उत्तराखंड के हनोल गांव में महासू देवता के मंदिर के आस-पास भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की बंदिश के कारण लोगों में गुस्सा पनप रहा है। पुरातत्व विभाग मंदिर परिसर में मरम्मत कार्य करा रहा है। वहीं, परिसर के बाहर कोई अपने घर में एक टीन भी लगा दे तो उसे नोटिस थमा दिया जा रहा है। हिमाचल और उत्तराखंड के बॉर्डर पर टोंस नदी के किनारे हनोल गांव में महासू देवता का मंदिर है। माना जाता है कि ये मंदिर नौवीं शताब्दी का है। भोलेनाथ के अंश रूप में महासू देवता यहां न्याय के देवता के रूप में विराजमान हैं। हिमाचल के सिरमौर, सोलन, शिमला, बिशोहर जुब्बल क्षेत्र और उत्तराखंड के जौनसार बावर, उत्तरकाशी जिले के लोगों की आस्था इस मंदिर से जुड़ी हुई है।
महासू देवता, चार भाइयों के सयुंक्त नाम हैं। बूठिया महासू (बौठा), बाशिक महासू, पवासिक महासू और चालदा महासू की पूजा यहां के लोग श्रद्धा के साथ करते हैं। तीन भाईं मंदिर में रहते हैं, जबकि चालदा महासू डोली में हिमाचल और उत्तराखंड में घूमते रहते हैं। महासू मंदिर में गर्भ गृह में केवल पुजारी को ही जाने की इजाजत है। कहते हैं कि यहां एक ज्योति दशकों से जल रही है और एक जलधारा भी निकलती है। हालांकि इसे किसी भी बाहरी व्यक्ति ने देखा नहीं है। इस मंदिर के अपने रहस्य हैं और लोगों के विश्वास आस्था के कारण यहां की मान्यता भी वैसी ही है।
यह मान्यता भी है
मंदिर की अपनी मर्यादाएं हैं, जिनका पुजारी, पुरोहित, राजगुरु और अन्य बेहद सख्ती से अनुपालन करते आए हैं। कहते है कि हूण वंश के मिहिर कुल हूण भाट (योद्धा) को हरा कर महासू देवता के रूप में यहां स्थपित हुए थे। लाक्षा गृह से निकलकर पांडव भी यहां आए थे। यानी पाण्डव काल से भी पुराना मंदिर इसे माना जाता है। यहां की पूजा भी पुरानी व्यवस्थाओं पर आधारित है। वजीर, पुजारी, पुरोहित, राजगुरु, भंडारी आदि व्यवस्था से जुड़े हुए हैं। वे पीढ़ियों से मंदिर परिसर के बाहर रह रहे हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इन्हीं लोगों के घरों को भी अपनी परिधि में ले लिया। इसके बाद से मंदिर व्यवस्था से जुड़े इन लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। मंदिर से जुड़ा कोई भी व्यक्ति यहां अपने घर की मरम्मत भी नहीं करा सकता है।
200 मीटर की परिधि में विभाग का हस्तक्षेप
मंदिर के 200 मीटर की परिधि में पुरातत्व विभाग का हस्तक्षेप है। स्थानीय लोगों का कहना है कि हजारों सालों से उनके वंशज इस मंदिर का रखरखाव करते आये हैं, उनकी अपने देवता के प्रति आस्था है। मंदिर व्यवस्था से जुड़े विक्रम राजगुरु कहते हैं कि परिसर के दोनों तरफ जंगल की जमीन है, इसलिए लोगों को वहां शिफ्ट भी नहीं किया जा सकता। सुविधाएं देने के लिए सरकार में मंत्री रहे प्रीतम सिंह ने करोड़ों रुपए की योजना को स्वीकृति दी थी, लेकिन वन विभाग और पुरातत्व विभाग ने काम नहीं होने दिया। जिला पंचायत सदस्य विक्रम चौहान कहते हैं कि तीर्थयात्री रात में कैसे रुकते हैं? ये पुरातत्व विभाग नहीं समझ रहा। स्थानीय लोगों में गुस्सा इस बात को लेकर ज्यादा है कि खुद पुरातत्व विभाग अपना काम करवा रहा है, जबिक उन्हें एक टीन तक डालने नहीं दिया जा रहा है। पानी का कनेक्शन, शौचालय जैसी जरूरी चीजों पर भी बंदिश लगा दी जाती है।
स्थानीय लोग चाहते हैं विकास
महासू देवता परिसर में पुरातत्व विभाग जो काम कर रहा है, उसके वैज्ञानिक पहलू जरूर होंगे लेकिन स्थानीय लोगों की दिक्कतें भी बढ़ रही हैं। विभाग खुद मंदिर व्यवस्था से जुड़े स्थानीय लोगों के लिए कोई योजना बना कर दे दे तो राहत मिल जाएगी। मंदिर व्यवस्था संचालन की एक प्रबन्ध समिति व्यवस्था है, जिसमें अध्यक्ष उपजिलाधिकारी होते हैं शेष स्थानीय प्रतिनिधि इसके सदस्य पदाधिकारी हैं। पारदर्शी व्यवस्था होने से लोगों का भरोसा है, यही वजह है कि प्रबन्ध समिति के लोग यहां तीर्थ यात्रियों के लिए सुविधाएं बढ़ाने के लिए विकास चाहते हैं।
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