कुछ दिन पहले झारखंड सरकार ने 'झारखंड कर्मचारी चयन आयोग' की नियुक्ति नियमावली में बदलाव कर उससे अंग्रेजी, हिंदी, भोजपुरी आदि भाषाओं को हटा दिया था और उसमें उर्दू, बांग्ला जैसी भाषाओं को शामिल किया था। सरकार का तर्क था कि अंग्रेजी, हिंदी आदि भाषाएं स्थानीय नहीं हैं। इसलिए उन्हें हटाया गया था। वहीं कुछ लोगों का कहना था कि जब हिंदी स्थानीय भाषा की सूची में शामिल नहीं है, तो उर्दू और बांग्ला कैसे स्थानीय भाषा हो गई! इस तर्क के साथ कुछ लोग न्यायालय पहुंचे थे। उनकी याचिका पर झारखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से पूछा है कि हिंदी और अंग्रेजी को पेपर—दो से हटाकर उर्दू, बांग्ला और अन्य भाषाओं को शामिल करने का औचित्य क्या है!
दायर याचिका में स्नातक संचालन संशोधन नियमावली 2021 को असंवैधानिक बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है। यह याचिका इस नियमावली से प्रभावित झारखंड के ही मूलनिवासी रमेश हांसदा और कुशल कुमार ने दायर की है। याचिका में यह भी कहा गया है कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही 10वीं और 12वीं पास की अनिवार्यता रखी गई है। इसके अलावा 14 स्थानीय भाषाओं में से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया, जबकि उर्दू, बांग्ला और ओड़िया सहित 12 अन्य स्थानीय भाषाओं को शामिल किया गया है। प्रार्थी के अनुसार इस नियमावली ने संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन किया है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना सरकार की राजनीतिक मंशा का परिणाम है। ऐसा सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए किया गया है।
टिप्पणियाँ