मीम अलिफ हाशमी
तालिबान का प्रवक्ता खुद को पाक-साफ होने का चाहे जितने दावा करे, पर अफगानिस्तान से छन कर आ रही सूचनाएं कुछ और कहानी बयां करती हैं। यह अब लगभग स्पष्ट हो चुका है कि अफगानिस्तान के पतन के पीछे तालिबान, आतंकवाद और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का गठजोड़ काम कर रहा है।
तालिबान का प्रवक्ता खुद को पाक-साफ होने का चाहे जितने दावा करे, पर अफगानिस्तान से छन कर आ रही सूचनाएं कुछ और कहानी बयां करती हैं। यह अब लगभग स्पष्ट हो चुका है कि अफगानिस्तान के पतन के पीछे तालिबान, आतंकवाद और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का गठजोड़ काम कर रहा है। अफगानिस्तान के सबसे प्रभावशाली मीडिया हाउस के मालिक साद मोहसेनी की मानें तो आतंकवादी संगठन आईएसआईएस कभी अफगानिस्तान से गया ही नहीं। अपनी पहचान छुपाने को तालिबान लड़ाकों में शामिल हो गया। साथ ही देश के विभिन्न संस्थानों में घुसपैठ कर उस पर काबिज हो गया।
अफगानिस्तान के ‘टोलो न्यूज’ के मालिक तथा मोबी समूह के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी साद का कहना है कि आईएसआईएस हमेशा काबुल में मौजूद रहा। इसके स्लीपर सेल सक्रिय रहे और संस्थानों में घुसपैठ करते रहे। इसके अलावा वे पाकिस्तान की सीमा से लगे पूर्वी प्रांतों में अपनी सरगर्मी बढ़ाते रहे।
‘टोलो न्यूज’ के मालिक ने यह खुलासा ऐसे समय में किया है जब अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ मान चुके हैं कि तालिबान और आईएसआईएस की पहचान मिली-जुली है। मोहसेनी का कहना है कि कई आईएसआईएस तालिब का हिस्सा बन चुके हैं।
भारतीय विशेषज्ञ भी मानते हैं कि पाकिस्तान का तालिबान से गठजोड़ है। सोवियत आक्रमण के खिलाफ उठने में मदद करने वाली ताकतों में पाकिस्तान भी था। पड़ोसी मुल्क दोबारा वही खेल खेल रहा है। आम समझ है कि अफगानिस्तान में भारतीय कान्सुलेट के दफ्तर के छान-बीन के पीछे तालिबान नहीं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी और आतंकवादी संगठन आईएसआईएस का गठजोड़ काम कर रहा था।
एक सेवानिवृत्त आईपीएस और रणनीतिक विश्लेषक प्रकाश सिंह के अनुसार, पाकिस्तान ने तालिबान के साथ अफगानिस्तान में काम करने के लिए 10,000 से अधिक लड़ाकों के साथ अपने नेता के रूप में डॉ फिरदौसी (कोड नाम) के नेतृत्व में एक नया संगठन हिज्ब-ए-विलायत बनाया है। उसका पहला काम अफगानिस्तान के लोगों के लिए भारत द्वारा बनाई गई संपत्ति को निशाना बना है। भारत का अरबों रुपये अफगानिस्तान में लगा है। संसद भवन, यूनिवर्सिटी बिल्डिंग से लेकर बांध तक भारत ने वहां बनाए हैं। अब उन पर खतरा मंडरा रहा है। हालांकि तालिबान के शीर्ष नेतृत्व ने आश्वासन दिया है कि वे अपनी अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने में भारत की भूमिका का स्वागत करेंगे। उनकी दिल्ली से कोई दुश्मनी नहीं। अलग बात है कि वह अफगानिस्तान में सक्रिय भारत विरोधी हितों से कैसे निपटते हैं।
एक रिपोर्ट पेपर, द सन इन द स्काईः द रिलेशनशिप बिटवीन पाकिस्तानी आईएसआई और अफगान रिबेल्स’ में, एक प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ मैट वाल्डमैन लिखते हैं, ‘‘तालिबान रणनीति बनाते हैं और आईएसआई उसे अमली रूप देता है। अफगान सरकार के खिलाफ यह रणनीति खुले तौर पर आजमाई गई। रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान केवल आईएसआईएस ही नहीं हक्कानी समूहों को भी शरण, प्रशिक्षण, धन, युद्ध सामग्री आपूर्ति करता है। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, आईएसआई तालिबान के रणनीतिक निर्णयों और उन निर्णयों को क्षेत्र में अमली रूप देने में भागीदार है। विदेश मंत्री एस जयशंकर भी आतंकवादी संगठन हक्कानी ग्रुप के अफगानिस्तान में सक्रिय होने को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं।
बहरहाल, पिछले तीन दशकों में आईएस ने तालिबान को एक महत्वपूर्ण उद्देश्य की पूर्ति के लिए तैयार किया है। तालिबानियों के बीच भेड़िए की खाल में मौजूद पाकिस्तानी सेना और आईएसआईएस के गुर्गे सरकार में आने के बाद वे भारत के विरुद्ध क्या रणनीति अपनाते हैं, यह तो भविष्य के गर्भ में छुपा है।
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