राजेश प्रभु साळगांवकर
महाराष्ट्र में हाल ही में हुए दंगों के पीछे रजा अकादमी का हाथ बताया जाता है। इसके पहले भी रजा अकादमी के काले कारनामें सामने आ चुके हैं। लेकिन वर्तमान में राज्य में सत्ताधारी शिवसेना—एनसीपी तथा कांग्रेस के साथ रजा अकादमी के मधुर संबंध होने के कारण पुलिस अब तक उस पर कार्रवाई करने से बचती आई है। दरअसल, शिवसेना—एनसीपी—कांग्रेस गठबंधन रज़ा अकादमी को महाराष्ट्र की राजनीति में सुन्नी मुस्लिमों के नेतृत्व का अगुवा बनाना चाहता है। क्योंकि कांग्रेस—एनसीपी नेता सुन्नी मुस्लिमों में पैठ बनाए बैठे ओवैसी बंधुओं की एमआईएम पार्टी को "भाजपा के निकट" मानते हैं। इन दलों के इस गलत आकलन के कारण राज्य में कट्टरपंथ को बढ़ावा मिल रहा है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि बीते शुक्रवार को राज्य में जिन प्रदर्शनों से दंगों की शुरुवात हुई, उसमें रज़ा अकादमी के समर्थन में एमआईएम भी शामिल थी।
रजा अकादमी का अराजक इतिहास
2012 में मुम्बई के आजाद मैदान में हुए दंगों में दो लोगों की मृत्यु हुई थी तथा 50 से अधिक पुलिस कर्मी तथा कई मीडिया कर्मी घायल हुए थे। पुलिस तथा मीडिया के कई वाहन फूंके गए थे। आजाद मैदान स्थित करगिल हुतात्मा स्मृति को तोड़ा गया था। तब सत्ता में रही कांग्रेस—एनसीपी सरकार इस खुल्लम—खुल्ला दंगे के दोषी रज़ा अकादमी को बचाती रही। 2014 से 2019 भाजपा शासन काल में रज़ा अकादमी के कारनामे नियंत्रण में रहे। लेकिन जैसे ही राज्य में शिवसेना—एनसीपी—कांग्रेस के गठबंधन की सरकार बनी, तो फिर से रजा अकादमी हरकत में आ गयी। मुम्बई में पंजीकृत तथा मुख्यतः मुम्बई से कारोबार चलाने वाली रज़ा अकादमी उत्तर प्रदेश के मामलो में भी दखल देती आई है|
क्या है रजा अकादमी ?
रजा अकादमी मुस्लिम कट्टरपंथ को कथित बौद्धिक मुखौटा देने वाली प्रकाशन संस्था के रूप में स्थापित हुई थी। पाठकों को बात दें कि रजा अकादमी भाग्यनगर (हैदराबाद) के निजाम के सेनापति कासिम रिजवी द्वारा बनाए गए तत्कालीन आतंकी संगठन रज़ाकार के पदचिन्हों पर चलती आई है| कहने को तो बरेली के इमाम अहमद रज़ा खान की पुस्तकों का प्रकाशन करने,को अपना काम बताती है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों के समाचार देखें तो अराजक गतिविधियों को बौद्धिक मुखौटा देने का काम रज़ा अकादमी कर रही है| 1978 में मुम्बई में पंजीकृत रज़ा अकादमी का अध्यक्ष महमूद सईद नूरी है। इनके द्वारा ही रज़ा अकादमी बनाई गई। मुम्बई के सुन्नी मुस्लिम समाज में वर्चस्व बनाये बैठे रज़ा अकादमी ने आज तक सैकड़ों पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जो हिंदी, उर्दू, अरबी तथा अंग्रेजी में उपलब्ध हैं। लेकिन राजनीतिक क्षेत्र पर प्रभाव डालने वाले रज़ा अकादमी पर भाग्यनगर (हैदराबाद) के निजामकालीन सुन्नी अराजक संगठन "रज़ाकार" का प्रभाव रहा है।
