28 अक्टूबर, 1867 को आयरलैंड में जन्मी मार्गरेट नोबल स्वामी विवेकानंद की शिष्या थीं। स्वामी जी ने उन्हें भगिनी निवेदिता का नया नाम दिया। जिसका अर्थ है-ईश्वर की प्रस्तुति। भगिनी निवेदिता की स्वामी विवेकानंद से भेंट लंदन में पिकाडिली के प्रिंसेस हाल में उनके व्याख्यान के समय हुई थी, जब वह अमेरिका में अपना कालजयी शिकागो भाषण देकर यूरोप होते हुए स्वदेश वापस हो रहे थे। उन्होंने स्वामी जी के व्याख्यान के दौरान उनसे जटिल प्रश्न किए और स्वामी जी द्वारा सबका यथोचित उत्तर पाकर वह उनकी शिष्या बन गईं। उन्होंने 1898 में कलकत्ता की यात्रा की। स्वामी जी चाहते थे कि भारत की महिलाओं, विशेष रूप से कलकत्ता में, उनके स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार के लिए भगिनी निवेदिता की देखरेख में कार्य किया जाए। उन्होंने अपने गुरु की इच्छाओं को बनाए रखते हुए आजीवन इस व्रत का निर्वहन किया। भगिनी निवेदिता को स्थानीय लोगों से मिलवाते हुए अपने भाषण में स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था-इंग्लैंड ने हमें मिस मार्गरेट नोबल के रूप में एक उपहार भेजा है।
भगिनी निवेदिता के महत्वपूर्ण कथन
-स्वामी जी के ईश्वरीय अंशों व असामान्य नेतृत्व गुण को मैंने पहचान लिया है। मेरी यह इच्छा है कि मैं उनके समाज-विषयक प्रेम का दासत्व स्वीकार कर लूं। मैं चाहती हूं कि जिस समाज से वे इतना प्रेम करते हैं, उस समाज की सेवा के लिए मैं अपने आपको समर्पित कर दूं। यही वह व्यक्तित्व है, जिसे मैं बारंबार प्रणाम करती हूं। यही तो वह चरित्र है, जिसने मुझे विनम्र बनाया है। एक धार्मिक उपदेशक के रूप में मैंने देखा कि उनके पास विश्व को देने के लिए धर्मविचारों की सुव्यवस्थित श्रृंखला है, जिसका मनन करने के पश्चात् कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि सत्य कहीं और है। जब वे अपने धर्म के तत्वों के बारे में बताते हैं और जिस क्षण उन्हें लगता कि कोई विचारधारा सत्य से विसंगत है तो वे उसे दूर कर देते हैं और उनकी इसी महानता के कारण ही मैं उनकी शिष्या बनी हूं।
(22 अक्टूबर, 1895 को लंदन में पिकाडिली के प्रिंसेस हाल में स्वामी विवेकानंद पर भगिनी निवेदिता के संस्मरण से)
-विश्व का पूरा इतिहास बताता है कि भारतीय बुद्धि किसी से पीछे नहीं है। क्या भास्कराचार्य और शंकराचार्य के देशवासी न्यूटन और डार्विन के देशवासियों से कमतर हैं ? हमें भरोसा नहीं है। यह हमारे लिए ही है, हमे अपने विचार की शक्ति से, विरोध की लौह समान दीवारों को तोड़ना है, जो हमारे सामने हैं। और विश्व की बौद्धिक संप्रभुता पर नियंत्रण करना और उसका आनंद लेना है।
-मेरा मानना है कि भारत एक, शाश्वत अविभाज्य है।
-हमारे पूरे अतीत को विश्व के जीवन का अभिन्न अंग बना दिया जाएगा। इसे ही राष्ट्रीय विचार की प्राप्ति कहा जाता है। किन्तु इस संकल्प को प्रत्येक स्थान पर अनुभव किया जाना चाहिए।
-हमारा दैनिक जीवन हमारे ईश्वर के प्रतीक का निर्माण करता है। कोई भी दो विचार कभी भी एक ही अवधारणा की व्याख्या नहीं करते हैं।
अभियान एवं लक्ष्य
भगिनी निवेदिता जी ने स्वामी विवेकानंद की भावना के अनुरूप कलकत्ता के बागबाजार क्षेत्र में लड़कियों को शिक्षित करने के उद्देश्य से एक बालिका स्कूल खोला। उनका समर्पण एक उदेश्य के लिए इतना था कि वह अपने स्कूल में प्रवेश लेने के लिए लड़कियों को प्रोत्साहित करने के लिए लोगों के घरों का दौरा किया करती थीं। उन्होंने हमेशा अपने छात्रों को राष्ट्रवादी भावना से शिक्षित करने का प्रयत्न किया। प्रार्थना के रूप में अपने स्कूल में 'वंदे मातरम' का गायन शुरू किया । वह स्वामी रामकृष्ण की पत्नी सारदा देवी जी की अत्यंत समीपस्थ थीं और रामकृष्ण मिशन की स्थापना और कार्यों के पीछे उनका प्रमुख प्रभाव और भूमिका थी।
समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता
भगिनी निवेदिता जी ने कलकत्ता में प्लेग महामारी के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने रोगियों की सेवा और गरीब रोगियों का विशेष ध्यान रखा। यहां तक कि सड़कों से कचरा साफ करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उन्होंने युवाओं को स्वैच्छिक सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रेरित किया। वह एक सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक और लेखिका थीं। वास्तव में उन्हें यह आचरण अपने पिता और कॉलेज के शिक्षकों की शिक्षा से प्रेरित था कि मानव जाति की सेवा भगवान के लिए सच्ची सेवा है।
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