आंखें नम हैं। जो हुआ, उसे मानने को मन तैयार नहीं..
कवि के शब्द मनमस्तिष्क में गूंज रहे हैं –
है नमन उनको कि जो देह को अमरत्व देकर
इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गए हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गए हैं
शीर्ष सेनापति, उनकी पत्नी और उनके साथ कई महत्वपूर्ण सैन्य अधिकारियों को हमने एक झटके में खो दिया। यह वज्रपात से कम नहीं।
सैनिक सीमा पर, संघर्ष में जूझते हुए बलिदान होते हैं। ऐसे संघर्ष के समय एक सैनिक, एक परिवार, पूरा राष्ट्र अस्मिता के लिए बलिदान देने को उद्धत, संकल्पित होता है।
किन्तु शांति काल में… अकस्मात!
पीड़ा दोनों समय होती है. किंतु एक में दर्द से मुट्ठियां भिंचती हैं.. कदम बढ़ते हैं, तो दूसरे में टीस और अंदेशे आंसुओं में घुल-मिल जाते हैं।
विपत्ति-व्यवधानों में परिवार कैसा व्यवहार करते हैं!
भारत मां का यह परिवार ही तो है! कैसा व्यवहार अपेक्षित है?
दुख को बांटें, आशंकाओं को काटें, एक-दूसरे को सहारा देते हुए मनोबल न गिरने दें।
एक राष्ट्र का होने के नाते हम एक परिवार ही तो हैं।
राष्ट्र के लिए यही तो हमारी संकल्पना है।
हम मां भारती के सपूत कहते हैं, भारत माता की जय कहते हैं।
तो जब मां जब एक हो जाती है तो उनके बच्चे एक हो जाते हैं, परिवार हो जाता है, कुटुम्ब हो जाता है।
तो राष्ट्र के तौर पर हमारा व्यवहार विपत्ति काल में परिवार जैसा होना चाहिए। दुख को सहने के लिए एकजुट होने वाला और एक-दूसरे को सहारा देते हुए मनोबल न गिरने देने वाला। यही ना!
मत भूलिए, सेनाएं जब मोर्चा लेती हैं तो शत्रु सामने होता है। परंतु शांति काल का यह अर्थ नहीं कि शत्रु होता ही नहीं। बल्कि कई बार अदृश्य शत्रु होता है।
समाज की सतर्कता, समन्वय, सहभाग… यह शांतिकाल के भी सुरक्षा सूत्र हैं। ऐसे में हमें देखना चाहिए कि तरह-तरह की आशंकाओं को जन्म देने वाले और दुखी समाज को और क्षुब्ध, आक्रोशित करने वाले तत्व कौन से हैं?
निश्चय जानिए, राष्ट्र की मुख्यधारा के तत्व नहीं हैं। जिन्हें इस देश के दुख से दर्द नहीं होता, वे राष्ट्रीय भावनाओं के साथ कदमताल नहीं करते। हमारे नायकों, इस पूरे देश की भावनाओं की खिल्ली उड़ाने वाले, दुख की घड़ी में ताली बजाने वाले, मखौल उड़ाने वाले ये लोग कौन हैं, दर्द को बढ़ाने वाले कौन हैं। सभी अनिष्ट आशंकाओं को बुहारने के लिए हमें एकजुट होना और देश का दर्द बढ़ाने वालों को चिन्हित करना, उनका उपचार करना भी शांति काल में एक काम होना चाहिए। शांतिकाल को शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है।
बिपिन रावत होने के कई अर्थ हैं।
इस देश में दूर-दराज कोई, कहीं भी किसी स्थान से क्यों न हो, यह देश अपने होनहार सपूत को माथे का चंदन बनाने के लिए तैयार है, जनरल बिपिन रावत का जीवन इस राष्ट्रीय एकात्म का उद्घोष है।
प्रतिबद्धता, समर्पण और जीवट हो तो व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। बिपिन रावत का जीवन ऐसा प्रेरक शिलालेख है। पहाड़ के हैं, सुदूर पूर्वोत्तर भारत की सीमाओं पर रहे, बलिदान सुदूर तमिलनाडु में हुए। वे किसी एक प्रांत के नहीं हैं, वे किसी एक भाषा के नहीं हैं, किसी एक कोटरी के नहीं हैं। वे राष्ट्र के नायक हैं।
