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अंधविश्वास की आड़ में अमानवीय हरकत

by रितेश कश्यप
Nov 9, 2021, 01:07 pm IST
in भारत, बिहार
थाने में रिपोर्ट दर्ज करातीं पीड़ित महिलाएं

थाने में रिपोर्ट दर्ज करातीं पीड़ित महिलाएं

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झारखंड के गुमला जिले में डायन बताकर दो महिलाओं के साथ बर्बरता की गई। बर्बरता करने वाले लोग उन महिलाओं के निकट संबंधी ही हैं। एक महिला का चेहरा दांत से काट दिया गया, तो दूसरी को जमकर पीटा गया।

लाख प्रयास करने के बाद भी झारखंड में अंधविश्वास खत्म नहीं हो पा रहा है। इस कारण बराबर कुछ लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार हो रहा है। ताजा मामला गुमला जिले के घाघरा थाना क्षेत्र के गम्हरिया गांव का है। यहां दो महिलाओं को डायन बताकर उनके साथ जो बर्बरता हुई, उसे सुनकर आप हैरान हो जाएंगे। 45 वर्ष की तेम्बो उरांव और उसकी चाची सास बीपैत उरांव के साथ उसी के परिवार वालों ने डायन बताकर मारपीट की और जब इससे भी मन नहीं भरा तो उन्होंने तेम्बो उरांव के चेहरे को भी मुंह से काट खाया। कुछ लोगों ने दोनों महिलाओं को बचा लिया, लेकिन उन्हें जान से मारने की धमकी दी जा रही है।
इस तरह के मामले पूरे झारखंड में बराबर देखने को मिल रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार हर सप्ताह इस तरह के दस मामले दर्ज होते हैं। एक साल में 50 से अधिक लोगों को सिर्फ डायन बिसाही के मामले में जान गंवानी पड़ती है और उनमें सबसे अधिक संख्या महिलाओं की ही होती है। इस लिहाज से देखा जाए तो झारखंड मेें हर महीने चार लोगों की जान डायन—बिसाही की वजह से जाती है। 
इस तरह की बढ़ती घटनाओं को देखते केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी है। मंत्रालय ने पूछा है कि डायन—बिसाही के मामले में अगर कोई पीड़ित है तो उसे क्या सहायता दी गई है। इसके साथ ही इन मामलों के आरोपियों पर क्या कार्रवाई हुई है, इसकी भी विस्तृत रिपोर्ट राज्य सरकार से मांगी गई है। राज्य के गृह विभाग के अनुसार डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के तहत 2015 में 818, 2016 में 688, 2017 में 668, 2018 में 567, 2019 में 978 और 2020 में 837 मामले दर्ज किए गए हैं। 
उल्लेखनीय है कि 2001 में बाबूलाल मरांडी की सरकार ने डायन प्रथा को लेकर एक कानून बनाया था। राज्य सरकार इसका प्रचार-प्रसार भी हर जिले में करती है। इन सबके बावजूद झारखंड के कई गांवों में महिलाओं को डायन बताकर उनके साथ मारपीट की जाती है। कई की तो हत्या भी कर दी गई है।
 
क्यों होती है ऐसी घटना? 
झारखंड के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग किसी बीमारी के फैलने की स्थिति में नीम—हकीम या ओझा के पास जाते हैं। जब पीड़ित की बीमारी ठीक नहीं हो पाती है तो ये नीम—हकीम अपनी 'दुकान' चलाने के लिए किसी भी महिला को डायन करार कर देते हैं। इसके बाद उस महिला का उत्पीड़न शुरू हो जाता है। कहीं—कहीं यह भी देखा गया है कि आपसी रंजिश या फिर किसी की संपत्ति को हथियाने के लिए भी डायन—बिसाही का आरोप किसी महिला पर लगा दिया जाता है और उसके बाद उसकी हत्या कर उसकी संपत्ति को हड़प लिया जाता है।  जनजातीय समाज में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में ज्यादा महत्व दिया जाता है और यही वजह होती है कि उनके पास काफी जमीन और उसके अधिकार होते हैं। ऐसे में अगर वह महिला विधवा और अकेली हो तो आसपास के लोग साजिश के तहत उसे डायन बताते हैं और उसे उस गांव से निकालकर या फिर उसकी हत्या करके उसकी संपत्ति पर कब्जा कर लेते हैं। 
झारखंड सरकार और प्रशासन को इस तरह के मामलों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का काम प्रशासन का ही है। 

रितेश कश्यप
Correspondent at Panchjanya | Website

दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।

 

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