गत दिनों नोएडा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता और लेखक श्री कृष्णानन्द सागर की पुस्तक ‘विभाजनकालीन भारत के साक्षी’ का विमोचन हुआ। विमोचनकर्ता थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत। इस अवसर पर उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत का विभाजन न मिटने वाली वेदना है और यह वेदना तभी मिटेगी जब विभाजन निरस्त होगा। उन्होंने कहा कि विभाजन का उपाय, उपाय नहीं था।
विभाजन से न तो भारत सुखी है और न वे सुखी हैं, जिन्होंने इस्लाम के नाम पर विभाजन किया। विभाजन कोे तब से समझना होगा जब से भारत पर इस्लाम का आक्रमण हुआ और गुरु नानकदेव जी ने सावधान करते हुए कहा था, यह आक्रमण देश और समाज पर है, किसी एक पूजा-पद्धति पर नहीं। उन्होंने कहा कि इस्लाम की तरह निराकार की पूजा भारत में भी होती थी, किंतु उसको भी नहीं छोड़ा गया, क्योंकि इसका पूजा से संबंध नहीं था, अपितु प्रवृत्ति से था और प्रवृत्ति यह थी कि हम ही सही हैं, बाकी सब गलत हैं और जिनको रहना है उन्हें हमारे जैसा होना पड़ेगा या वे हमारी दया पर ही जीवित रहेंगे।
श्री भागवत ने देश की स्वतंत्रता को लेकर संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की दूरदर्शिता के बारे में कहा कि 1930 में डॉ. हेडगेवार ने सावधान करते हुए हिंदू समाज को संगठित होने को कहा था। उन्होंने कहा कि मुट्ठीभर लोगों को संतुष्ट करने के लिए हमने कई समझौते किए। राष्ट्रगान से कुछ पंक्तियां हटाइं, राष्ट्रीय ध्वज के रंगों में परिवर्तन किया, परंतु वे मुट्ठीभर लोग फिर भी संतुष्ट नहीं हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति शंभूनाथ श्रीवास्तव ने की। विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के महामंत्री श्रीराम आरावकर और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव कुमार रत्नम ने भी अपने विचार रखे।
टिप्पणियाँ