मनोज ठाकुर
हरियाणा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के प्रधान सचिव एके सिंह के नेतृत्व में बनी एक राज्य स्तरीय समिति ने सरकार को सुझाव दिया है कि अरावली की पहाड़ियों की सीमा रेखा दोबारा से की जानी चाहिए। इसके साथ ही यहां के संरक्षित क्षेत्र को भी दोबारा चिह्नित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
हरियाणा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के प्रधान सचिव एके सिंह के नेतृत्व में बनी एक राज्य स्तरीय समिति ने सरकार को सुझाव दिया है कि अरावली की पहाड़ियों की सीमा रेखा दोबारा से की जानी चाहिए। इसके साथ ही यहां के संरक्षित क्षेत्र को भी दोबारा चिह्नित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। कमेटी ने 9 अगस्त को एक बैठक कर पहाड़ियों की वास्तु स्थिति के आकलन पर जोर दिया है। हरियाणा सरकार ने कमेटी का गठन कर यह देखने की कोशिश की है कि अरावली पहाड़ियों की वास्तु स्थिति है क्या ? कमेटी का गठन इसी उदृदेश्य को सामने रखकर किया गया है। इसमें यह देखा जाए कि अब अरावली पहाड़ियों की स्थिति क्या है ? इसके बाद ही यहां के नियम और उपनियमों का गठन किया जा सके।
कमेटी के बारे में जानकारी देते हुए एक सदस्य ने बताया कि नौ अगस्त की बैठक में सरकार को प्रस्ताव दिया गया कि अरावली पहाड़ियों का दोबारा से सर्वे कराकर वहां की जमीनी हकीकत पता की जाए। क्योंकि समय के साथ पहाड़ियों के साथ—साथ कई तरह की तब्दीली आ गई है। कमेटी से जुडे़ एक अधिकारी ने बताया कि निश्चित ही पर्यावरण हमारी प्राथमिकताओं में है, लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि वास्तव में पहाड़ियां है कहां तक ? कहां तक जंगल को संरक्षित करने की जरूरत है। कोशिश यह है कि विकास और पर्यावरण में संतुलन बना रहे।
सर्वे में यह भी देखा जाना चाहिए कि कितनी जमीन को संरक्षित करने की जरूरत है। एक बार यह रिकार्ड में आ गया तो पहाड़ियों पर अवैध कब्जे को रोका जाना भी संभव होगा।
हरियाणा सरकार की एक उच्च-स्तरीय समिति ने इस बात पर भी जोर दिया कि राजस्व रिकॉर्ड केवल 'गैर मुमकिन पहाड़ (बिना खेती योग्य पहाड़ी क्षेत्र)' की पहचान करते हैं। राजस्व रिकार्ड में 'अरावली' का कोई जिक्र नहीं है। इसलिए 1992 की अधिसूचना को आधार बनाकर अरावली क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए। क्योंकि अरावली की निश्चित सीमारेखा न होने की वजह से भ्रम की स्थिति बनी हुई है। इस भ्रम को दूर करने और सही स्थिति का पता लगाने के लिए सरकार ने प्रधान सचिव (नगर और ग्राम नियोजन) एके सिंह के नेतृत्व में एक राज्य स्तरीय समिति का गठन किया है।
इसलिए सर्वे की जरूरत
अभी अरावली की सीमा रेखा को सही से परिभाषित नहीं किया गया है। सर्वे के बाद इस सीमा रेखा का निर्धारण किया जाएगा। इसे रिकार्ड में दर्ज किया जाएगा। इससे होगा यह कि यहां अवैध कब्जों को रोकना संभव होगा। सही सीमा रेखा न होने की वजह से पूरे इलाके में पर्यावरण कानून लागू हो जाते हैं। सर्वे से स्पष्ट होगा कि अरावली पहाड़ियों की जमीन कहां तक है ? जानकारों का कहना है कि अरावली पहाड़ियों की सीमा रेखा न होने की वजह से कई तरह की दिक्कत आ रही हैं। इससे एक ओर जहां अवैध कब्जे हो रहे हैं, वहीं बिना बात के कई मामले कानूनी पेंचीदगी में फंस जाते हैं। बड़े स्तर पर संरक्षित क्षेत्र होने की वजह से विकास की गतिविधियों पर भी इसका असर पड़ रहा है। यदि अरावली की पहाड़ियां और इसकी जमीन की पहचान हो जाती है तो न सिर्फ संरक्षण की दिशा में उचित कदम उठाए जा सकेंगे बल्कि विकास की गतिविधियों को भी चलाना संभव होगा।
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