मनोज वर्मा
क्या कांग्रेस पर वामपंथी विचार वाले नेताओं का ‘कब्जा’ हो रहा है? कन्हैया कुमार ने कहा कि कांग्रेस बचेगी तो लोकतंत्र बचेगा। क्या कांग्रेस में लोकतंत्र बचा है? हाईकमान के मनमाने व्यवहार और फैसलों से वरिष्ठ नेता आहत और दुखी हैं। जी-23 नेताओं की 'बगावत' पार्टी में टूट का सबब बन सकती है। पंजाब में निवर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी है
कांग्रेस के पास अध्यक्ष ही नहीं हैं। हमें नहीं पता कि फैसला कौन ले रहा है। हम जी-23 हैं, जी हुजूर-23 नहीं। हम कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं। हमारे लोग हमें छोड़कर जा रहे हैं। सुष्मिता (देव) जी चली गर्इं और गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री (लुईजिन्हो) फालेरयो भी चले गए। जितिन प्रसाद चले गए,ज्योतिरादित्य सिंधिया चले गए, ललितेश त्रिपाठी चले गए, अभिजीत मुखर्जी भी चले गए। कई अन्य नेता चले गए। सवाल उठता है कि ये लोग क्यों जा रहे हैं? हमें यह खुद सोचना होगा कि शायद हमारी भी कोई गलती रही होगी। पंजाब सीमावर्ती राज्य है। वहां आईएसआई फायदा उठा सकती है। हम जानते हैं कि सीमापार के तत्व वहां अस्थिरता पैदा कर सकते हैं…कांग्रेस को सुनिश्चित करना है कि सब एकजुट रहें। पार्टी के भीतर खुलकर चर्चा हो, एक-दूसरे के विचार सुने जाएं। संगठन का ढांचा होना चाहिए। सीडब्ल्यूसी का चुनाव हो।’
ये कुछ सवाल पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने मीडिया के सामने क्या रखे, कुछ ही देर बाद कपिल सिब्बल के घर के बाहर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने जिस हमलावर अंदाज में प्रदर्शन किया, उसकी तुलना राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा ने गुंडागर्दी से करते हुए सोनिया गांधी से एक्शन लेने की मांग कर डाली। साफ तौर पर कांग्रेस में नीति और नेता यानी नेतृत्व को लेकर विभाजन रेखा नजर आ रही है। सिब्बल के सवाल से यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि कांग्रेस के फैसले ले कौन ले रहा है? सोनिया गांधी या राहुल गांधी या प्रियंका गांधी या कोई और…
कन्हैया पर कांग्रेस में दंगल
इस बीच भाकपा नेता कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने के साथ ही पार्टी में वैचारिक दंगल अलग शुरू हो गया। कन्हैया कुमार और गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी के पार्टी में शामिल होने को लेकर कांग्रेस नेताओं की राय अलग-अलग नजर आ रही है। कोई इसे पार्टी के लिए फायदेमंद बता रहा है तो कोई पूछ रहा है कि इससे क्या फायदा होगा? कांग्रेस नेता और पंजाब से लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने नाम लिये बगैर तंज में कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी के पार्टी में शामिल होने को लेकर सवाल उठा दिए। मनीष तिवारी ने 1973 में आई पुस्तक 'कम्युनिस्ट इन कांग्रेस' कुमारमंगलम थीसिस का हवाला देते हुए कहा है कि इसे फिर से पढ़ना फायदेमंद हो सकता है। जितनी अधिक चीजें बदलती हैं, उतनी ही वे शायद वैसी ही रहती हैं। इस ट्वीट के जरिए तिवारी ने कांग्रेस आलाकमान के फैसले पर सवाल उठाया है।
मनीष तिवारी, जी-23 (पार्टी नेतृत्व से नाराज और असंतुष्ट नेताओं का समूह) के उन नेताओं में से एक हैं जो पार्टी नेतृत्व के मुखर विरोधी माने जाते हैं। तो वामपंथी विचारधारा के वरिष्ठ कांग्रेस नेता जो राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं, उनका कहना है कि वामपंथी विचारधारा से जुड़े कई नेता कांग्रेस में सक्रिय हैं, प्रियंका गांधी की टीम में जुड़े संदीप सिंह उसी पृष्ठभूमि के हैं। कांग्रेस के कई नेता बंद कमरों में इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के इर्द-गिर्द वामपंथी विचारधारा वाले बाहरी नेताओं ने चक्रव्यूह बना लिया है। कांग्रेस की नीति और नेता अब यही तय कर रहे हैं। इसलिए यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या कांग्रेस पर वामपंथी विचार वाले नेताओं का 'कब्जा' हो रहा है।

भारत विरोधी विचारधारा और कांग्रेस
दूसरी ओर भाजपा ने जेएनयू के पूर्व छात्र और भाकपा नेता कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों के लिए एक विकल्प बन गया है। भारत विरोधी कांग्रेस कन्हैया कुमार जैसे लोगों के लिए एक स्पष्ट पसंद थी। ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ अब उनका आधिकारिक नारा है जिनकी विचारधारा उनकी विचारधारा से मेल खाती है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने पर टिप्पणी करते हुए गौरव भाटिया ने कहा कि भारत विरोधी विचारधारा के साथ कांग्रेस किसी भी व्यक्ति की स्वाभाविक पहली पसंद है। चाहे वह कन्हैया कुमार हो या कोई और। इसका कारण यह है कि आज, कांग्रेस पार्टी, उसका नेतृत्व और विचारधारा भारत विरोधी राजनीति के पर्यायवाची हैं। इसलिए कांग्रेस में केंद्रीय और राज्यों में नेतृत्व को लेकर घमासान हो रहा है। पंजाब कांग्रेस में मचे घमासान को इस दृष्टिकोण से देखेंगे तो तस्वीर अपने-आप साफ हो जाएगी। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिंह सिद्धू के आचरण और कार्यशैली को लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुदृा उठाया लेकिन अमरिंदर सिंह की बात ना तो कांग्रेस की कार्यवाहक अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सुनी और ना ही पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने। परिणाम सबके सामने है। पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे की राजनीति ने पूरे देश में कांग्रेस की छीछालेदर कराने का काम किया है।
