मध्ययुगीन सोच के तालिबान लड़ाकों ने संगीत कार्यक्रमों और मनोरंजन के साधनों के विरुद्ध किए कानून सख्त, काबुल के थिएटर हुए बंद
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मध्ययुगीन सोच के तालिबान लड़ाकों ने संगीत कार्यक्रमों और मनोरंजन के साधनों के विरुद्ध किए कानून सख्त, काबुल के थिएटर हुए बंद

by WEB DESK
Dec 3, 2021, 04:30 pm IST
in विश्व
काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान लड़ाकों ने इस तरह तोड़ दिए थे संगीत वाद्य (फाइल चित्र)

काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान लड़ाकों ने इस तरह तोड़ दिए थे संगीत वाद्य (फाइल चित्र)

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'पश्चिम के विरोध' के नाम पर उसने आम अफगानियों का जीना मुहाल बनाया हुआ है। तालिबान ने अब आम जनता के मनोरंजन के साधनों पर भी कुठाराघात करने की तैयारी कर ली है

 

बंदूक​ के दम पर, पाकिस्तान की मदद से अफगानिस्तान की कुंजी थामे बैठे तालिबान लड़ाकों का अपनी मध्ययुगीन सोच का प्रदर्शन करना जारी है। भूखों मर रहे अफगानियों की चिंता छोड़ बर्बर सोच के तालिबानी 'शरिया' के कायदे लागू करने पर पूरा जोर लगाए हुए हैं। उस देश में अब मानवाधिकार जैसी कोई चीज तो  नाम को भी नहीं बची है। 

'पश्चिम के विरोध' के नाम पर उसने आम अफगानियों का जीना मुहाल बनाया हुआ है। तालिबान ने अब आम जनता के मनोरंजन के साधनों पर भी कुठाराघात करने की तैयारी कर ली है। शादियों, समारोहों में नाच—गाने पर रोक लगाने के बाद अब तालिबान टेलीविजन, सिनेमा, धारावाहिक, संगीत के कार्यक्रमों पर पाबंदी लगाने के लिए सख्त कानून बना चुका है। खबर है कि गत 15 वर्ष में देश में मनोरंजन को लेकर जो भी कार्यक्रम शुरू किए गए थे, लोग जो छुट्टी के दिन दिल बहलाने के लिए थिएटरों में जाने लगे थे, उस सब पर अब पाबंदी लगने वाली है। बताया गया है कि काबुल में कई थिएटरों पर ताले लटकाए जा चुके हैं। 

तालिबान लड़ाकों के राज में कानून इतने कड़े कर दिए गए हैं कि मंचीय संगीत कार्यक्रमों, संगीत वाद्यों और पार्टियां करने पर रोक लग चुकी है। जल्दी ही इस पर शरिया के तहत सख्त कानून लागू हो सकता है। वैसे भी, काबुल के अलावा कई दूसरे शहरों में भी एयरवेब, बड़ी टेलीविजन स्क्रीनों, संगीत के स्कूलों और थिएटर सुनसान हो चुके हैं, या उन पर ताले लटका दिए गए हैं।

 

1996 से 2001 के दौरान भी जब देश में तालिबान का राज था तब भी संगीत पर पूरी तरह पाबंदी लगाई गई थी। जो कायदे का पालन नहीं करते थे उन्हें कोड़े लगाए जाते थे। इसके बाद पूरे देश में लोग चोरी छिपे ही शौकिया संगीत सुन पाते थे। किसी के यहां से गीतों के कैसेट भी बरामद होते तो उसे कड़ी सजा दी जाती थी।

 

1996 से 2001 के दौरान भी जब देश में तालिबान का राज था तब भी संगीत पर पूरी तरह पाबंदी लगाई गई थी। जो कायदे का पालन नहीं करते थे उन्हें कोड़े लगाए जाते थे। इसके बाद पूरे देश में लोग चोरी छिपे ही शौकिया संगीत सुन पाते थे। किसी के यहां से गीतों के कैसेट भी बरामद होते तो उसे कड़ी सजा दी जाती थी।

इतना ही नहीं, अफीम पर पूरी तरह रोक लगी होने के बाद भी तालिबान गत बीस वर्ष में पाकिस्तान तथा ईरान की सरहदों पर अफीम की भारी तादाद में आपूर्ति कराकर इससे पैसा बनाता था। अफगानिस्तान के जानकार बताते हैं कि अब इस बार भी तालिबान लड़ाकों की सोच में कोई बदलाव नहीं आया है। वह पहले वाले ढर्रे पर ही चल रहा है। बर्बरता में उसने रत्तीभर कमी नहीं की है। लोगों को कोड़े मारना और महिलाओं पर अत्याचार करना उसके लड़ाकों का पसंदीदाद शगल है। 

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