गौरतलब है कि रज़ाकार एक आतंकी संगठन था, जिसने भाग्यनगर (हैदराबाद) के निजाम के राज्य में 1946/47 में बड़ा उत्पात मचाया था। निजाम के राज्य का भारत में विलय रोकने के लिए निजामी प्रदेश के हिंदुओं पर रज़ाकार द्वारा प्रचंड अत्याचार किये गए। हजारों हिंदुओं की हत्याए की गईं। सैकड़ों हिन्दू महिलाओं पर बलात्कार किये गए। लेकिन हैदराबाद प्रदेश के लोगों की स्वतंत्र भारत में विलय होने की मांग वह रोक नहीं पाया। भाग्यनगर (हैदराबाद) संस्थान (रियासत) का स्वतंत्र भारत में विलय तथा निजाम के अंत के साथ ही रज़ाकार नष्ट हो गया। लेकिन उसके आतंकी कारनामों में इस्लामियत देखने वाले आज भी जिंदा हैं।
रज़ा अकादमी की एमआईएम से स्पर्धा
भाग्यनगर स्थित ओवैसी बंधु एमआईएम पार्टी के माध्यम से सुन्नी मुस्लिम कट्टरपंथ की राजनीति करते हैं। ओवैसी बंधु स्वयं को रज़ाकार के संस्थापक कसीम रिजवी के वारिस बताते हैं। उस माध्यम से मुस्लिम मानस में स्वयं का आक्रामक मुस्लिम नेतृत्व का स्थान तैयार करना चाहते हैं। वहीं मुम्बई स्थित रज़ा अकादमी भी रज़ाकार के पदचिन्हों पर चलते हुए स्वयं को आक्रामक मुस्लिम नेतृत्व मानती हैं। माना जाता है कि मुम्बई के सुन्नी मुस्लिम समाज में रज़ा अकादमी का स्थान आक्रामक नेतृत्व के रूप में ओवैसी से ऊंचा है। राजनीतिक विशेषज्ञों की नजर में हाल ही में हुए महाराष्ट्र के दंगे रज़ा अकादमी को पूरे महाराष्ट्र में सुन्नी मुसलमान समाज के नेतृत्व के रूप में प्रस्थापित करने का प्रयास था।
भारत विरोधी कारनामें
रज़ा अकादमी इसके पहले भी भारत के बाहर घटने वाली घटना को लेकर मुस्लिम समाज के मानस को ब्रेनवाश कर चुकी है।
-म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों पर हुए तथाकथित अत्याचार को लेकर आजाद मैदान में उन्मादी दंगाई भीड़ को एकत्र करना
-चीन में उईगर प्रान्त में मुसलमानों पर हो रहे तथाकथित अत्याचार के विरुद्ध चीन के कॉन्सुलेट के सामने पिछले महीने प्रदर्शन
-इजरायल और फ्रांस के विरुद्ध समय—समय पर विरोध प्रदर्शन और अराजकता
-"मोहम्मद द मेसेंजर"/ "मैसेंजर ऑफ गॉड" नामक इरानी चित्रपट पर पाबंदी लाने की मांग रज़ा अकादमी ने की थी। जब ईरान में इस पर प्रतिबंध नहीं था। लेकिन रज़ा अकादमी के दबाव में महाराष्ट्र के तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख ने तुरंत कार्रवाई शुरू की थी और केंद्र सरकार को इस फ़िल्म पर पाबंदी की शिफारिश भेजी थी।
-सऊदी अरब आर इजरायल के बीच हुए समझौते का रज़ा अकादमी ने विरोध किया था।
-आतंकियों को पनाह देने तथा आर्थिक मदद पहुंचाने के प्रकरण में जाकिर नाइक के ऊपर हो रही कार्रवाई भी रज़ा आकदमी ने पुरजोर विरोध किया था।
-बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन, संगीतकार ए .आर. रहमान तथा ईरानी फिल्मकार मजीद मजीदी के विरुद्ध रज़ा अकादमी ने फतवे जारी किए हुए हैं।
-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाये गए तीन तलाक रद्द करने वाले अधिनियम के विरुद्ध रज़ा अकादमी जोरदार प्रदर्शन कर चुकी है।
-सीएए का विरोध करने में रजा अकादमी ने मुस्लिमों को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ी
-रज़ा अकादमी ने 1988 में "सेटेनिक व्हर्सेस" के लेखक सलमान रश्दी के विरुद्ध फतवा जारी किया था।
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