किशनगंज में तालिबानी सोच वालों ने एक महिला प्रधानाध्यापिका से कहा, ''तुम हिंदू हो, उर्दू विद्यालय में नौकरी नहीं कर सकती हो''
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किशनगंज में तालिबानी सोच वालों ने एक महिला प्रधानाध्यापिका से कहा, ”तुम हिंदू हो, उर्दू विद्यालय में नौकरी नहीं कर सकती हो”

by WEB DESK
Aug 31, 2021, 03:15 pm IST
in पश्चिम बंगाल
किशनगंज में बढ़ती तालिबानी सोच के विरुद्ध प्रदर्शन करते अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता

किशनगंज में बढ़ती तालिबानी सोच के विरुद्ध प्रदर्शन करते अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता

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किशनगंज के 'लाईन उर्दू् मध्य विद्यालय' में एक महिला शिक्षिका को प्रधानाध्यापिका का पदभार इसलिए ग्रहण नहीं करने दिया जा रहा है कि वह हिंदू हैं। विद्यालय के नाम के साथ 'उर्दू' शब्द अवश्य है, पर वहां सभी विषयों की पढ़ाई होती है, लेकिन मुसलमानों का कहना है कि यहां केवल उर्दू के जानकार यानी मुसलमान शिक्षक ही तैनात हों।


—अरुण कुमार सिंह

पश्चिम बंगाल की सीमा से सटा बिहार का किशनगंज शहर जिला मुख्यालय है। यह जिला मुस्लिम—बहुल है और इसलिए बराबर कुछ ऐसी घटनाएं घटती हैं, जो सीेधे तौर पर सरकार और सरकारी व्यवस्था को चुनौती देती दिखाई देती हैं। ताजा मामला किशनगंज शहर के गुल बस्ती इलाके में स्थित 'लाईन उर्दू् मध्य विद्यालय' से जुड़ा है। यहां इन दिनों  एक हिंदू प्रधानाध्यापिका को पदभार ग्रहण नहीं करने दिया जा रहा है। उन प्रधानाध्यापिका का नाम है झरना बाला साहा। 30 जून, 2021 को किशनगंज के ही सरदार गोपाल सिंह मध्य विद्यालय से उनका स्थानान्तरण इस विद्यालय में हुआ है। वह पहली बार 10 जुलाई, 2021 को विद्यालय में प्रधानाध्यापिका के रूप में पदभार ग्रहण करने के लिए गईं तो वहां के प्रभारी प्रधानाध्यापक अंजर अलीम ने उनका विरोध किया। अलीम का कहना है कि चूंकि यह उर्दू विद्यालय है, इसलिए यहां किसी उर्दू—भाषा के जानकार को ही प्रधानाध्यापक होना चाहिए। यानी उर्दू की आड़ में वे किसी मुसलमान को ही प्रधानाध्यापक का पद देना चाहते हैं।  इसलिए उन्होंने झरना बाला साहा को पदभार नहीं सौंपा। इसके बाद झरना बाला वहां से निराश होकर लौट गईं। इसकी जानकारी उन्होंने विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को दी, लेकिन अधिकारियों ने उनसे कहा कि आप फिर से योगदान करने के लिए जाएं।

इसके बाद से झरना बाला छह—सात बार योगदान करने के लिए गईं, लेकिन हर बार उनका विरोध किया गया। प्रभारी प्रधानाध्यापक ने तो विरोध किया ही। कहा जाता है कि उनके उकसावे पर मोहल्ले के मुसलमान भी विद्यालय के बाहर जमा हो गए और उन्होंने भी साहा का विरोध किया। इसलिए शिक्षा विभाग ने प्रभारी प्रधानाध्यापक अंजर अलीम को निलंबित कर दिया है। इस निलंबन से ठाकुरगंज के विधायक सउद आलम नदवी को बड़ी तकलीफ हुई। इसलिए वे भी हम—मजहबी अंजर अलीम के साथ खड़े हो गए हैं, जबकि वह विद्यालय उनके क्षेत्र में भी नहीं है।

