दिल्ली के सिंघु बार्डर पर स्वयंभू किसान आंदोलन के दौरान अनुसूचित जाति के लखबीर सिंह की जिस निर्ममता से हत्या की गई उसे पूरी दुनिया ने देखा, परन्तु मरने के बाद भी उस पर अत्याचारों का सिलसिला थमा नहीं है। मानवधर्मी होने का दावा करने वाले पंजाबी समाज ने अभी अत्याचारों के नए आयाम स्थापित करने की ठानी है और इसी दिशा में आगे बढ़ा जा रहा है। लखबीर सिंह की बहन ने लोगों के व्यवहार से तंग आकर गांव छोडऩे का निर्णय लिया है और उसकी पत्नी ने अपने ससुराल लौटने से इनकार कर दिया है। पुलिस सुरक्षा के बीच लखबीर के अंतिम संस्कार के दौरान अरदास की रस्म भी नहीं करने दी गई। कोई ग्रंथी इसमें शामिल नहीं हुआ।
गांव के लोगों ने लखबीर सिंह के शव के साथ जो व्यवहार किया, उसे देख कर तो किसी की भी आत्मा कांप जाए। अंतिम संस्कार से पहले श्री गुरु ग्रंथ साहिब सत्कार कमेटी के सेवादार तरलोचन सिंह सोहल ने गांव में एलान कर दिया कि शव का अंतिम संस्कार नहीं करने दिया जाएगा। पुलिस के समझाने पर वह इसके लिए राजी हुए, लेकिन स्थानीय लोगों को इसमें शामिल नहीं होने की शर्त रख दी। शनिवार देर शाम सात बजे लखबीर का शव गांव आया। अंत्येष्टि के लिए शव को श्मशानघाट ले जाया गया। लेकिन किसी ने श्मशानघाट की लाइट बंद कर दी। परिजनों ने मोबाइल व वाहनों की लाइटें जला कर श्मशानघाट में प्रकाश करने का प्रयास किया। लखबीर सिंह के शव पर केरोसिन छिडक़ कर अंतिम संस्कार किया गया और शव पर लिपटा प्लास्टिक तक नहीं हटाया गया। यही नहीं, परिवार वालों को शव को देखने तक नहीं दिया गया।
अंतिम संस्कार वाले दिन निहंग सिंहों के भय और सत्कार कमेटी के एलान के बाद गांव के लोग अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए। गांव की सरपंच के पति व जिला परिषद सदस्य मोनू चीमा ने सोशल मीडिया पर लाइव होकर कहा कि लोग इस फैसले पर सहमत हैं। परिवार के आर्थिक तौर पर कमजोर होने के कारण अंतिम संस्कार का सारा प्रबन्ध पुलिस ने ही किया। करीब सवा सात बजे डीएसपी सुच्चा सिंह बल्ल की निगरानी में शव का अंतिम संस्कार किया गया। लखबीर के परिवार के सदस्य गांव वालों से डरे हुए थे। यहां तक कि गांव के एक व्यक्ति ने अपना ढक कर मुखाग्नि दी। लखबीर के गांव में दबंगों के व्यवहार से उसका परिवार दहशत में है। उसकी बहन राजबीर कौर ने गांव छोड़ने का निर्णय लिया है। मृतक की पत्नी जसप्रीत कौर ने मायके से ससुराल लौटने से इनकार कर दिया है। वह तीन साल पहले मायके चली गई थी। लखबीर की छोटी बेटी कुलदीप कौर बार-बार पूछती है कि ‘डैडी ने केड़ी गलती कित्ती सी गी, जिस करके पिंड आले रुस्से बैठे ने? (पापा ने ऐसी क्या गलती कर दी जिससे गांव वाले नाराज हो गए हैं)’
लखबीर के परिवार के सदस्यों ने केन्द्र व पंजाब सरकार से इंसाफ की गुहार लगाते हुए कहा कि निरपराध और निहत्थे को तालिबान की तरह मौत के घाट उतारना आखिर कहां का न्याय है? पत्नी जसप्रीत ने कहा मेरे पति को साजिश के तहत गांव से ले जाकर मारा गया। उसके पति के पास चार साल से न तो मोबाइल फोन था और न ही वह कभी अकेला गांव से बाहर गया था। लखबीर के साले सुखचैन सिंह ने घटना की सीबीआइ जांच की मांग की है। उसने कहा कि सबको पता चलना चाहिए कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप की बेअदबी कैसे हुई? हुई भी या नहीं हुई? एक सिख के लिए अंतिम अरदास न करने देने पर कहा कि क्या यह श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के फरमान के खिलाफ नहीं है? इस मामले में श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार तुरंत दखल दें। गुनाह व सुबूत के बिना ऐसा अत्याचार व सामाजिक बहिष्कार किस पावन ग्रंथ के फरमान का हिस्सा है? गौरतलब है कि कुंडली बॉर्डर पर शुक्रवार को निहंग सिंहों ने गुरुग्रंथ की बेअदबी के आरोप में लखबीर की यातनाएं देकर हत्या कर दी थी और उसका शव बैरिकेड पर लटका दिया था।
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