जी-23 ने खोला मोर्चा
कांग्रेस इस समय जबरदस्त अंदरूनी संकट से जूझ रही है। पंजाब में वह नेताओं की आपसी खींचतान को जितना सुलझाने की कोशिश कर रही है, मामला उतना ही उलझता जा रहा है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी पार्टी में घमासान मचा हुआ है। ऐसे समय में कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के जी-23 गुट ने सीधे सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। राज्यों में पार्टी की बढ़ती अंदरूनी कलह, एक-एक कर बड़े नेताओं के दूसरी पार्टियों में जाने और पंजाब में चल रहे सियासी ड्रामे के बीच जी-23 नेता इसे अपनी आवाज बुलंद करने के सबसे सही समय के तौर पर देख रहे हैं। लिहाजा वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को लगे हाथ खत लिखकर शीघ्र कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक बुलाने की मांग कर डाली। कपिल सिब्बल ने तो यह कहकर शीर्ष नेतृत्व सोनिया-राहुल को ही कठघरे में खड़ा कर दिया कि किसी को नहीं पता कि पार्टी में फैसले कौन लेता है।


जाहिर है, सिब्बल का सीधा अटैक, गुलाम नबी आजाद का पत्र, मनीष तिवारी की नसीहत, आनंद शर्मा का पार्टी को सहिष्णुता और उसके मूल्यों की याद दिलाना कांग्रेस में आर-पार की जंग का संकेत कर रहे हैं। माना जा रहा है कि जी-23 नेताओं की 'बगावत' पार्टी में टूट का सबब भी बन सकती है।
दरअसल, ये वे नेता हैं जिन्होंने पिछले साल पार्टी नेतृत्व और उसकी कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाते हुए सोनिया गांधी को खत लिखा था। इन नेताओं ने जल्द से जल्द संगठन चुनाव कराने की मांग की थी। खत लिखने वाले 23 नेताओं में गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, जितिन प्रसाद, मुकुल वासनिक, वीरप्पा मोइली, मिलिंद देवड़ा, रेणुका चौधरी, राजिंदर कौर भट्टल, विवेक तन्खा, राज बब्बर जैसे नेता शामिल थे। जितिन प्रसाद अब भाजपा में हैं। पूर्व विदेश मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता नटवर सिंह कहते हैं कि कांग्रेस का ‘हाई-कमान अब लो-कमान हो चुका है’। पार्टी में सोनिया, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ही सारे फैसले लेते हैं। नटवर सिंह ने पंजाब में हुई सियासी उथल-पुथल को लेकर भी पार्टी से कहा कि ‘यह नहीं होना चाहिए था’। ‘नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह सही साबित हुए हैं जिन्होंने कहा था कि वह स्थिर नहीं हैं।’
पंजाब कांग्रेस को झटका
इस बीच लगातार संकट से घिरी पंजाब कांग्रेस को इस बार बड़ा झटका लगने वाला है। पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ने का ऐलान कर दिया है। अमरिंदर ने कांग्रेस छोड़ने की अटकलों की पुष्टि करते हुए यह भी कहा कि वे भाजपा में नहीं जा रहे। यानी साफ है कि अगले साल होने वाले पंजाब चुनाव से पहले अमरिंदर सिंह नई पार्टी लॉन्च कर सकते हैं। अमरिंदर सिंह ने 18 सितंबर को पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
बकौल अमरिंदर 'मैं अब तक कांग्रेस में हूं लेकिन आगे नहीं रहूंगा। मैंने पहले ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है कि मेरे साथ इस तरह का व्यवहार नहीं चलेगा। मैं कांग्रेस में 50 साल से हूं। मैंने बताया कि सबको पता है कि मेरे अपने मत हैं, अपने सिद्धांत हैं।' अमरिंदर सिंह ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, 'जिस तरह मेरे साथ कांग्रेस के अंदर व्यवहार हुआ, साढ़े 10 बजे मुझे हाईकमान कॉल करते हैं कि आप इस्तीफा दे दो। मैंने एक बार भी नहीं पूछा क्यों, मैंने तुरंत इस्तीफा लिखकर 4 बजे राज्यपाल को दे दिया। जो पर्यवेक्षक आए थे, उन्होंने सबको कॉल किया लेकिन सीएम हाउस में किसी ने जाना उचित नहीं समझा। अगर 50 साल बाद मेरी विश्वसनीयता पर शक हो रहा है तो फिर कुछ बचा नहीं। मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं चलेगा।'
जाहिर तौर पर कांग्रेस के जो वरिष्ठ नेता है, वे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से खासे आहत और नाराज हैं, इसलिए वे या तो कांग्रेस छोड़ भाजपा या दूसरे दलों में जा रहे हैं या अपनी खुद की अलग पार्टी बना रहे हैं। कांग्रेस में शामिल होते वक्त कन्हैया कुमार ने कांग्रेस की तुलना डूबते जहाज से करते हुए कहा कि कांग्रेस एक बड़ा जहाज है। अगर यह बचेगी तो लाखों-करोड़ों युवाओं की उम्मीदें बचेंगी, लोकतंत्र बचेगा। लेकिन असल सवाल यह कि क्या कांग्रेस में लोकतंत्र बचा है?
Follow us on:
Follow us on:
टिप्पणियाँ