बिपिन रावत होने का एक अर्थ समन्वय भी है। थिएटर कमांड, जिसे बनाने में अमेरिका को 30 वर्ष लग गए, उसे कैसे 3-4 वर्ष में बना लिया जाए, इसकी रणनीति बनाने वाले जनरल बिपिन रावत हैं।
शत्रुता भाव रखने वाले देश की नापाक हरकतों के जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक सिखाने वाले हैं वे। बिपिन रावत जब आतंकी हमलों पर दहाड़ लगाते हैं कि ‘ये वह भारत नहीं है जो बस हमलों की निंदा करे, ये नया भारत है, जो हर भाषा जानता है, सम्मान की भी और बंदूक की भी’ तब वे आतंकी हमले से आहत राष्ट्र के आत्मसम्मान का चेहरा बन जाते हैं।
जब वीर अब्दुल हमीद के बलिदान दिवस के लिए उनकी पत्नी रसूलन बीबी वर्ष 2017 में जनरल रावत को आमंत्रित करने दिल्ली पहुंची तो जनरल रावत विदेश में थे। उनके स्टाफ ने उन्हें सूचना दी तो उन्होंने संदेश भिजवाया कि वे तत्काल लौट रहे हैं और रसूलन बीबी उनसे मिले बिना न जाएं। अगले दिन जनरल रावत स्वदेश लौटे और रसूलन बीबी से मिले और कार्यक्रम में वीर अब्दुल हमीद के गाजीपुर स्थित गांव भी गए। बलिदानी सैनिकों के परिवारों के प्रति उनका ऐसा जज्बा था।
जनरल बिपिन रावत एक ऐसे अप्रतिम सैन्य रणनीतिकार थे जिनके निधन से पूरा देश शोक-संतप्त है। हेलिकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने और उसमें जनरल रावत के सवार होने की सूचना मिलते ही सोशल मीडिया पर उनके स्वस्थ होने की प्रार्थनाएं होने लगीं।
उनके निधन की सूचना जब शाम को दी गई तो लोग जैसे रो पड़े। लोग उनके जीवन से जुड़े किस्से सोशल मीडिया पर शेयर करने लगे। पुरुष, महिलाएं, युवा, बुजुर्ग सभी आहत दिखे। किसी को इस समाचार पर विश्वास करने का दिल नहीं कर रहा था। सोशल मीडिया श्रद्धांजलि संदेशों से भर गया।
किसी सैन्य प्रमुख के निधन पर नागरिक समाज के इस कदर शोक-संतप्त होने से दुनिया आश्चर्य में है। यह भारत की विशेषता है। देश के लिए लड़ने वाला, देश का मान रखने वाला, देश को आगे बढ़ाने वाला इस देश के लोगों के दिलों में स्थान बना ही लेता है।
तभी तो देश के इस नायक के निधन पर शोकाकुल जनता कश्मीर के लालचौक पर एकत्र हो जाती है तो उनके नश्वर शरीर को लेकर जाती एम्बुलेंस के गुजरने पर मार्ग के दोनों तरफ खड़ी तमिलनाडु की जनता नारे लगाती है-वीर वणक्कम यानी हम अपने नायक का स्वागत करते हैं।
जनरल रावत के निधन पर दुनिया के कई देशों से श्रद्धांजलियों का तांता लगा है। दुनिया जनरल रावत को, उनकी बहादुरी को याद कर रही है।
आघात बड़ा है, किन्तु आंसुओं से भीगकर भी यह राष्ट्र श्रद्धावनत एकसाथ खड़ा है।
है नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन
काल कौतुक जिनके आगे पानी-पानी हो गए हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गए हैं
@hiteshshankar
हितेश शंकर पत्रकारिता का जाना-पहचाना नाम, वर्तमान में पाञ्चजन्य के सम्पादक
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