मनोज ठाकुर
करनाल में कथित किसान आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारी बार-बार प्रशासन को उकसाने की कोशिश कर रहे हैं। मंच से किसान नेता शांतिपूर्ण आंदोलन के दावे कर रहे हैं, लेकिन उपद्रवी उन्हीं के सामने लाठी-डंडे लेकर घूम रहे हैं। उन्हें कोई न तो समझा रहा है, न ही उन पर किसी का नियंत्रणहै।
हरियाणा में कथित किसान आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों की उकसावे की सारी कोशिशों को नाकाम करते हुए करनाल प्रशासन ने बहुत ही संयमित तरीके से अभी तक स्थिति को संभाला है। प्रदर्शकारियों ने बार-बार टकराव की स्थिति पैदा की। कई बार लगा कि स्थिति विस्फोटक हो सकती है। अंतत: प्रशासन अप्रिय स्थिति को टालने में सफल रहा। इधर, प्रशासन के संयमित रुख के बावजूद प्रदर्शनकारी उग्र रवैया अपना रहे हैं। किसान नेताओं के खुद को पुलिस के हवाले करने के बावजूद कुछ उपद्रवियों ने बसों की चाबी निकाली और टायरों को पंक्चर कर दिया।
डीसी निशांत सिन्हा ने बताया कि किसानों से बैठक कर गतिरोध दूर करने की कोशिश की गई। तीन घंटे चली बातचीत के बाद भी कथित किसान अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं। ऐसा लग रहा है कि वे मामले का हल नहीं बल्कि, माहौल खराब करना चाह रहे हैं, क्योंकि वे इस तरह की मांग उठा रहे हैं, जो कि किसी भी मायने में सही नहीं ठहराई जा सकती हैं।
करनाल के सामाजिक कार्यकर्ता राजीव चोपड़ा ने बताया कि प्रदर्शन को देख कर लगता है कि किसानों के भेष में गुंडे सड़कों पर आ गए हैं। किसान नेता दावा कर रहे थे कि आंदोलन शांतिपूर्ण होगा। लेकिन प्रदर्शनकारियों में बहुत से ऐसे हैं, जो हाथों में डंडे और लाहे की रॉड लिए घूम रहे हैं। कुछ ट्रैक्टरों पर बैठ कर उपद्रह मचा रहे हैं। कोई उन्हें रोकने या उनकी फोटो लेने की कोशिश करता हैं तो उसे धमकाया जाता है। युवा किसान संघ के प्रधान प्रमोद चौहान ने बताया प्रदर्शनकारी दावा कर रहे है कि बसताड़ा टोल प्लाजा पर पुलिसलाठी चार्ज में किसान सुशील काजला की मौत हो गई। लेकिन यह सफेद झूठ है। प्रशासन ने पहले ही साफ कर दिया था कि इस किसान को कोई चोट नहीं लगी। वह न तो अस्पताल में पहुंचा। न ही उसकी मौत के बाद पोस्टमार्टम कराया गया।
वहीं, जब किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी से पत्रकारों ने सवाल किया तो वह भड़क गए। उन्होंने कहा कि इस तरह के सवाल नहीं उठाए जाने चाहिए। यह मौका इस तरह के सवाल उठाने का नहीं है। वे सुशील काजला के प्राथमिक उपचार कराने और मौत के बाद पोस्टमार्टम नहीं कराने जैसे सवालों से भागते दिखे। करनाल के एसपी गंगा राम पुनिया ने भी कहा कि सुशील का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया है।
स्थानीय किसान प्रमोद चौहान का कहना है कि प्रदर्शन में शामिल लोग किसान नहीं हैं, क्योंकि किसान कानून व्यवस्था को अपने हाथ में नहीं ले सकता। यहां तो ऐसा लग रहा है कि जैसे प्रदर्शनकारी अपनी मांगों के लिए नहीं, बल्कि किसी दूसरे ही एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं।
जिस तरह से टेंट लगाए जा रहे हैं, खाने-पीने का सामान आ रहा है। इससे तो लग रहा है कि कहीं से इन्हें खाद-पानी मिल रहा है। प्रदर्शनकारियों को खाने-पीने सहित हर सुविधा मिल रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि इसके लिए पैसा कहां से आ रहा है? इस पर भी बात होनी चाहिए।
करनाल शहर निवासी अश्वनी चोपड़ा ने बताया कि भीड़ की आड़ में शरारती तत्वों ने शहर को बंधक बना लिया है। पूरी रात लोग चैन से सो नहीं पाए। लोग दहशत में हैं कि पता नहीं शहर में कब क्या हो जाए।
सेक्टर 13 निवासी संदीप शर्मा ने बताया कि उनका पूरा परिवार कल से घर से बाहर नहीं निकला है। उन्हें किसी भी पल अनहोने का भय सता रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता हरबंस सिंह ने बताया कि आंदोलन की आड़ में इनके नेताओं का दोहरा चरित्र सामने आ रहा है। वे मंच से बोलते हैं कि सब कुछ शांतिपूर्वक तरीके से करना है। कोई लाठी डंडा नहीं उठाना, लेकिन हो इसके विपरीत रहा है। ऐसा बोलने वाले नेताओं के सामने ही प्रदर्शनकारी हाथों में लाठियां और डंडे लिए घूम रहे हैं। इन्हें रोकने की कोशिश ही नहीं होती। दूसरी ओर प्रशासन ने एक बार फिर से प्रदर्शकारियों को बातचीत के लिए बुलाया है। करनाल के डीसी निशांत यादव ने बताया कि हम स्थिति पर नजर रख हुए हैं। कोशिश है कि इस गतिरोध का शांतिपूर्वक हल निकल सके।
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