पड़ोसी देशों के साथ हर तरह की परिस्थिति में खड़े होने की भारत की वसुधैव कुटुम्बम की सोच की आज दुनिया भर में तारीफ हो रही है। बात चाहे कोरोना से संघर्ष में हाथ बंटाने, आवश्यक राहत उपलब्ध कराने की हो या कैसी भी प्राकृतिक आपदा के वक्त सहायता का कदम बढ़ाने की भारत की वर्तमान सरकार ने अपनी जरूरतों का ध्यान रखते हुए पड़ोसी ही नहीं, दूर देशों की भी हरसंभव मदद की है। और इसी कड़ी में भारत ने नेपाल को 50 हजार आवास बनाकर सौंपे हैं।
कल यानी 15 नवम्बर को काठमांडू में एक कार्यक्रम में भारतीय दूतावास ने ये नवनिर्मित पक्के आवास नेपाल सरकार को सौंपे। ये आवास अप्रैल 2015 में नेपाल में आए जबरदस्त भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गए थे। उल्लेखनीय है कि अप्रैल 2015 में नेपाल में आए उस विनाशकारी भूकंप में नौ हजार से ज्यादा लोगों की असमय मौत हुई थी।
भूकंप के बाद टूटे घरों के पुनर्निर्माण पर सहायता के तौर पर भारत सरकार ने 15 करोड़ डालर यानी करीब 1100 करोड़ रुपये से ज्यादा देने का वायदा किया था। इसमें से 10 करोड़ डालर अनुदान के तौर पर तो पांच करोड़ 'फोर्थ लाइन आफ क्रेडिट' के अंतर्गत दिए गए थे।
भारतीय दूतावास के उप प्रमुख नामग्या सी. खंपा ने बताया है कि नेपाल के दो जिलों, गोरखा और नुवाकोट में 50,000 निजी घरों के पुनर्निर्माण का काम पूरा हो गया है। मार्च 2018 में इस काम के लिए भारत सरकार ने यूएनडीपी और यूएनओपीएस जैसी संस्थाओं को भी सम्मिलित किया था। |
नेपाल में भारतीय दूतावास के उप प्रमुख नामग्या सी. खंपा ने बताया है कि 50,000 निजी घरों के पुनर्निर्माण का काम पूरा हो गया है। मार्च 2018 में इस काम के लिए भारत सरकार ने यूएनडीपी और यूएनओपीएस जैसी संस्थाओं को भी सम्मिलित किया था। भारत की ओर से नेपाल के दो जिलों, गोरखा और नुवाकोट में क्षतिग्रस्त हुए मकानों का पुनर्निर्माण कराया गया है।
भारतीय दूतावास की ओर से पुनर्निर्माण का यह काम राष्ट्रीय पुनर्निर्माण प्राधिकार (एनआरए), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) तथा संयुक्त राष्ट्र परियोजना सेवा कार्यालय (यूएनओपीएस) की मदद से सफलतापूर्वक पूरा किया गया है। इस अवसर पर काठमांडू में एक कार्यक्रम भी आयोजित किया।
यहां बता दें कि इस भूकंप से नेपाल को जानोमाल की जबरदस्त हानि हुई थी। भूकंप के झटके नेपाल के अलावा भारत, चीन तथा बांग्लादेश तक भी महसूस किए गए थे। इसका केंद्र नेपाल के लामजुंग नामक स्थान से करीब 38 किलोमीटर दूर मौजूद था। इसके कारण माउंट एवरेस्ट पर भी पहाड़ खिसके थे और कई पर्वतारोही इसकी चपेट में आए थे, 17 पर्वतारोहियों ने इसमें अपनी जान गंवाई थी।
काठमांडू घाटी में यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल सहित अनेक प्राचीन इमारतों और मंदिरों को नुकसान पहुचा था तो अनेक पूरी तरह से ध्वस्त हो गए थे। प्राचीन धरहरा मीनार के मलबे से ही 200 से अधिक शव बरामद किए गए थे।
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