रितेश कश्यप
गत 2 सितंबर को झारखंड सरकार ने झारखंड विधानसभा के नए भवन के अंदर एक कक्ष को नमाज के लिए आवंटित कर दिया है। अब कक्ष संख्या टी डब्ल्यू 348 में मुसलमान विधायक और कर्मचारी नमाज पढ़ सकते हैं। यानी कह सकते हैं कि झारखंड विधानसभा में एक 'मस्जिद' बन गई है।
गत 2 सितंबर को झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रविन्द्रनाथ महतो के आदेश से विधानसभा के एक कक्ष को नमाज के लिए आवंटित कर दिया गया। वोट के लिए नेता किस हद तक गिर सकते हैं, उसका यह एक उदाहरण है। लेकिन चूंकि यह आवंटन नमाजियों यानी मुसलमानों को आवंटित हुआ है, इसलिए न तो देश की पंथनिपरपेक्षता खतरे में है और न ही लोकतंत्र। सोचिए यदि यही काम किसी भाजपा शासित राज्य में होता तो देश में कैसा कोहराम मचता है! अपने को सेकुलर कहने वाले सारे नेता ऐसा शोर मचाते कि यह खबर दुनिया के हर कोने तक मिनटों में पहुंच जाती और कहा जाता कि भारत में सेकुलरवाद खतरे में है। लेकिन चूंकि यह 'कांड' झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद के गठबंधन सरकार ने किया है, इसलिए भाजपा के अलावा और किसी राजनीतिक दल ने कुछ नहीं कहा है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता रघुवर दास ने कहा है, ''कांग्रेस देश में तुष्टीकरण की जननी है।
विधानसभा में नमाज के लिए अलग कमरे का आवंटन का निर्णय यदि वापस नहीं लिया गया तो भाजपा आंदोलन करेगी। लोकतंत्र के मंदिर की गरिमा को बचाने के लिए मैं स्वयं विधानसभा के बाहर धरने पर बैठूंगा।'' वहीं भाजपा विधायक बिरंची नारायण ने कहा है, ''अगर झारखंड सरकार विधानसभा के अंदर मुसलमानों को नमाज अता करने के लिए कमरा दे सकती है, तो वह हिंदू, जैन, बौद्ध और सरना समाज के विधायकों के लिए भी कमरे का आवंटन करे।'' वहीं सत्तारूढ़ झामुमो ने सरकार के इस निर्णय का बहुत ही बेशर्मी के साथ बचाव किया है। झामुमो के प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा है, ''यह कोई नई व्यवस्था नहीं है। पुरानी विधानसभा में भी एक अलग कक्ष था, जहां नमाज अता की जाती थी।'' पांडे का यह भी कहना है कि नया विधानसभा भावन भाजपा के काल में बना है और उस समय उसने नमाज के लिए अलग से कमरे की व्यवस्था नहीं की। इसलिए सरकार ने यह व्यवस्था की है।
दरअसल, वर्तमान झारखंड सरकार तुष्टीकरण की राजनीति पूरी निर्लज्जता के साथ कर रही है। कुछ दिन पहले ही इस सरकार ने नई नियोजन नीति बनाई है। इसमें तृतीय और चतुर्थवर्गीय सरकारी नौकरियों के लिए आयोजित होने वाली परीक्षाओं से हिंदी और संस्कृत सहित राज्य में द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त मगही, भोजपुरी, मैथिली, अंगिका आदि भाषाओं को हटा दिया गया है, जबकि उर्दू को यथावत रखा गया है।
इससे पहले झारखंड सरकार ने उस वक्त उर्दू शिक्षकों को ईदी के तौर पर वेतन देने के लिए 21.31 करोड़ रु. की राशि जारी कर दी थी, जब राज्य में कोरोना चरम पर था और झारखंड के कई कोरोना योद्धा चिकित्सक 5 महीनों से वेतन का इंतजार कर रहे थे।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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