एक वरिष्ठ महिला केंद्रीय अधिकारी को सीबीआई ने आठ लाख रुपये नकद घूस लेते गिरफ्तार किया। उनका वेतन दो लाख रु. प्रतिमाह से अधिक है और अवकाश प्राप्ति पर करीब दो करोड़ रुपये मिलेंगे। उनका विवाह उसी विभाग के डॉक्टर के साथ हुआ था। बाद में पति से तलाक व एक नेता टाइप ठग से विवाह हुआ।
कभी हिंदू महिलाएं मानती थीं कि विवाहिता बनकर जिस दहलीज के अंदर गईं, उसे अर्थी पर ही पार करेंगी। न कोई सवाल, न कोई चर्चा और न ही पुनर्विचार। विपरीत सोचना भी पाप। फिर दो बातें हुईं। हिंदू पुरुषों ने समाजवादी ठगों को वोट देना शुरू किया। नतीजा, गरीबी आई तो पत्नी का उत्तरदायित्व बना दिया कि वे दहेज द्वारा उन्हें धनी बनाएंगी। नहीं तो उनकी हत्या की जाएगी या तलाक दिया जाएगा।
दूसरी ओर, वामपंथियों ने लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया कि विवाह शोषण है, जीवन तो जेएनयू के कमरों में है। लड़कियों के माता-पिता पर भी दहेज हत्याओं के बाद आरोप लगे कि उन्हें बेटी पर अत्याचार की जानकारी थी, पर उसे तलाक नहीं लेने के लिए विवश किया। इसलिए माता-पिता बेटियों को शिक्षित करने लगे।
भारत में शिक्षा का मतलब है सरकारी या अच्छी नौकरी। यह तिलिस्म भी वामपंथियों ने ही बनाया है। संपन्नता शिक्षा से नहीं, पूंजीवाद से आती है। किंतु वर-वधू पक्ष जाति या मुफ्तखोरी के नाम पर वोट समाजवादियों को ही देते हैं। इसलिए गरीबी वहीं है। वर पक्ष कहता है कि वधू हमें दहेज द्वारा धनी बनाए, नहीं तो जाए। लड़की पूछती है कि मुझसे वादा किया गया था कि ग्रेजुएशन के बाद अच्छा जीवन मिलेगा, वह कहां है?
आज दहलीज की पवित्रता के परखचे उड़ चुके हैं। आने वाले सालों में भारत में परिवार नहीं होंगे, बस मकान होंगे, जिनमें महिला व पुरुष अकेले होंगे। हम धर्म का त्याग करेंगे तो जीवन हमारा त्याग करेगा।
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