गत दिनों छत्तीसगढ़ के केदार द्वीप (मदकूद्वीप) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, छत्तीसगढ़ प्रांत का त्रिदिवसीय घोष शिविर आयोजित हुआ। इसके समापन समारोह में 94 स्वयंसेवकों ने घोष प्रदर्शन किया। घोष स्वयंसेवकों ने 43 रचनाओं यथा- बखान, विनायक, हररंजनी, शिवरंजनी, मंगला, भारतं, मीरा, दशमेश, पहाड़ी, सागर, वलचि, बंगश्री, सोनभद्र, कल्याणी, दशमेश, भूप केदार, साकेत, राजश्री कृष्ण, तिलंग, श्रीराम, तिलक, कामोद, टिक टिक, गोवर्धन, अजेय, कावेरी, शिवराज, शंकरा, वीरश्री, शरावती, वसुंधरा, प्रतिध्वनि, हंसध्वनि, चेतक, तथागत, माधवानिल, जन्मभूमि, मेवाड़, श्रीपाद, परमार्थ, जयोस्तुते, दीप, हरिहर का प्रदर्शन किया। इन रचनाओं में अंतिम रचना हरिहर की रचना और उसका प्रदर्शन पहली बार हरिहर क्षेत्र केदार द्वीप में किया गया। स्वयंसेवकों द्वारा प्रदर्शित घोष प्रदर्शन को देखने के लिए मुंगेली, भाटापारा, रायपुर, बिलासपुर सहित 119 गांवों के प्रमुख एवं उनकी टोली और बड़ी संख्या में प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित थे।
समापन समारोह में मंच पर सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत, मध्यक्षेत्र के संघचालक श्री अशोक सोहनी, छत्तीसगढ़ प्रांत के संघचालक डॉ. पूर्णेन्दु सक्सेना एवं हरिहर क्षेत्र आश्रम के संत श्री रामरूप दास महात्यागी जी उपस्थित थे। इस अवसर पर श्री भागवत ने कहा कि अपने आपको पहचानो कि हम कौन हैं, तभी गुणों का विकास होगा। हिंदू सबको अपना मानता है। यहां तक कि जो उनको अपना नहीं मानता, उनको भी अपना मानता है। कलियुग में संगठन शक्ति ही सबसे बड़ी शक्ति है। हमें सबको साथ लेकर चलना है, बिना बदले जो जैसा है, वैसे ही उसको अपना कर चलना है। उन्होंने आगे कहा कि हम सबमें उसी को देखते हैं जो हममें है। हम स्त्री को माता मानते हैं, यही हमारे देश का सूत्र है। हम विविधता में एकता और एकात्मता के दर्शन वाले हैं। हमें अपने देश को संवारना है और विश्व को भी सही दिशा दिखानी है।
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