंदिर है (चित्र 4)।

कंबोडिया में 14वीं सदी से बौद्ध धर्म का वर्चस्व हो जाने से अंगकोरवाट मंदिर की संरचना में भी बौद्ध धर्म का प्रभाव होने लग गया। कंबोडिया पर ख्मेर साम्राज्य के राजाओं के आक्रमण के बाद 16वीं सदी से लोगों ने यहां से पलायन आरम्भ कर दिया।

धीरे-धीरे अंगकोरवाट मंदिर इतिहास से गायब हो गया और यह क्षेत्र बांस के जंगलों से घिर गया। 19वीं शताब्दी में फ्रांसीसी खोजकर्ता हेनरी महोत ने अंगकोरवाट मंदिर की पुन: खोज की थी। भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने 1986-93 के बीच इसका जीर्णोद्धार कराया।

उत्कृष्ट शिल्प व राष्ट्रीय महत्व
विष्णु को समर्पित इस मंदिर में कंबोडिया के नागरिकों की गहन आस्था है। मंदिर को कंबोडिया के राष्ट्रीय ध्वज में भी स्थान दिया गया है तथा इसे राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में माना जाता है। ऐसी भी किंवदंती है कि देवराज इंद्र ने अपने पुत्र के निवास के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था। यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में है। इसका मूल शिखर लगभग 64 मीटर ऊंचा है।

इसके अतिरिक्त अन्य सभी आठों शिखर 54 मीटर ऊंचे हैं। मंदिर साढ़े तीन किलोमीटर लम्बी पत्थर की दीवार से घिरा हुआ था, उसके बाहर 30 मीटर खुली भूमि और फिर बाहर 110 फुट चौड़ी खाई है। विद्वानों के अनुसार यह चोल वंश के मंदिरों से मिलता-जुलता है। दक्षिण-पश्चिम में स्थित ग्रन्थालय के साथ ही इस मंदिर में तीन वीथियां हैं जिसमें अन्दर वाली अधिक ऊंचाई पर है। 14वीं या 15वीं शताब्दी में थेरवादी बौद्ध लोगों ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया।

अंगकोरथोम का अतुल वैभव
आज का अंगकोरथोम एक प्राचीन विशाल नगर का भव्य पुरावशेष है। उसके चारों ओर 330 फुट चौड़ी जल की खाई है। नगर और खाई के बीच एक विशाल प्राचीर है जिसमें अनेक भव्य महाद्वार बने हैं। महाद्वारों के ऊंचे शिखरों को त्रिशीर्ष दिग्गज अपने मस्तक पर उठाए खड़े हैं। विभिन्न द्वारों से पांच विभिन्न राजपथ, नगर के मध्य तक पहुंचते हैं। विभिन्न आकृतियों वाले सरोवरों के खण्डहर आज जीर्णावस्था में भी अति भव्य प्रतीत होते हैं। नगर के मध्य शिव का एक विशाल मंदिर है जिसके तीन भाग हैं। प्रत्येक भाग में एक ऊंचा शिखर है। मध्य शिखर की ऊंचाई लगभग 150 फुट है। इस ऊंचे शिखरों के चारों ओर अनेक छोटे-छोटे शिखर बने हैं जो संख्या में लगभग 50 हैं। मंदिर की विशालता, स्थापत्य और निर्माण कला विलक्षण है। इस अतुल भव्यता वाले मंदिर की दीवारों को पशु, पक्षी, पुष्प एवं नृत्यांगनाओं जैसी विभिन्न आकृतियों से अलंकृत किया गया है।

बेयन का मंदिर
अंगकोरथोम नगर के भव्य मंदिरों में ‘बेयन‘ का भी अति भव्य मंदिर है, जहां 54 स्तम्भों पर अवलोकितेश्वर के स्मित मुस्कान युक्त  चेहरे बने हुए हैं (चित्र 5)। रामायण की घटनाओं से उत्कीर्णित ‘बाण्टे श्रेय’ का मंदिर अपेक्षाकृत छोटा पर अत्यंत सुरुचिपूर्ण व शिव को समर्पित है (चित्र 6)। हिंदू-बौद्ध समन्वय के साझे उपासना स्थल के रूप में 56 एकड़ में फैला प्रीह खान (पवित्र खड्ग) मंदिर अंकोर का सबसे बड़ा मंदिर है। बौद्ध विहार के साथ यहां बड़ी संख्या में हिंदू मंदिरों से घिरा स्थान है (चित्र 7)। जयगिरी का ब्रह्माजी का मंदिर समूह व शिव का त्रिस्तरीय मंदिर भी अत्यंत भव्यता युक्त है (चित्र 8)। अंगकोरथोम का प्रवेश द्वार अत्यंत भव्य था (चित्र 9)।

अंगकोरथोम अर्थात् यशोधरपुर कम्बोज की राजधानी था जिसमें तब विष्णु, शिव, शक्ति, गणेश आदि सभी हिंदू देवी-देवताओं की पूजा प्रचलित थी। अभिलेखों के अनुसार यशोधरपुर के अतिरिक्त कम्बोज राज्य के अनेक स्थानों पर आश्रम व गुरुकुलों में रामायण, महाभारत, पुराण तथा अन्य भारतीय ग्रन्थों का अध्ययन-अध्यापन होता था। कालान्तर में अंकोर के हिन्दू मंदिरों पर बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा होने से अब वहां बौद्ध भिक्षुओं के निवास हैं।
पौराणिक इतिहास, रामायण व महाभारत का सजीव चित्रण

मंदिर के गलियारों में रामायण, महाभारत एवं पौराणिक वर्णनों के अनुरूप, बलि-वामन, स्वर्ग-नरक, समुद्र मन्थन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश पुराण तथा रामायण से संबद्ध शिलाचित्रों की शृंखला है, जो रामायण में वर्णित रावण वध हेतु देवताओं की स्तुति से आरम्भ होती है। उसके बाद सीता स्वयंवर, विराध एवं कबन्ध वध का चित्रण और राम धनुष-बाण लिए स्वर्ण मृग के पीछे जाते दिखाए गए हैं। इसके उपरांत सुग्रीव से राम की मैत्री का दृश्य, बाली और सुग्रीव का द्वन्द्व युद्ध, अशोक वाटिका में हनुमान जी की उपस्थिति, राम-रावण युद्ध और राम की अयोध्या वापसी के दृश्य भी हैं। पौराणिक अमृत मन्थन, स्वर्ग व नरक यातनाओं का भी सजीव उत्कीर्णन है। नरक के दृश्य को देख कर दर्शकों को पाप कृत्यों से बचने की शिक्षा मिलती है।
(लेखक गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के कुलपति रहे हैं)

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