झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन
—अरुण कुमार सिंह और रितेश कश्यप
झारखंड में यह चर्चा आम है कि राज्य सरकार इन दिनों बदले की भावना से ग्रसित होकर काम कर रही है। इसके अनेक उदाहरण हैं। इनमें से दो इन दिनों बहुत ही चर्चित हो रहे हैं। एक है सुनील तिवारी का मामला और दूसरा है भैरव सिंह का। बता दें कि सुनील तिवारी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से सीधी दुश्मनी ले रखी है। वहीं भैरव सिंह रांची में एक ऐसे कार्यकर्ता हैं, जो राज्य सरकार की हिंदू—विरोधी करतूतों को बाहर लाते हैं। यही कारण है कि इन दोनों के पीछे झारखंड सरकार हाथ धोकर पड़ गई है।
पहले सुनील तिवारी के मामले को देखते हैं। गत 16 अगस्त को उनके विरुद्ध रांची के अरगोड़ा थाने में एक नाबालिग लड़की ने यौन शोषण का मामला दर्ज कराया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (1), 354(ए), 354 (बी), 354(डी), 504, 506 और अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम की धारा 3(2)(बीए) के अंतर्गत दर्ज इस मामले की पुलिस ने जांच भी शुरू कर दी है। जांच अधिकारी बेड़ो के उप पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) रजत मणि बाखला बनाए गए हैं। बता दें कि वह लड़की एक साल पहले तक सुनील तिवारी के घर काम करती थी। उसके द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में आरोप लगाया है कि मार्च, 2020 में एक दिन दारू पीने के बाद छत पर सुनील तिवारी ने उसके साथ बलात्कार किया। तिवारी कहते हैं, ”एफआईआर में मार्च का महीना तो बताया गया है, लेकिन कोई तारीख नहीं बताई गई है। यह बिल्कुल फर्जी मामला है। राज्य सरकार मेरे पीछे पड़ गई है। मेरी जान को भी खतरा है, लेकिन चाहे जो हो जाए कानूनी स्तर पर लड़ाई जारी रहेगी।”
जो लोग सुनील तिवारी को जानते हैं, उनका मानना है कि यह मामला उन पर दबाव डालने का एक जरिया है। यह दबाव इसलिए है, ताकि सुनील तिवारी सर्वोच्च न्यायालय में दायर अपनी उस याचिका को वापस ले लें, जिसमें उन्होंने निवेदन किया है कि मुम्बई उच्च न्यायालय में लंबित हेमंत सोरेन के मामले पर जल्दी सुनवाई शुरू हो। यह याचिका उन्होंने 29 जुलाई को दायर की है। सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने के केवल 17 दिन बाद ही सुनील तिवारी पर मुकदमा दायर होने से कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले मुम्बई की एक मॉडल ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने 2013 में मुम्बई के एक होटल में धमकी देकर उसके साथ बलात्कार किया था। यह मामला काफी समय तक दबा रहा। 2020 के दिसम्बर महीने में अचानक यह मामला बाहर आया। इसकी रिपोर्ट पाञ्चजन्य (27 दिसम्बर, 2020) में आवरण कथा (सांसत में सोरेन) के रूप में प्रकाशित हुई थी।
कहा जाता है कि इसके बाद हेमंत सोरेन के लोगों ने उस लड़की पर मामला वापस लेने का दबाव डाला और वह लड़की दबाव में मामला वापस लेने के लिए भी तैयार हो गई। इसके बाद सुनील तिवारी ने मुम्बई उच्च न्यायालय में भी एक हस्तक्षेप याचिका दायर कर निवेदन किया था कि लड़की पर दबाव डालकर मामला वापस कराया जा रहा है, इसलिए वह मामला वापस न लिया जाए। यही कारण है कि यह मामला अभी भी चल रहा है। स्वाभाविक है कि इसके लिए हेमंत सोरेन और उनके समर्थक सुनील तिवारी को ही जिम्मेदार मान रहे हैं। यही कारण है कि अब हेमंत सोरेन और उनके समर्थक सुनील तिवारी के पीछे पड़े हैं। ऐसी स्थिति में अचानक एक नाबालिग लड़की द्वारा सुनील तिवारी के विरुद्ध मामला दर्ज कराने से यही संदेश जा रहा है कि उस लड़की के पीेछे कोई न कोई है। इसलिए अरगोड़ा थाने में दर्ज मामले को हर कोई फर्जी बता रहा है। झारखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि सुनील तिवारी के विरुद्ध फर्जी मामला दायर कर उन्हें डराया जा रहा है। उन पर अपनी याचिका वापस लेने का दबाव डाला जा रहा है।