नदवी ने 29 अगस्त को किशनगंज के जिला शिक्षा अधिकारी को एक पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने साफ—साफ शब्दों में लिखा है कि उर्दू विद्यालय में किसी उर्दू—भाषी को ही प्रधानाध्यापक बनाया जाए। उन्होंने यह भी लिखा है कि झरना बाला साहा का स्थानान्तरण और किसी विद्यालय में होना चाहिए और निलंबित प्रभारी प्रधानाध्यापक अंजर अलीम का निलंबन रद्द हो। इसके साथ ही उन्होंने विनोद कुमार नामक एक शिक्षक को भी उर्दू विद्यालय से विरमित करने की मांग की है। बता दें कि विनोद कुमार का भी अभी कुछ दिन पहले ही उर्दू विद्यालय में स्थानान्तरण हुआ है। नदवी ने यह भी लिखा है कि उर्दू विद्यालय में झरना बाला साहा को प्रधानाध्यापिका बनाने से क्षेत्र के अभिभावकों, विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्यों और अल्पसंख्यक वर्ग के बुद्धिजीवियों में काफी रोष है और इस कारण विद्यालय में पठन—पाठन बाधित है। एक हिंदू को प्रधानाध्यापक बनाने पर रोष क्यों! इस पर नदवी कहते हैं, ''यह विद्यालय उर्दू माध्यम का है। इसलिए किसी गैर उर्दू शिक्षक को यहां का प्रधानाध्यापक किसी भी सूरत में नहीं बनाना चाहिए।'' जब उनसे यह पूछा कि बिहार सरकार तो उर्दू माध्यम का कोई विद्यालय चलाती ही नहीं है, तब उन्होंने कहा कि इस विद्यालय की स्थापना से लेकर आज तक उर्दू के जानकार ही प्रधानाध्यापक बने हैं। इसलिए अब भी ऐसे ही शिक्षक को यह पद  मिलना चाहिए। यानी नदवी भी घुमा—फिरा कर किसी मुसलमान को ही प्रधानाध्यापक बनाने की बात कह रहे हैं।

यही कारण है कि किशनगंज के हिंदुओं का भी मानना है कि चूंकि झरना बाला साहा हिंदू हैं, इसलिए उन्हें पदभार ग्रहण नहीं करने दिया जा रहा है। भाजपा ने भी इसका विरोध किया है। किशनगंज जिला भाजपा के अध्यक्ष सुशांत गोप कहते हैं कि कुछ लोग शिक्षा के नाम पर मजहब की राजनीति कर रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि जब भाषा के नाम पर एक प्रधानाध्यापक को उर्दू विद्यालय में पदभार ग्रहण नहीं करने दिया जा रहा है तो फिर उर्दू के शिक्षकों को हिंदी—भाषी विद्यालयों में नियुक्त क्यों क्या जाता है! ऐसे शिक्षकों को हिंदी भाषी विद्यालयों से हटा देना चाहिए।  31 अगस्त को गोप के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने जिला शिक्षा पदाधिकारी को एक ज्ञापन भी सौपा है। इसमें उर्दू के उन शिक्षकों का विवरण भी दिया गया है, जो ऐसे व़िद्यालयों में पदस्थापित हैं, जहां शत—प्रतिशत बच्चे हिंदू हैं और पढ़ाने का माध्यम भी हिंदी है। ज्ञापन में कहा गया है कि किशनगंज शहर के कमला नेहरू बालिका मध्य विद्यालय में शमी अख्तर, मोतीलाल मध्य विद्यालय में शमीना खातून, आकाशलता मध्य विद्यालय में मुमताज आलम, खगड़ा मध्य विद्यालय में जुबैर आलम, उत्क्रमित मध्य विद्यालय में नसीम अख्तर और शिक्षा सुधार मध्य विद्यालय में खालिद मुस्तफा वर्षों से प्रधानाध्यापक हैं। ये सभी विद्यालय हिंदू मुहल्ले में हैं और यहां पढ़ने वाले बच्चे भी हिंदू ही हैं। लेकिन कभी किसी हिंदू ने इन प्रधानाध्यापकों का विरोध नहीं किया। लेकिन अब किसी हिंदू शिक्षिका को एक उर्दू विद्यालय में भेजा गया है, तो उनका विरोध हो रहा है, यह तालिबानी सोच है।  

गोप यह भी कहते हैं कि सीमांचल के इस क्षेत्र में जब से ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के विधायक जीते हैं, तब से हर चीज में इस्लामीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है।  

यह भी पता चला है कि इस उर्दू विद्यालय में जानबूझकर गैर—मुसलमान बच्चों का नामांकन नहीं किया जाता है। इसके पीछे एक ही मंशा है कि विद्यालय में सभी छात्र मुस्लिम हों और शिक्षक भी। जबकि शिक्षा विभाग ने इस विद्यालय को डीडीओ स्कूल घोषित कर रखा है। यानी इस विद्यालय के प्रधानाचार्य को निकासी और व्ययन पदाधिकारी कहा जाता है और उसी के हस्ताक्षर से किशनगंज प्रखंड के सभी प्राथमिक और मध्य विद्यालयों के शिक्षकों को वेतन मिलता है। इस कार्य के लिए उर्दू की जानकारी की जरूरत नहीं है। शायद इसलिए शिक्षा विभाग ने झरना बाला साहा को यहां की प्रधानाध्यापिका बनाया है, लेकिन जिनकी बुद्धि केवल और केवल अपने मजहब के लोगों के हित तक ही सीमित हो, उन्हें इस तार्किक बात से क्या लेना—देना!    
इसलिए मजहब के ठेकेदारों ने तालिबानी सोच वाले कुछ लोगों को स्कूल के सामने खड़ा करवा कर उनसे नारा लगवा दिया, ''तुम हिंदू हो, उर्दू विद्यालय में नौकरी नहीं कर सकती हो।''

 

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