यह मामला इसलिए भी फर्जी लग रहा है कि लड़की के घर वालों ने भी कहा है कि सुनील तिवारी को जबरन फंसाया जा रहा है। हमारे सूत्रों ने बताया कि पुलिस ने लड़की के घर वालों को तीन दिन तक थाने में बंद रखा गया और उन पर भी दबाव डाला कि वे सुनील तिवारी के विरुद्ध बयान दें। ऐसा नहीं करने पर उन्हें भी किसी मामले में फंसा देने की धमकी दी गई। परिजनों का यह भी आरोप है कि उनकी बच्ची को अरगोड़ा थाना क्षेत्र से कुछ पुलिस वाले आए और जबरन उठाकर ले गए और उस पर सुनील तिवारी के खिलाफ बयान देने के लिए दबाव डाला गया। साफ है कि सुनील तिवारी को जबरन फंसाने का प्रयास किया जा रहा है।
सुनील तिवारी की ही तरह भैरव सिंह को भी परेशान किया जा रहा है। पिछले दिनों रांची नगर निगम ने उन्हें 10,00,000 रु. का जुर्माना भरने का नोटिस भेजा है। उप नगर आयुक्त के अनुसार भैरव सिंह ने 29 जुलाई को रांची की विभिन्न सड़कों पर बिना अनुमति के उत्तेजक और भ्रामक पोस्टर और बैनर लगवाए थे। यह झारखंड नगर पालिका अधिनियम 2011 की धारा 178 का उल्लंघन है। इसी को लेकर उन पर जुर्माना लगाया गया है। इस पर भैरव सिंह का कहना है कि नोटिस के अनुसार ये सारे बोर्ड उन्होंने खुद लगाए हैं, जबकि सचाई यह है कि ये बैनर और पोस्टर उनके समर्थकों द्वारा लगाए गए थे।
उल्लेखनीय है कि भैरव सिंह झारखंड में लव जिहाद, कन्वर्जन, महिला उत्पीड़न आदि के मामलों को लेकर बहुत ही सजग रहते हैं। ऐसे मामलों को लेकर वे कई बार आंदोलन और प्रदर्शन भी कर चुके हैं। 3 जनवरी, 2021 को रांची जिले के ओरमांझी थाना क्षेत्र के अंतर्गत नग्न अवस्था में एक युवती की सिरकटी लाश मिलने पर भी भैरव सिंह ने आंदोलन किया था। इसी दौरान उनके समर्थकों ने एक दिन मुख्यमंत्री के काफिले को भी घेर लिया था। इसी मामले में भैरव सिंह को जेल जाना पड़ा था। कुछ दिन पहले उन्हें जमानत मिली है। 29 जुलाई को वे जेल से निकले, तो उस दिन उनके समर्थकों ने रांची शहर में उनके स्वागत में बैनर और पोस्टर लगाए। यह राज्य सरकार को पसेद नहीं आया और उनको नगर निगम के जरिए नोटिस भेजा गया। भैरव सिंह कहते हैं कि इससे पहले भी हजारों बार रांची में और लोगों के लिए बैनर और पोस्टर लगे हैं, उनमें से किसी को भी जुर्माना भरने के लिए नोटिस दिया गया है, फिर मुझे ही जुर्माना भरने के लिए क्यों कहा गया! साफ है राज्य सरकार हम जैसे कार्यकर्ताओं को परेशान करना चाहती है।
इसी तरह के एक मामले में दो महीने पहले भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सह राज्यसभा सदस्य दीपक प्रकाश और कांके के विधायक समरी लाल सहित 70 से ज्यादा अज्ञात लोगों पर भी मामला दर्ज किया गया था।
कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी सोरेन सरकार परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। रोशनी खालको, मेघा उरांव, सनी टोप्पो जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी किसी न किसी बहाने परेशान किया जा रहा है। कारण एक ही है कि ये लोग राज्य सरकार के हर उस कार्य को बेनकाब करते हैं, जो देश और समाज हित में नहीं होता है। इसलिए लोग कहने लगे हैं कि झारखंड में आपातकाल जैसी स्थिति है। जो भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विरुद्ध कुछ बोलता या करता है, उस पर कहीं न कहीं कोई मुकदमा दायर हो जाता है।
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